" शाहीन " ( बाज़ ) शब्द का प्रयोग शायरों द्वारा भिन्न-भिन्न सन्दर्भों में बड़ी खूबसूरती से किया गया है :
"पंजा जल्लाद का बनाया जिसने
शाना कातिल का थपथपाया जिसने
क्या हिफ्ज़े कबूतर का नहीं वह जामिन
शाहीन को दिया शिकार-ए-ताज़ा जिसने "
तथा
" सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क के इम्तिहाँ और भी हैं
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तू शाहीन है परवाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आसमां और भी हैं "
नमस्कार आरके जी। आपकी शुभकामनायें मिली आपका आभार । आपके विचार मुझे प्राप्त होते रहते है। आपको विचारों से मै प्रोत्साहित होता हूं। पुन आपकी शुभकामनाओं के लिए आपका धन्यवाद।
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