एक भूतपूर्व मॉल रोड प्रेमी होने के नाते आजकल के कॉरोना दौर में मेरे मस्तिष्क में कुछ विचार आना लाज़मी है । मसलन मॉल रोड तफरीह की या एक छोर से दूसरे छोर और वापिस, इस तरह घूमने की जगह नहीं , सिर्फ बीच से गुजरने की जगह है ।
एक तरफ़ा आमदरफ्त के चलते सामने से आता कोई चेहरा नज़र आने वाला नहीं ।सब एक ही दिशा में जाते दिखेंगे । दाएं बाएं ताक झाँक की जुर्रत भी न करें क्योंकि guide- cum- guardian की भूमिका में पुलिस हर वक़्त विराजमान है । वैसे भी आज कल चेहरा देखने दिखाने के लिए नहीं, छुपाने के लिए है । वक़्त का तकाज़ा कुछ ऐसा ही है । हाथ जेब में नहीं बल्कि carry bag उठाये हुए हों ताकि ऐसा लगे आप तफरीह के लिए नहीं, बल्कि कुछ ज़रूरी खरीदारी करने निकले हैं । आप लोअर बाजार की अनदेखी नहीं कर सकते , आपको वहाँ से हो कर गुज़रना ही है । भूल जाइए कि कोई नव विवाहित खूबसूरत जोड़े या फैशन परस्त पर्यटक आपको नज़र आने वाले हैं । किसी से हाथ न मिलाना और सामाजिक दूरी बनाए रखना तो समयानुकूल आवश्यकता है ही । ऐसे में विख्यात हिंदी साहित्यकार स्व. कृष्ण बलदेव वैद का हिंदी साहित्य पत्रिका विपाशा में बरसों पूर्व मॉल रोड के विषय में छपा संक्षिप्त किन्तु मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि वाला लेख याद आ रहा है ।
आज वो मॉल रोड पर आते तो क्या लिखते !
एक तरफ़ा आमदरफ्त के चलते सामने से आता कोई चेहरा नज़र आने वाला नहीं ।सब एक ही दिशा में जाते दिखेंगे । दाएं बाएं ताक झाँक की जुर्रत भी न करें क्योंकि guide- cum- guardian की भूमिका में पुलिस हर वक़्त विराजमान है । वैसे भी आज कल चेहरा देखने दिखाने के लिए नहीं, छुपाने के लिए है । वक़्त का तकाज़ा कुछ ऐसा ही है । हाथ जेब में नहीं बल्कि carry bag उठाये हुए हों ताकि ऐसा लगे आप तफरीह के लिए नहीं, बल्कि कुछ ज़रूरी खरीदारी करने निकले हैं । आप लोअर बाजार की अनदेखी नहीं कर सकते , आपको वहाँ से हो कर गुज़रना ही है । भूल जाइए कि कोई नव विवाहित खूबसूरत जोड़े या फैशन परस्त पर्यटक आपको नज़र आने वाले हैं । किसी से हाथ न मिलाना और सामाजिक दूरी बनाए रखना तो समयानुकूल आवश्यकता है ही । ऐसे में विख्यात हिंदी साहित्यकार स्व. कृष्ण बलदेव वैद का हिंदी साहित्य पत्रिका विपाशा में बरसों पूर्व मॉल रोड के विषय में छपा संक्षिप्त किन्तु मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि वाला लेख याद आ रहा है ।
आज वो मॉल रोड पर आते तो क्या लिखते !
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