Sunday, June 1, 2014

‘उसने तो नहीं कहा था’

भारतीय भाषा परिषद कोलकाता से प्रकाशित होने वाली मासिक साहित्यिक पत्रिका ‘वागर्थ’ के मई अंक में यों तो प्रेमचन्द , ‘रेणु’, यशपाल , भीष्म साहनी जैसे स्वनामधन्य कथाकारों-उपन्यासकारों की कुल दस कहानियां जो पठनीयता में एक से बढ़ कर एक हैं ,शामिल हैं परन्तु प्रख्यात कथाकार स्व. शैलेश मटियानी द्वारा रचित कहानी ‘उसने तो नहीं कहा था’ अपने शीर्षक के कारण बरबस ध्यान आकृष्ट करती है. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कालजयी कहानी ‘उसने कहा था’ को बीसियों बार पढ़ने के बाद शैलेश मटियानी की इस कहानी को पढ़ना भी एक सुखद अनुभव रहा.समानता की बात करें तो दोनों कहानियों के केंद्र में दो-दो फ़ौजी और एक एक महिला है, दोनों युद्ध के मोरचे की पृष्ठभूमि लिए हैं . ‘उसने कहा था ’ में सिपाही लहना सिंह अपनी जान पर खेल कर सूबेदार हजारा सिंह की जान की रक्षा करता है , क्योंकि ‘उसने’ यानी सूबेदारनी जो उसके बचपन की परिचित है , ने ‘कहा था’ . दूसरी ओर शैलेश मटियानी की कहानी में दोनों फ़ौजी- जसवंत सिंह और कुंवर सिंह, एक ही महिला यानि लछिमा ठकुराइन से प्यार करते हैं ,इस कारण एक दूसरे की जान भी लेने पर उतारू प्रतिद्वंद्वी प्रतीत होते हैं . परन्तु मोर्चे पर तैनाती के समय, जान लेने का ‘सुअवसर’ प्राप्त होने पर भी एक फौजी, दूसरे की जान बचाता है और गोली चलाने वाले शत्रु सैनिक को ढेर कर देता है. लछिमा ठकुराइन पत्नी तो सिर्फ एक की है पर प्यार दोनों से बराबर करती है.’उसने तो नहीं कहा था’ पर इस महान कृत्य के पीछे प्रेरणा लछिमा ठकुराइन ही है. दोनों कहानियों में प्रेम का उदात्त स्वरुप दिखाया गया है. दो महान कथा शिल्पियों के हाथों दोनों ही रचनाएँ बेजोड़ बन पड़ी हैं.

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