Thursday, December 31, 2020

ADIEU 2020

  For all intents and puposes and in retrospect the year 2020 has been extraordinary, whichever way you tend to look at it. The year had started on a light and humorous note to many, redolent of a 20-20 Cricket match ,similarity  however ending with  the figure 2020, which thanks(sic) to the spill and world wide spread of  a pandemic called Covid 19, was to turn ominous. Overall the year has been disastrous , to say the least in more ways than one . A disaster that has caused a million deaths across the world , with India contributing to the figure almost in proportion to the population vis a vis the world.There have been also social implications of the Pandemic.   The world apart from a health and medical catastrophe faced the problem of massive economic slowdown, with all industrial and manufacturing activity coming to a halt  , resulting in massive unemployment and in India especially the forced repatriation of migrant labour in hordes, who in the beginning for many days  trudged long distances largely on foot , facing hardships along the way . The two extremes of human mindset and behaviour were manifest .The philanthropists and NGOs rising to the occasion and coming up with all kind of material and monetary  help  made one proud and reassured of humanity and humane traits . On the other hand, gross insensitivity and callousness from  some quarters was also evident. As a retired person having withdrawn myself from public life, perhaps  I could afford to sit at home and be a fence sitter  since March.   Kudos and hats off to all those Government and non- Government functionaries at all levels , especially those of Medical,  Health , Cleaning , and law & order , who risked their own lives in caring and tending the others , quite a few of them losing their lives in the line of duty . They are also martyrs like the soldiers who lay down lives at the border, defending the Country. I also admire those who during the lockdown and after continued with their creative pursuits often instilling positivity and courage through their meaningful writings, be it poetic outpourings or prose writings.

The Pandemic is not yet over . Let us hope that the sincere day and night efforts by the medical scientists across the world to develop Vaccine against the  Covid bear fruit, bring out desired results  and provide succour  and relief to the people world over .No tears however, are enough to shed for  the persons who fell fatal victims to Covid.

Remain alert and be safe !

सर्वे भवन्तु सुखिन:,सर्वे सन्तु निरामया,

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु

मा कश्चिद् दुख भागभवेत।

ऊँ शांतिः शांतिः शांतिः

Sunday, December 20, 2020

तेज राम शर्मा


 स्मृति शेष 

तेज राम शर्मा 

( 25.03.1943 – 20.12.2017 )

तुम को न भूल पाएंगे  !


सपने अपने  अपने:


बालक ने सपना देखा

उड़ गया वह आकाश में

पीठ से फिसला उसका बस्ता

एक-एक कर आसमान से गिरी

पुस्तकें और काँपियाँ

देख कर मुस्कराया और उड़ता रहा

फिर गिरा आँखों से उसका चश्मा

धरती इतनी सुंदर है

उसने कभी सपने में भी न सोचा था


युवा ने सपना देखा

हवाई जहाज़ से

उसने लगाई छलांग

करतब दिखाता हुआ

निर्भय गिरता रहा धरती की ओर

जंगल जब तेजी से उसके पास आया

तो उसने पैराशूट खोल दिया

हवा का एक तेज़ झोंका

उसे राह से विचलित कर गया

पैराशूट को नियंत्रित करता हुआ

साहस के साथ वह

पेड़ों से घिरी चारागाह में उतरा

वहाँ एक युवती दौड़कर उसके पास आई

और प्यार भरी आँखों से उसे देखने लगी

सपने में ही अपना सिर उसकी गोद में रखकर

वह जीने के सपने देखने लगा


बूढ़े ने सपना देखा

सुबह-सुबह नदी स्नान करते हुए

फिसला जाता है उसका पाँव

वह नदी में डूबने लगता है

शिथिल इन्द्रियोँ से

छटपताता है बाहर निकलने के लिए

अपने-पराये कोई नहीं सुनते उसकी चीख

सब कुछ छूटता नज़र आता है

जैसे ही अंतिम साँस निकलने को होती है

बिस्तर पर जाग पड़ता है वह भयानक सपने से

काँपते हाथों से पानी पीता है और

सपने देखने से डरने लगता है।


-तेज राम शर्मा

Tuesday, December 8, 2020

यांरा से वौलोंगौंग

 यांरा से वौलोंगौंग


(संस्मरण व यात्राएं )

