Sunday, May 31, 2015

गुलेरी जी की कहानी ‘हीरे का हीरा’

हिन्दी साहित्यिक पत्रिका ‘वागर्थ’ के मई अंक में वरिष्ठ साहित्यकार सुदर्शन वशिष्ठ जी का एक आलेख ‘ गुलेरी के कथा संसार में लहना सिंह की वापसी ‘ शीर्षक से छपा है जिसमे पं. चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की रचना प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण सामग्री जुटायी गई है । अन्य बातों के अलावा केंद्र-बिन्दु में गुलेरी जी की एक और कहानी ‘हीरे का हीरा’ है , जिसे कालजयी कहानी ‘उसने कहा था’ का विस्तार माना गया है. यों एक सामान्य पाठक की दृष्टि से, ‘उसने कहा था’ अपने प्रचलित स्वरूप में भी एक मुकम्मल कहानी लगती है , जिसमे लहना सिंह अपने प्रेम, कर्तव्य और बलिदान की बिना पर एक उदात्त नायक बन कर उभरता है और कहानी के अंत में उसे जिस डेलीरियम में दिखाया गया है, वह प्रकट रूप से जीवन के आखिरी क्षण लगते हैं. यही सब कुछ लहना सिंह के किरदार को अमर बनाता है . दूसरी कहानी का पात्र भी सिपाही लहना सिंह है , जो युद्ध में वीरता दिखाता है और तमगे भी हासिल करता है , पर अपनी एक टांग गंवा चुका है, जिस रूप में उसे देखना उसकी माँ और पत्नी के लिए स्वाभाविक तौर पर पीड़ादायक है, जब कि इस बात से अनजान दोनों ने उसके स्वागत की तैयारी अपने सीमित साधनों के बावजूद उमंग और उत्साह से कर रखी है.हीरा लहना सिंह का सात वर्षीय पुत्र है. ‘हीरा’ शब्द पिता पुत्र दोनों के लिए प्रयुक्त जान पड़ता है., क्योंकि दोनों एक दूसरे के ‘हीरा’ ही हैं . कहानी की परिस्थितियाँ ‘उसने कहा था’ से बिलकुल भिन्न लगती हैं, यद्यपि पृष्ठभूमि में युद्ध ही है. ‘हीरे का हीरा’ में चीन के साथ किसी युद्ध का वर्णन है, जो ‘उसने कहा था’ के युद्ध से मेल नहीं खाता.कहानी में गुलेरी जी ने, कांगड़ा क्षेत्र के रीति रिवाजों, और संस्कृति को अपने भाषा कौशल से जिस तरह उकेरा है, वह अद्वितीय है.
गुलेरी जी की कहानी और वशिष्ठ जी का आलेख दोनों पठनीय तथा रोचक हैं.

Monday, May 25, 2015

Maggi

A controversy is  going on about Maggi  containing  more than the  permitted quantity  of MSG .This worries me  also a  bit. I remember, when Maggi 2 minute noodles hit the Indian  market  in late seventies or early eighties amid  wide publicity and advertisement in all types of media, it became a hot favourite with the urban  moms.  Here was  an easy way to satisfy the hunger of  infants and growing up school children , especially when they came back from school crying hunger. With no child in our family at that point of time, packets of Maggi were brought with great fanfare to see what it tasted like. No one liked it , my mother particularly  rejecting it  for having  जैलणु (worm) like appearance.

Later,  when I was posted at Pooh, in the tribal district of Kinnaur in 1986.I saw packets and packets of Maggi , prominently displayed in  3-4 shops there. With no halwai shop worth the name where  one could indulge  with occasional  samosa  or gulab jamun, or pakoras , Maggi   was the only available  choice by way of snacks.Surprisingly the initial aversion or hesitation  turned to liking it , which persists to this day. My son, whenever comes home on leave, always asks , “Maggi hai na  ghar mein ?”. And I set about to  prepare it for him , the only  thing I can prepare, besides tea. Hope  Nestle  does something about it to  put  the controversy to rest. 

