Thursday, March 8, 2018

शहर की शराफ़त

शहर की शराफ़त
( कहानी संग्रह )
लेखक :शेर सिंह
ISBN: 978-81-7667-347-1
भावना प्रकाशन ,
109-ए,  पटपड़ गंज , दिल्ली- 110091
पृष्ठ संख्या:144
मूल्य: रु॰ 350/-
प्रस्तुत कहानी संग्रह श्री शेर सिंह का दूसरा  कहानी संग्रह है ।इससे पूर्व उनका एक कहानी संग्रह ‘आस का पंछी’ व काव्य संग्रह ‘ मन देश है, तन प्रदेश’  प्रकाशित हो चुके हैं । उनकी कहानियाँ व कविताएं नियमित रूप से पत्र- पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होती रहती हैं ।
इस संग्रह का शीर्षक  ‘शहर की शराफ़त’ अपने आप में व्यंग्य , विद्रूपता समेटे हुए है जो लेखक के मन्तव्य  को उद्घाटित करता है। लेखक का संबंध हिमाचल प्रदेश के कुल्लू ज़िला से है । अपने गृह राज्य हिमाचल प्रदेश से कहीं अधिक इनका कार्य स्थल   बाहर के राज्यों के विभिन्न स्थानों में रहा है, जिनमें कुछ महानगर भी शामिल हैं। परिणाम स्वरूप लेखक का दृष्टिकोण व्यापक और दृष्टि पैनी है । इस संग्रह में कुल ग्यारह कहानियाँ हैं, जिनकी विषय वस्तु अलग अलग है।
शुरू की कहानी  ‘अभिशप्त’ के केंद्र में कभी दबंग रही पर अब अस्सी को पहुँच चुकी बुजुर्ग महिला देवयानी शर्मा  है । जवानी में बेमेल विवाह के चलते उसकी पति से बिलकुल नहीं पटी और अपने कर्कश स्वभाव के चलते अपनी बहुओं के भी उसका व्यवहार ठीक नहीं रहा । चार बेटों की माँ बनी पर  आधे से अधिक परिवार को गंवा चुकी देवयानी को इस अवस्था में अपने पोते की दवा- दारू व सेवा सुश्रुषा करनी पड़ रही है, जिसकी बीमारी  किसी भी श्रेणी में नहीं कही जा सकती  और अपरिभाषित है । कहानी का शीर्षक  ‘अभिशप्त’ उचित जान पड़ता है, पर इसमे नैसर्गिक न्याय की भी बात आती है । अँग्रेजी में कहें तो life has come full circle for her.

दूसरी कहानी ‘सफर में’  में रेल यात्रा के दौरान एक पूर्व मंत्री व उसके साथी सहयोगियों से मुलाकात , घटना क्रम आदि का जीवंत अनुभव दर्शाया गया है । किस प्रकार पद में न रहने की कुंठा व निराशा, चाहने वालों की भीड़ देख कर काफूर हो जाती है, देखते ही बनता है।राजनेताओं व जन प्रतिनिधियों की मनोवैज्ञानिक स्थिति का सुंदर चित्रण इस कहानी में मिलता है ।
तीसरी कहानी ‘अतृप्ति’ के केंद्र में 70-72 साल के एक सेवा निवृत्त  अधिकारी  मि. गर्ग  है जो कि भूलने की बीमारी से ग्रसित हैं । परिवार वालों ने उनकी देख भाल के लिए रानी नाम की एक युवती  रखी  है। कहानी मोड़ तब लेती है जब मि.गर्ग अपनी पोती की उम्र की उस युवती से प्यार की मांग कर बैठते हैं।कहानी में यहाँ तक पहुँचते ही ग़ालिब का शेर जेहन में आता है-“गो हाथ में जुंबिश नहीं, आँखों में तो दम है...”। निश्चित रूप से  70-72 साल के एक बुजुर्ग का यह व्यवहार अप्रत्याशित है पर इसमे केवल निवेदन भर है, ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं ।रानी इस बात का ज़िक्र मिसेज गर्ग से करती है, पर मिसेज गर्ग ज़्यादा सङ्ग्यान नहीं लेती और रानी को थोड़ा समझाने की कोशिश करती है ।पर रानी को  तब तक चैन नहीं पड़ता जब तक कि वो पड़ोसिनों पर इस बात का खुलासा नहीं करती । परिणाम स्वरूप, मि. गर्ग उपहास का पात्र बनते हैं ।मेरी दृष्टि में यह एक mitigating  circumstance  है, जो मि. गर्ग के प्रति कुछ सहानुभूति जगाती है और साथ ही घरेलू नौकरों की मानसिकता की ओर भी संकेत करती है।
‘शिकारी’ कहानी में येन केन प्रकारेण शहर में व्यवसायिक लाभ के दृष्टिगत ज़मीन हड़पने की कोशिश में रहने वाले लोगों का वर्णन है , जो इस प्रयोजन हेतु -साम दाम दंड भेद - कोई भी नीति अपनाने में नहीं चूकते ।कहानी प्रथम पुरुष में लिखी गयी है। लेखक एक ऐसे ही व्यक्ति के जाल में नहीं फँसता और अपना बचाव कर लेता है । ‘शिकारी’ सदा शिकार की तलाश में रहते हैं । मेरी राय में   poetic justice  का कुछ ध्यान रखते हुए यदि ऐसे चाल बाज़ लोगों को किसी अंजाम तक पहुंचाया जाता तो कहानी का प्रभाव कुछ अधिक हो सकता था।