लेखक- शेर सिंह

I.S.B.N : 978-81-7667-391-4

प्रकाशक : भावना प्रकाशन

109-A पटपड़ गंज, दिल्ली- 110091

पृष्ठ संख्या : 144

मूल्य : 395 रुपये

एक काव्य संग्रह व दो कहानी संग्रहों के बाद ‘यांरा से वौलोंगौंग’, कवि ,कथाकार, लेखक मित्र श्री शेर सिंह  की यह चौथी पुस्तक है । यह लेखक के संस्मरणों व यात्राओं संबंधी लेखों का संग्रह है । यांरा अथवा यंगरंग हिमाचल प्रदेश के एक दूरस्थ ज़िला लाहुल का एक छोटा सा गाँव है जो लेखक का पैतृक स्थान है, और ‘वौलोंगौंग’ ऑस्ट्रेलिया के सिडनी के अन्तर्गत एक तटवर्ती नगर का नाम है ।यह पुस्तक लेखक ने अपने पैतृक स्थान यांरा को समर्पित की है l जैसा कि संग्रह के नाम से स्पष्ट है , लेखक की अब तक की जीवन यात्रा और इस दौरान अर्जित किए गए अनुभव  इन्हीं दो बिदुओं के मध्य हैं । शेर सिंह का सौभाग्य है कि  जीविकोपार्जन के कारण ही सही , उन्हें गृह राज्य हिमाचल के अतिरिक्त भारत के अन्य राज्यों  में सेवाएं प्रदान करने और रहने का अवसर  प्राप्त हुआ है और अपने अनुभवों को  लेखनीबद्ध करने की अपनी रुचि, क्षमता और प्रतिभा का यथोचित उपयोग उनकी प्रकाशित रचनाओं के रूप में हमारे सामने है । पुस्तक के प्रारम्भ में ‘अपनी बात’ भी पठनीय है और अपने अपने क्षेत्र में ख्यातिप्राप्त कुछ  सुधीजनों के उद्गार पुस्तक की सामग्री, विषयवस्तु की गुणवत्ता  पर प्रकाश डालते हैं ।

इस संग्रह में विभिन्न विषयों पर आधारित कुल 25 लेख हैं । पुस्तकाकार छोटा होते हुए भी इसका फ़लक विस्तृत है, जिसमे, भाषा, शिक्षा,धार्मिक आस्था, संस्कृति, विज्ञान, एवं प्रचलित मान्यताएं , जो कि व्यापक संदर्भ में  निराधार और अनुचित प्रतीत होती  है, इस सभी का समावेश है । पाठक के सामान्य ज्ञान में वृद्धि होने का भी लाभ समाहित है ।