Wednesday, May 20, 2015

Exam Results

How times have changed ! This is result season, and with fingers crossed students await their Board’s exam results. Vernacular print media is full of photographs of very successful students, coming out with flying colors at anything between 90 to 99 or may be 100 percentile . Students too spell out their future plans, while passing on due credit to their teachers and parents. I remember with amusement my days as a student. In the year 1969, when Panjab University declared their Higher Secondary Part –I results , one of our class mates Sushil Ramola had stood second in the University with a score 715 out of 825 . No mean achievement for the school and the teachers though not unexpected from a genius like him . No photograph in the newspaper, no interview published anywhere followed . However, there was a special morning assembly , students scoring 80 percent and above were made to stand up in the gathering to be cheered. A 100 Rupee cash award- not a small amount then- was given to the above mentioned topper. Sushil Ramola repeated the feat next year also and stood second in Higher Secondary Part –II , that time held by the H.P. Board. I do not know how the occasion was celebrated , as being an out going class, none of us was there.

सुमित्रानंदन पंत


प्रकृति के अनुपम चितेरे सुकुमार कवि  सुमित्रानंदन पंत की आज जयंती है.आज ही के दिन नैसर्गिक सौंदर्य से सराबोर अल्मोड़ा के कोसानी गाँव में 1900 ई॰ को जन्मे , गुसाईं दत्त से सुमित्रानंदन बने पंत जी ने वृहद साहित्य सम्पदा छोड़ी है.उत्तर छायावाद के प्रतिनिधि कवि  तो वे है ही. प्रकृति प्रेम उनकी कविता मे प्रमुखता से विद्यमान है, और ग्रामीण जीवन ने  उन्हें  विशेष रूप से आकर्षित व प्रभावित किया है. उनके एक काव्य संग्रह का नाम ही ग्राम्या है, और  ग्राम-श्री नामक कविता में तो मानो प्रकृति सजीव और साकार  हो उठती है।
“फैली खेतों में दूर तलक,
मखमल सी कोमल हरियाली
लिपटी जिनसे रवि की किरणें
चांदी की सी उजली जाली........”
                                -पढ़ते पढ़ते  पाठक जब
लहलह पालक, महमह धनिया, 
लौकी औ' सेम फली, फैलीं,
मख़मली टमाटर हुए लाल, 
मिरचों की बड़ी हरी थैली
.....” तक पहुंचता है तो मंत्र मुग्ध हो चुका होता है .
अपनी कविता की पंक्तियों –
“छोड़ द्रुमों की मृदु छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया,
बाले तेरे बाल जाल में कैसे  उलझा दूं लोचन......”  में तो पंत जी प्रकृति प्रेम को सर्वश्रेष्ठ मानते  प्रतीत होते हैं.मानवीय सौंदर्य उन्हें  आकर्षित नहीं करता .     
प्रकृति प्रेम  व प्रकृति  वर्णन में पंत जी  अंग्रेज़ कवि  वर्ड्सवर्थ को भी एक तरह से पीछे छोड़ते प्रतीत होते हैं, जबकि  वर्ड्सवर्थ कि कविता में भी प्रकृति से एकरसता प्रचुर मात्रा में पाई जाती है.

इसके अतिरिक्त उनने मधुज्वाल के नाम से उमर खय्याम की रुबाइयों का अनुवाद सीधा  मूल फारसी से किन्ही फारसी विद्वान की सहायता से किया है , जो कि पढ़ते ही बनता है .
एक बानगी:
“खोलकर मदिरालय का द्वार
प्रात ही कोई उठा पुकार
मुग्ध श्रवणों में मधु रव घोल,
जाग उन्मद मदिरा के छात्र!
ढुलक कर यौवन मधु अनमोल
शेष रह जाय नहीं मृद् मात्र
ढाल जीवन मदिरा जी खोल
लबालब भर ले उर का पात्र !.........”
कविवर हरिवंशराय बच्चन और महाप्राण निराला के प्रति  यदि कुछ प्रतिस्पर्धा का भाव है, तो दोनों के प्रति पंत जी की आत्मीयता भी कम नहीं. हिन्दी सिनेमा के सुपर स्टार रहे आमिताभ  बच्चन को  अमिताभ नाम पंत जी का ही दिया हुआ है. निराला के दबंग व्यक्तित्व के आगे  पंत जी यद्यपि लाचार दिखते हैं , तथापि  उनकी काव्य प्रतिभा के प्रति पंत जी का आदर व सम्मान उनकी इन पंक्तियों में झलकता है
“…….जीवन के कर्दम से अमलिन मानस सरसिज
शोभित तेरा, वरद शारदा का आसन निज।
अमृत पुत्र कवि, यश:काय तव जरा-मरणजित,
स्वयं भारती से तेरी हृतंत्री झंकृत........”
माँ सरस्वती के इस वरद सपूत को  श्रद्धांजलि  !

