बेल्जियन मूल के भारतीय विद्वान फादर कामिल बुल्के (Father Camille Bulcke)की आज 110 वीं जयंती है । आज ही के दिन 1909 में बेल्जियम के वेस्ट फ़्लैण्डर्स राज्य के एक गाँव में जन्मे कामिल बुल्के ने आरंभ में सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की और उसके बाद1930 में ही प्रचारक बनने का निर्णय लिया । 1932-34 में हॉलैंड से दार्शनिक प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत भारत का रुख किया । कुछ समय दार्जिलिंग में रहे उसके बाद वर्तमान झारखण्ड के गुमला में पाँच वर्ष तक गणित का अध्यापन किया । इसी दौरान हिंदी के प्रति इनकी रूचि जगी ।
1939-42 में धर्मशास्त्र का प्रशिक्षण लिया व 1941 में पुजारी के रूप में मान्यता मिली ।
1942-44 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में संस्कृत में स्नातकोत्तर अध्ययन उपरान्त 1945 में उपाधि प्राप्त की ।1945-49 में शोध कार्य किया व 1949 में इल्लाहबाद विश्वविद्यालय से इन्हें हिन्दी साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि मिली । इनके शोध का विषय ' राम कथा का विकास' था ।
1949 में ही इन्हें सेंट ज़ेवियर कॉलेज में संस्कृत व हिंदी का विभागाध्यक्ष नियुक्त किया गया ।श्रवण शक्ति में बाधा के फल स्वरूप इनने अध्ययन और शोध की ओर ध्यान केंद्रित किया । 1950-51 में इन ने भारत की नागरिकता ग्रहण की ।
अंग्रेजी- हिन्दी शब्दकोष का संकलन किया व हिन्दी में एक उपन्यास 'नील पक्षी' की भी रचना की ।
हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के प्रति इनका प्रेम अद्वितीय था और कवि तुलसी के प्रति अपार श्रद्धा ।
1974 में इन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया व हिंदी के उत्थान हेतु बनाये गए राष्ट्रीय आयोग के सदस्य भी नियुक्त हुए ।
17 अगस्त 1982 में दिल्ली में इनका निधन हुआ ।
महान हिन्दी प्रेमी विद्वान को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !
1939-42 में धर्मशास्त्र का प्रशिक्षण लिया व 1941 में पुजारी के रूप में मान्यता मिली ।
1942-44 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में संस्कृत में स्नातकोत्तर अध्ययन उपरान्त 1945 में उपाधि प्राप्त की ।1945-49 में शोध कार्य किया व 1949 में इल्लाहबाद विश्वविद्यालय से इन्हें हिन्दी साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि मिली । इनके शोध का विषय ' राम कथा का विकास' था ।
1949 में ही इन्हें सेंट ज़ेवियर कॉलेज में संस्कृत व हिंदी का विभागाध्यक्ष नियुक्त किया गया ।श्रवण शक्ति में बाधा के फल स्वरूप इनने अध्ययन और शोध की ओर ध्यान केंद्रित किया । 1950-51 में इन ने भारत की नागरिकता ग्रहण की ।
अंग्रेजी- हिन्दी शब्दकोष का संकलन किया व हिन्दी में एक उपन्यास 'नील पक्षी' की भी रचना की ।
हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के प्रति इनका प्रेम अद्वितीय था और कवि तुलसी के प्रति अपार श्रद्धा ।
1974 में इन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया व हिंदी के उत्थान हेतु बनाये गए राष्ट्रीय आयोग के सदस्य भी नियुक्त हुए ।
17 अगस्त 1982 में दिल्ली में इनका निधन हुआ ।
महान हिन्दी प्रेमी विद्वान को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !
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