Saturday, December 6, 2014

यशपाल

तीन दिसंबर को क्रांतिकारी , यशस्वी उपन्यासकर- कथाकार स्व. यशपाल की जयंती थी . स्कूल के ज़माने में यशपाल का उपन्यास ‘दिव्या’ मेरी बहिन को पुरस्कार में मिला था । यों किताबों को उलटने पलटने और खँगालने की आदत बचपन से रही है, पर इस उपन्यास की आरंभ की पंक्ति “कला की अधिष्ठात्री राजनर्तकी देवी मल्लिका की पुत्री रुचिरा.....काल-कवलित हो गयी थी” से ही कुछ ऐसा लगा कि इसे पढ़ना टेढ़ी खीर है, परंतु कालांतर में कुछ बड़ा होने पर इसे पढ़ा भी और गुना भी.बुद्धकालीन समाज का ऐसा सजीव चित्रण मैंने अन्यत्र नहीं पढ़ा और जिस भाषा को ले कर शुरू में हतोत्साहित रहा, उसी भाषा शैली नें बाद में मंत्रमुग्ध भी किया । कहानियाँ ज़्यादा तो नहीं पढ़ पाया पर ‘मक्रील’ और ‘फूलों का कुर्ता’ ने बहुत प्रभावित किया. समय रहते यशपाल को और पढ़ने का मन है