Tuesday, May 19, 2015

Ruskin Bond

 Ruskin Bond, the master story teller turns 81 today. Born in Kasauli , Himachal Pradesh,he spent his childhood at Jamnagar in Gujarat, and was educated at Bishop Cotton School Shimla, the famous residential school in Northern India . Being a native speaker, English comes naturally to him . Indian readers can relate easily to him as his stories and novels are set in Indian towns and cities, like the Hills of Dehra dun and Musoorie . Where else does one find Characters like Mulia, Samyukta, Shankhini, Goonga, Lafunga , Somi….etc etc ! His narrative description is superb. A bachelor, he lives with his adopted family in Mussoorie .Two of his works namely, ‘The Blue Umbrella’ & ‘The Flight of Pigeons’ have been made into films , the former bearing the same name and the latter ‘Junoon’. Both have been widely acclaimed. Another lesser known movie ‘7 Khoon Maaf’ was based on his story Sussana’s Seven Husbands.  ‘Ek Tha Rusty’ was a popular TV serial based on his short stories. One is simply amazed to find that his novelette, ‘Room on the Roof’ was written when he was barely seventeen .He did run into rough weather when he was charged with obscenity for his story ‘The Sensualist’ .He has written poems also, mostly limericks, and good ones at that. He has received Sahitya Academy Award, Padma Shri, and Padma Bhushan for his literary achievements. Age does not not seem to have caught up with him as he is still active at writing and churning out works of merit.
Lately, Ruskin Bond’s book titled ‘A Book of Simple Living: Brief Notes from the Hills’ was released at Mussoorie.
We pray for his long life !

Monday, May 11, 2015

सआदत हसन मंटो

आज एशिया उप महाद्वीप के इस महान कहानीकार की जयंती है. अपने 43 वर्ष से भी कम के जीवनकाल में मंटो अपनी रचनाओं के कारण विवादों से भी घिरे रहे और उनकी कहानियों में अश्लीलता के आरोपों के चलते उन पर कई मुक़द्दमे भी चले। ऐसा उन लोगों के कारण हुआ जो या तो prudish मानसिकता के थे या उन्होने इन रचनाओं को केवल सतही तौर पर पढ़ कर ही अश्लील करार दे दिया था .ऑल इण्डिया रेडियो में अपनी कार्यावधि के दिनों को याद करते हुए अपने संस्मरणों में एक और महान लेखक उपेंद्र नाथ अश्क ने सहकर्मी रहे मंटो से अपने love-hate सम्बन्धों का रोचक विवरण भी कहीं प्रस्तुत किया है .
समाज में व्याप्त बुराइयों तथा शोषण का बेबाकी से चित्रण करने वाले इस महान कथाकार को विनम्र श्रद्धांजलि !

Saturday, May 9, 2015

Mother's Day

Today, when the world   in general  and the social media in  particular are abuzz with  Mother’s Day celebrations, singing  paeans  in praise of mother and mother hood , I am drawn to a  one-act  Play  , ‘Mother’s  Day’ by J B. Priestley  which I read in my college days. The play revolves around one Mrs. Pearson , a devout  wife and a doting mother  who leaves no stone unturned to make her family happy, always slogging it  day in and day out  doing   all  chores big and small. This has gone for years and years, with the kids also grown up . Despite all the pains that she undergoes, , no one takes her seriously and   takes her for granted. Feeling  one  day  that enough is enough she goes to her neighbour and friend  Mrs. Fitzgerald , who  besides being  a  fortune teller is also a magician endowed with  occult powers.Mrs. Fitzgerald is exactly the opposite of Mrs . Pearson- authoritative and  imperious, whom no  one  dare slight or disobey. After deliberations and discussions , Mrs. Fitzgerald suggests that  they  exchange personalities, so that Pearson family could be taught a lesson. All this requires is  muttering  the magic  words Arshtatta dumarshtatta lamarshtatta lamdumbona...”

