आजकल विख्यात लेखक स्व. विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित यशस्वी बांग्ला
उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की जीवनी ‘आवारा मसीहा’ का पुनर्पाठ
कर रहा हूँ और अभिभूत हूँ. शरतचन्द्र के व्यक्तित्व और कृतित्व का प्रभाकर
जी ने ऐसा चित्रण किया है कि शरतचन्द्र स्वयं ही नहीं बल्कि उनके
उपन्यासों के पात्र भी जीवंत हो आँखों के सामने विचरण करते प्रतीत होते
हैं . वास्तव में यह रचना लेखक के श्रमसाध्य शोध का परिणाम है. इस पुस्तक
की सामग्री जुटाने के लिए लेखक ने बंगाल और बिहार , मध्यप्रदेश के साथ साथ
वर्तमान बांग्ला देश , तथा बर्मा ( म्यांमार ) तक का भ्रमण किया व लोगों
से जानकारी प्राप्त की . जीवनी का शीर्षक ‘आवारा मसीहा’ शरतचंद्र के जीवन
चरित को परिभाषित करने में सक्षम है . सम्पूर्ण नारीत्व – जो कि दया, करुणा
, ममता, सेवा, परोपकार , त्याग का समग्र रूप है , उनकी दृष्टि में सतीत्व
से कहीं अधिक महान है , ऐसी स्थापना परम्परावादी नैतिकता के पक्षधर लोगों
के गले से भले ही नीचे न उतरे , पर सोचने पर अवश्य मजबूर करती है. मानव
प्रेम ही नहीं बल्कि प्राणिमात्र से स्नेह जो शरतचंद्र के पशु-पक्षी प्रेम
में स्पष्ट झलकता है , उन्हें रचनाकारों की एक अलग ही पंक्ति में खड़ा करता
है . अँगरेज़ लेखक सेमुअल जॉनसन के जीवनी लेखक जेम्स बॉसवेल का जो स्थान
अंग्रेजी साहित्य में है, प्रभाकर जी ने ‘आवारा मसीहा’ रच कर ही उस से
बेहतर स्थान प्राप्त किया है व ख्याति अर्जित की है . विष्णु प्रभाकर का
अन्य लेखन भी उच्चकोटि का रहा है .
यह मेरे लिए शर्म की बात है कि हिन्दी साहित्य का अगाध प्रेमी होते हुए भी अब तक मैनें इस कालजयी कृति को नहीं पढ़ा है। शरतचन्द्र जी का मैं प्रशंसक रहा हूँ, उनके कई उपन्यास पढ़े हैं। हिन्दी सिनेमा और टेलीविजन पर जितना शरतचन्द्र की कृतियों को जीवन्त किया गया है उतना अन्य किसी साहित्यकार की कृतियों को नहीं। परन्तु 'अावारा मसीहा' में तो प्रभाकर जी ने सीधा शरतचन्द्र जी से साक्षात्कार कराया है। हिन्दी साहित्य की यह सर्वोत्कृष्ट जीवनी कही जाती है, और हो भी क्यों न, चौदह वर्षों के गहन परिश्रम से विष्णु प्रभाकर जी ने इसे लिखा था। शरतचन्द्र और विष्णु प्रभाकर जी को मैं शत शत नमन करता हूँ।
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