Monday, August 3, 2015

मैथिलीशरण गुप्त

45 से 50 वर्ष पूर्व के अपने स्कूल के विद्यार्थी काल में पढ़ी कविताओं की कुछ पंक्तियाँ आज भी याद हैं .
यथा:
"माँ कह एक कहानी।"
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"
"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।"
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संग्राम में निज-शत्रुओं की देखकर यह नीचता
कहने लगा वह यों वचन दृग युग-करों से मींचता -
"नि:शस्त्र पर तुम वीर बनकर वार करते हो अहो!
है पाप तुमको देखना भी पामरों! सम्मुख न हो!!
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तात! हे मातुल! जहाँ हो प्रणाम तुम्हें वहीं,
अभिमन्यु का इस भाँति मरना भूल न जाना कहीं!"
दृग बंद कर वह यशोधन सर्वदा को सो गया,
हा! एक अनुपम रत्न मानो मेदिनी का खो गया ||
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नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
इन कविताओं के रचयिता राष्ट्र-कवि मैथिलीशरण गुप्त की आज जयंती है .
इस महान कवि को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !

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