‘माँ’ कहानी में लगभग अपंग हो चुकी  एक बुजुर्ग महिला का वर्णन है, जिसकी कर्तव्यपरायण एवं ममतालु पुत्री  प्रिया उसे अपने घर ले आती है   पर अपनी सास के दिन रात के  तानों  और लड़ाई झगड़े के चलते अपने आप को असहाय पाती है  और अपने भाई से माँ को ले जाने का आग्रह करने पर मजबूर हो जाती है । बुजुर्ग महिला की हालत द्रवित करती है और कहानी रिशतेदारों और बेटों की  संवेदन हीनता की ओर संकेत करती है ।
‘अजनबी हमसफर’ भी सहयात्री जोड़े  के मनोविज्ञान का अच्छा विश्लेषण करती है और उनकी जुगाड़ू प्रवृत्ति से रूबरू  करवाती है। एयर पोर्ट और विमान यात्रा का जीवंत विस्तृत विवरण अपने आप में अद्भुत है और पाठक को हवाई यात्रा का पूरा आस्वाद कराने में सक्षम है। विमान यात्रा करने वाले अथवा कर चुके  पाठक सहज ही कहानी से जुड़ाव महसूस कर सकते हैं ।‘अनुशासन का कीड़ा’ में एक खब्ती उच्चाधिकारी के मातहत कार्य कर रहे कनिष्ठ अधिकारी  के उत्पीड़न और प्रताड़णा का  अनूठा चित्रण है, जिस से जुड़ाव सहज और संभव है । हम में से अधिकतर नौकरी पेशा लोग कभी न कभी ऐसे पर पीड़क तथा  maverick  अधिकारियों के पल्ले जरूर पड़ते हैं ।

‘बड़े अधिकारी का निरीक्षण दौरा’  में मंत्रालय  से निरीक्षण पर आने वाले अधिकारी के लिए मेजबान अधिकारियों को कितना ताम झाम करना पड़ता है  और किस तरह मिजाजपुर्सी के साथ साथ नखरों को झेलना पड़ता है, इसका बहुत विस्तार और रोचक शैली में खुलासा किया गया है । तथाकथित निरीक्षण वास्तव में अधिकारी द्वारा सैर सपाटे का ही जुगाड़ लगता है । भुक्त भोगी इस कहानी से जुड़ाव महसूस कर सकते हैं ।
‘दरकते रिश्ते’ कहानी दो परिवारों के बीच आत्मीय रिश्तों से शुरू हो केआर, इनमें से एक परिवार पर, नव ब्याहता दुल्हन द्वारा उत्पीड़न  का झूठा आरोप लगाया जाना  IPC की धारा 498ए  के दुरुपयोग पर प्रकाश डालती है है , जैसा की आम देखने में आ रहा है ।
‘सुबह का उजाला’  में एक गरीब सहयात्री महिला व उसके बच्चों का बस किराया एक महिला की पहल पर अन्य यात्री जुटाते हैं , इससे  आत्मिक संतोष की जो भावना उभरती है वह   मानवता के अभी ज़िंदा होने का भी सबूत देती है ।
शीर्षक कहानी ‘शहर की शराफ़त’ बदलते समय, generation gap, की ओर संकेत करती है, जिसमें लोगों के आत्मकेन्द्रित होने के साथ साथ सम्बन्धों की ऊष्मा के लुप्तप्राय: होने की ओर संकेत है । अलबत्ता ऐसा अब केवल बड़े शहरों मे  सीमित न हो कर  अन्य स्थानों पर भी  देखने में आ रहा है ।
जाने माने कथाकार सूरज प्रकाश द्वारा दिये गए आमुख  से पूर्ण सहमति है । कहानियाँ निश्चित तौर पर ईमानदारी से लिखी गयी रचनाएं हैं , जो आस पास के परिवेश , व्यक्तियों, घटनाओं  व  अनुभवों पर आधारित हैं, जो कि अपने आप में जीवन की विसंगतियों और विद्रूपताओं को समेटे हुए हैं  कहानी संग्रह  सहज व सादा भाषा शैली में होने के कारण पठनीय  है और बहुत कुछ सोचने पर भी मजबूर करता है ।
 लेखक से भविष्य में भी बहुत कुछ की आशा की जाती है ।

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