Wednesday, January 13, 2010

happy lohri

आज लोहड़ी के पावन पर्व के अवसर पर बचपन की याद ताज़ा हो आई .
बच्चों की टोली सड़क व मोहल्लों में निकल कर लोहड़ी
मांगते हुए ये पंक्तियाँ गाया करती थी :

सुंदर मुंदरिये हो !
तेरा कौन बिचारा हो !
दुल्ला भठ्ठी वाला हो !
जिन्ने धी बियाही हो !
सेर शक्कर पाई हो !
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सच में, बचपन के दिन भी क्या दिन थे !

1 comment:

  1. आर के जी ,
    लोहड़ी मुबारक ,
    आपने लोकगीत लिख कर एक मधुर याद दिला दी
    धन्यवाद
    हाँ आपको एक जानकारी देना चाहूंगी कि प्याज और लहसुन में तेज गंध होने के कारण इसे तामसी प्रवृति का कहा जाता है ,ये तेज गंध मस्तिष्क को एकाग्र नहीं होने देती ,उथल पुथल ज्यादा होती है जिसके कारण आप खुद जल्दी डिसाईड नहीं कर पाते कि आपको क्या करना चाहिए ,मान लीजिये कहीं एक सेकेण्ड देर से लिया हुआ निर्णय किसी की जिन्दगी ख़त्म कर दे तो .......
    इसीलिए बुजुर्गों ने इसे तामसी प्रवृति का बताया है ताकि हम इससे पर्याप्त दूरी बनाए रखें .

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