2010 भी दो तिहाई समाप्त हो चुका है और महान रचनाकार उपेंद्रनाथ अश्क की जन्मशती के बारे हिन्दी साहित्य जगत की चुप्पी समझ से परे है .कविता, कहानी , उपन्यास , नाटक यानि लेखन की सभी विधाओं में प्रभाव पूर्ण ढंग से क़लम चलाने वाले अश्क जी अपने समय के हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रहे हैं . उनका उपन्यास “गिरती दीवारें " उपन्यास लेखन में यदि मील का पत्थर साबित हुआ है तो “बड़ी बड़ी आँखें " और “ एक नन्ही किंदील" भी अपने आप में बेजोड़ हैं .
“ डाची ” कहानी भी कम रोचक नहीं. उनकी कविता “मरुस्थल से " बरबस याद आती है इसलिए भी कि यह कैसा मरुस्थल है जो किसी महान लेखक की याद को हरा भरा रखना तो दूर, पनपने देने में भी अक्षम है ।
“ डाची ” कहानी भी कम रोचक नहीं. उनकी कविता “मरुस्थल से " बरबस याद आती है इसलिए भी कि यह कैसा मरुस्थल है जो किसी महान लेखक की याद को हरा भरा रखना तो दूर, पनपने देने में भी अक्षम है ।
No comments:
Post a Comment