Now  Mrs. Pearson having become  Mrs. Fitzgerald  and vice versa, things become  really difficult  for Pearson  family . The first surprise is the kids finding their mother smoking. The curt and rude behavior of  the  new Mrs. Pearson  baffles  the husband and the kids. Looking from a distance,Mrs.Pearson, in the body of Mrs. Fiztgerald  does not relish her kids and husband being subjected to  such ‘torture’  The two friends decide to  revert to original  positions  only when convinced that Pearson family  has learnt the necessary  lesson  of not slighting  or ignoring  Mrs. Pearson or taking her for granted.

The play has also  some hilarious moments. There is a clear message that the lady of the house  needs being respected, cared for and  obeyed .Here the term  ‘Mother’s Day’ is used in  somewhat negative  sense, signifying, retaliation and protest  but then, it is the proverbial  last straw that breaks the camel’s back. We need more than  mere  tokenism to  acknowledge and appreciate  the real worth of mother and motherhood. 

Thursday, May 7, 2015

शिव बटालवी

बिरह दा सुल्तान शिव बटालवी, पंजाबी कविता का एक अमिट हस्ताक्षर। शिव बटालवी की आज पुण्यतिथि है। अपने जीवन के  37वें वर्ष में ही इस संसार को अलविदा कहने वाले इस अत्यंत लोकप्रिय कवि को सबसे कम उम्र में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होने का गौरव हासिल है। अपने अल्प जीवन काल में लूना  काव्यनाटक की रचना के साथ साथ अनेकों गीत व कविताएं भी रची। उनकी कविताओं में सौंदर्य, प्रेम , भावावेग, विरह आदि सब का समावेश मिलता है । बिना आडंबर के, सीधे सादे शब्दों में गूढ़ भावों की अभिव्यक्ति शिव बटालवी  को अलग पहचान ही नहीं देती बल्कि उन्हें कवियों की अग्रिम पंक्ति मे  भी खड़ा करती है.  मैनु तेरा शबाब लै बैठा..... और चरखा मेरा रंगला विच सोने दियाँ मेखां...... तो लोकप्रियता के शीर्ष पर हैं।उनकी कविता में क्लासिकल और रोमांटिक दोनों का समावेश और समन्वय मिलता है। यूं उनकी तुलना अंग्रेज़ रोमांटिक कवि शैले  से भी की गई है परंतु शिव बटालवी, जॉन कीट्स के  काफी  निकट  पाये जाते हैं। सौन्दर्य बोध , मृत्यु की ईच्छा व मृत्यु का पूर्वाभास  दोनों में पाया जाता है। उल्लेखनीय है कि शिव बटालवी और कीट्स दोनों ने ही दीर्घायु नहीं पाई और  युवावस्था में ही सिधार गए .
शिव बटालवी के गीत/ कविता की एक बानगी:
“असां ते  जोबण रुते मरना
टुर जाणा असां भरे भराये
एह मेरा गीत किसे न गाणा
एह मेरा गीत मैं आपे गा के
 भलके ही मर जाणा.......”
                                       ----------
“माये नी माये
मैं इक  शिकरा यार बनाया
ओदे सिर ते कलगी
ओदे पैरीं  झाँझर
ते ओ चोग चुगेंदा आया......”
                                     ……………….
“ जाच मैनु  आ गयी  गम  खाण दी
  हौली हौली रो के जी परचाण   दी......”
                             ----------------------
“जी करदा  ए  इस दुनिया नू  मैं हस के ठोकर मार देयां......”