सबरीमाला मंदिर पर आधारित संग्रह के प्रथम लेख पर जहां एक ओर  अय्यपा स्वामी के उद्भव की जानकारी मिलती है वहीं आस्था मे डूबे व्यक्तियों द्वारा एक निश्चित अवधि के दौरान वेशभूषा और आचरण संबंधी कठोर अनुशासन का पालन किए जाने का रोचक विस्तृत विवरण है । वेलूर के ऐतिहासिक क़िले पर लेख इतिहास के साथ साथ लगभग तीस वर्ष पूर्व घटी एक घटना के काले अध्याय की भी याद दिलाता है । अपनी ऑस्ट्रेलिया यात्रा और प्रवास के दौरान हुए अनुभवों, दृश्यों, वस्तुओं, भवनों, स्मारकों का विस्तृत विवरण पाठक को बांधे रखने में सक्षम है ।विदेशी भूमि पर निर्मित मन्दिर और गणेश पूजा का आंखो देखा वर्णन भी प्रवासी एवं  विदेश की नागरिकता प्राप्त  भारतवंशी लोगों की धार्मिक आस्था पर पर्याप्त प्रकाश डालता है । कुछ लोगों  शक्लसूरत से उनकी राष्ट्रीयता का अनुमान लगाना भी इतना सहज नहीं , जितना हम समझते हैं , ऐसा भी लेखक का अनुभव रहा है । अन्तरराष्ट्रीय विवाह को ले कर जो  भ्रांतियां अथवा पूर्वाग्रह/ दुराग्रह , विशेषकर दो ऐसे देशों के संदर्भ में जिनके संबंध किसी भी दृष्टि से मैत्रीपूर्ण नहीं कहे जा सकते, वे भी विदेशी भूमि पर प्रत्यक्षदर्शी को निराधार और अनुचित लगते हैं । ऐसे दंपती विदेश में सुखी जीवन बिताते दिखते हैं । लेखक के दूसरे राज्यों के अनुभव भी कम रोचक नहीं ।रहन सहन, जलवायु, खान पान की विविधता, सब कुछ का वर्णन इन लेखों में मिलता है।साहित्य, पत्रकारिता, विज्ञान क्षेत्र की नामचीन हस्तियों सेअपने परिचय का वर्णन भी लेखक ने रोचक रूप में प्रस्तुत किया है ।  कुल मिला कर विभिन्न स्थानों पर रहने का अनुभव बहुत कुछ तो सिखाता ही है और साथ में दृष्टिकोण को भी व्यापकता प्रदान करता है ।अनेकता में एकता की राष्ट्रीयता की भावना भी अनेक प्रकार की संस्कृतियों के साक्षात्कार से जागृत होती है ।

राष्ट्रीयकृत बैंक – सिंडीकेट बैंक में वरिष्ठ प्रबन्धक ( राजभाषा )के पद से सेवानिवृत्ति के बाद लेखक स्वतंत्र लेखन में मशगूल हैं । लेखक के अनुसार इस संग्रह के अधिकतर लेख पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं । उनके द्वारा इन लेखों को पुस्तकाकार में पाठकों के समक्ष लाना स्वागत योग्य है ।


भविष्य के लेखन के लिए भी लेखक को शुभकामनाएं !!

Sunday, December 6, 2020

कॉरोना डायरी

 बकौल ग़ालिब 'मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यों रात भर  नहीं आती' । यह सामान्य दिनों का शाश्वत सत्य है । मौत निश्चित है पर समय निश्चित होते हुए भी ज्ञात नहीं । यही निश्चितता  में अनिश्चितता की स्थिति  जीवन को चलाए हुए है । पर कॉरोना काल में असमय काल  का ग्रास बनते लोगों के बारे में देख सुन कर सहज ही हर प्रकार से भयावह और चिंता जनक बनी स्थिति का स्वतः अनुमान हो  जाता है । हर आयु के लोग संक्रमण से प्रभावित हो रहे है । कोविड19 कई स्वरुप बदल चुका है । आवश्यक सावधानी हेतु व्यापक प्रचार  हो रहा है । दुर्भाग्यवश कुछ ऐसे प्रबुद्ध , पढ़े लिखे, बुद्धिमान लोग भी जीवन से हाथ धो बैठे हैं जिन्होंने संभवतः स्वयं कोई असावधानी नहीं  बरती पर   दूसरे लोगों की  असावधानी से कोविड की जद में आए । 

आश्चर्य और दुःख  होता है कुछ युवा और कुछ उम्रदराज़ लोगों को देख कर जिन्होंने आस पास की घटनाओं से कोई सबक़ नहीं लिया और डॉन बन कर बिना मास्क के और सावधानी के अन्य मानकों को धत्ता बता कर घूमते हुए स्वयं के अतिरिक्त औरों के लिए भी खतरा बनते हैं ।

अंग्रेज़ कवि जॉन डन के शब्दों को थोड़ा परिवर्तित करते हुए - 

For whom the bell tolls , it tolls for me को ध्यान में रखते हुए ही बचाव संभव है ।

वैक्सीन आने और उसके प्रभाव से रोग या संक्रमण से मुक्त होने के लिए अभी कई पड़ाव पार करने होंगे   ।