Tuesday, April 17, 2018

एक कहानी , बिना शीर्षक की

एक
एक बुजुर्ग से दिखने वाले सूटेड बूटेड व्यक्ति जो, हुलिये व चाल ढाल से  रिटायर्ड अधिकारी होने का आभास देते हैं , उस बड़े दफ्तर की सीढ़ियाँ और गलियारे  कदमों से नापते हुए बड़े साहब के कमरे के ठीक बाहर पहुँचते हैं, तो नेम प्लेट पर कुछ कुछ परिचित सा नाम देख कर थोड़ा ठिठकते हैं और रुक जाते हैं । इस से पहले भी इस दफ्तर  में आ चुके हैं पर स्टाफ द्वारा यह बताने पर कि उनका काम time barred होने की वजह से सीधे तौर पर डील नहीं किया जा सकता और साहब के ज़रूरी निर्देश व सहमति वांछित है , आज आए हैं क्यों कि उम्मीद के मुताबिक साहब दौरे से वापिस आ गए हैं और अपने कमरे में तशरीफ फरमा  हैं। PA बता चुका है कि कमरे के बाहर यदि हरी बत्ती जल रही हो तो बे रोक टोक भीतर जा सकते हैं। खैर हरी बत्ती जल रही है, काम बहुत ज़रूरी है तो साहब से मिलना ही है , सोच कर आहिस्ता से दरवाजा भीतर की ओर खोलते हैं ।
दो
दरवाजा खोल कर वो रिटायर्ड अधिकारी भीतर  आते हैं तो किसी को आया देख, साहब का मित्र जो बिलकुल सामने कुर्सी पर बैठ कर बात कर रहा होता है , वहाँ से उठ कर  थोड़ी दूर रखे सोफ़े पर जा कर बैठ जाता है ,क्योंकि वो सरकारी काम में किसी प्रकार की रुकावट नहीं बनना चाहता । सामान्य शिष्टाचार के बाद वह व्यक्ति अपना संक्षिप्त सा परिचय देता है। साहब उस व्यक्ति को सामने कुर्सी पर बैठने के लिए  कहते हैं, और प्यून को बुला कर एक गिलास पानी ऑफर करते हैं । वह व्यक्ति अपने साथ लाये कुछ कागज़ पत्र उन्हें दिखाता है तो साहब उन्हें ध्यान से पढ़ते  हैं और आगंतुक से कुछ पूछते हैं ।  इंटरकाम पर किसी मातहत से बात करते हैं पत्र के आमुख पर कुछ लिखते हैं और घंटी बजा  कर प्यून बुलाते हैं और उसे फलां ब्रांच में कागज़ पत्र  देने को कहते हैं। साहब के मुख पर विनम्रता का भाव है । उस व्यक्ति को आगे दिन आ कर ब्रांच से अपने कागज  कलेक्ट करने के लिए कहते हैं । वह व्यक्ति उठता है और कृतज्ञता प्रकट करते  हुए धीरे से कमरे से बाहर निकाल जाता है । उसके जाने के बाद साहब खुद कुर्सी छोड़ कर मित्र से बातचीत करने के लिए सोफ़े पर आ जाते हैं। दोनों दोस्तों के बीच उनकी आगे की बेतकल्लुफ़ बातचीत का सिलसिला कुछ यूं चलता हैं :
एक बात पूछूं ?
पूछों ।
वैसे तुम्हारे सहज और नम्र स्वभाव से मैं भली भांति परिचित हूँ पर इन जेंटलमैन से बात करते हुए क्या तुम ज़रूरत से ज़्यादा विनम्र नहीं हो रहे थे ?
( विनम्र शब्द दोहराते हुए  साहब ज़ोर का ठहाका लगाते   है  )
यार शुकर कर मैंने इनके चरण नहीं छू लिए ।
क्यों ?
यदि वक़्त बेवफाई ना करता तो ये मेरे ससुर होते ।
आगे साहब की जुबानी -
सुनना चाहता है तो सुन । हुआ यों कि इन साहब ने अपनी लड़की के लिए मेरी बात चलाने के लिए अपने एक मित्र को मध्यस्थ  चुना जो हमारा भी परिचित था । उस समय मेरा कोई विचार शादी करने का नहीं था  क्योंकि मैं उस नौकरी से निकल कर अन्यत्र भविष्य तलाशने के लिए प्रयासरत  था जिस के लिए मुझे प्रतियोगी  परीक्षा में बैठने  की तैयारी करनी थी । पर जब वह मध्यस्थ नहीं माना तो माँ बाप के कहने पर  मैं किसी तरकीब से लड़की देख आया और बात खत्म हो गयी ।
मैं तो खैर भूल चुका था पर कुछ दिन बाद वो मध्यस्थ  मेरे पिताजी को मिला तो कुछ संकोच और कुछ शर्मिंदा हो कर उस लड़की का रिश्ता कहीं और तय होने की बात बताई । वो एक इंजीनियर था, यह मुझे कुछ वर्षों के बाद पता लगा । कौन बाप नहीं चाहेगा कि उसका दामाद एक अफसर हो , और मैं तो सिर्फ एक इंस्पेक्टर था जो इस लिहाज से कहीं निकट नहीं पड़ता था । तुम पूछोगे कि क्या मुझे दुख नहीं हुआ ? हाँ, थोड़ा बहुत वो भी इस लिए कि पहल उस ओर से हो रही थी । इतना ज़रूर पता लगा था कि लड़की कि माँ को अपने पति का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा था । शायद लड़की को भी मैं पसंद था और वो मेरे उसे देखने से , पहले मुझे देख चुकी थी , नहीं तो मेरे देखने की नौबत ही न आती ।
खैर समय बीता। कुछ मेहनत रंग लायी और कुछ किस्मत ने साथ दिया और मैं प्रतियोगी परीक्षा में सफल हुआ । और इस रूप में तुम्हारे सामने हूँ ।
तुम सोच रहे होगे कि मैंने इन्हें पहचाना कैसे, तो वो ऐसे कि आज  कागजों में उनका नाम पता सब दर्ज था।  परज़्यादा जान पहचान  बढ़ा कर और पुरानी याद दिला कर  मैं इन्हें  embarrass नहीं करना चाहता था ।

तीन:
उधर बुज़ुर्ग महोदय कुछ खुशी खुशी और और कुछ अन्यमनसक से अपने घर पहुंचे तो  कोट पैंट उतार कर और कुर्ता पाजामा पहन कर बैठक में आ गए तो पत्नी चाय बना कर ले आयी ।
पत्नी ने पूछा-
 काम  हो गया ?
हाँ, हो गया , कल कागज़ पत्र हाथ में होंगे ।
फिर आपको तो खुश होना चाहिए , और आप कुछ सोच में लग रहे हैं ।
हाँ मैं ये सोच रहा हूँ कि ये अफसर कहीं वो लड़का तो नहीं जिसकी बात हम गुड्डी के लिए चला रहे थे !
और जिसे आपने अपनी बेटी के लायक नहीं समझा ! पत्नी ने ताना दिया ।
अपने उस दोस्त को क्यों नहीं पूछते  जिसे आपने मध्यस्थ बनाया हुआ था  ?
हाँ, यह ठीक है- कह कर उनने उस मित्र को फोन मिलाया तो पूछने पर उनकी बात सही निकली ।
पत्नी को यह बताया तो चाय की चुस्की  के बीच उन दोनों के बीच एक मौन पसर गया ।








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