यांरा से वौलोंगौंग
(संस्मरण व यात्राएं )
लेखक- शेर सिंह
I.S.B.N : 978-81-7667-391-4
प्रकाशक : भावना प्रकाशन
109-A पटपड़ गंज, दिल्ली- 110091
पृष्ठ संख्या : 144
मूल्य : 395 रुपये
एक काव्य संग्रह व दो कहानी संग्रहों के बाद ‘यांरा से वौलोंगौंग’, कवि ,कथाकार, लेखक मित्र श्री शेर सिंह की यह चौथी पुस्तक है । यह लेखक के संस्मरणों व यात्राओं संबंधी लेखों का संग्रह है । यांरा अथवा यंगरंग हिमाचल प्रदेश के एक दूरस्थ ज़िला लाहुल का एक छोटा सा गाँव है जो लेखक का पैतृक स्थान है, और ‘वौलोंगौंग’ ऑस्ट्रेलिया के सिडनी के अन्तर्गत एक तटवर्ती नगर का नाम है ।यह पुस्तक लेखक ने अपने पैतृक स्थान यांरा को समर्पित की है l जैसा कि संग्रह के नाम से स्पष्ट है , लेखक की अब तक की जीवन यात्रा और इस दौरान अर्जित किए गए अनुभव इन्हीं दो बिदुओं के मध्य हैं । शेर सिंह का सौभाग्य है कि जीविकोपार्जन के कारण ही सही , उन्हें गृह राज्य हिमाचल के अतिरिक्त भारत के अन्य राज्यों में सेवाएं प्रदान करने और रहने का अवसर प्राप्त हुआ है और अपने अनुभवों को लेखनीबद्ध करने की अपनी रुचि, क्षमता और प्रतिभा का यथोचित उपयोग उनकी प्रकाशित रचनाओं के रूप में हमारे सामने है । पुस्तक के प्रारम्भ में ‘अपनी बात’ भी पठनीय है और अपने अपने क्षेत्र में ख्यातिप्राप्त कुछ सुधीजनों के उद्गार पुस्तक की सामग्री, विषयवस्तु की गुणवत्ता पर प्रकाश डालते हैं ।
इस संग्रह में विभिन्न विषयों पर आधारित कुल 25 लेख हैं । पुस्तकाकार छोटा होते हुए भी इसका फ़लक विस्तृत है, जिसमे, भाषा, शिक्षा,धार्मिक आस्था, संस्कृति, विज्ञान, एवं प्रचलित मान्यताएं , जो कि व्यापक संदर्भ में निराधार और अनुचित प्रतीत होती है, इस सभी का समावेश है । पाठक के सामान्य ज्ञान में वृद्धि होने का भी लाभ समाहित है ।
सबरीमाला मंदिर पर आधारित संग्रह के प्रथम लेख पर जहां एक ओर अय्यपा स्वामी के उद्भव की जानकारी मिलती है वहीं आस्था मे डूबे व्यक्तियों द्वारा एक निश्चित अवधि के दौरान वेशभूषा और आचरण संबंधी कठोर अनुशासन का पालन किए जाने का रोचक विस्तृत विवरण है । वेलूर के ऐतिहासिक क़िले पर लेख इतिहास के साथ साथ लगभग तीस वर्ष पूर्व घटी एक घटना के काले अध्याय की भी याद दिलाता है । अपनी ऑस्ट्रेलिया यात्रा और प्रवास के दौरान हुए अनुभवों, दृश्यों, वस्तुओं, भवनों, स्मारकों का विस्तृत विवरण पाठक को बांधे रखने में सक्षम है ।विदेशी भूमि पर निर्मित मन्दिर और गणेश पूजा का आंखो देखा वर्णन भी प्रवासी एवं विदेश की नागरिकता प्राप्त भारतवंशी लोगों की धार्मिक आस्था पर पर्याप्त प्रकाश डालता है । कुछ लोगों शक्लसूरत से उनकी राष्ट्रीयता का अनुमान लगाना भी इतना सहज नहीं , जितना हम समझते हैं , ऐसा भी लेखक का अनुभव रहा है । अन्तरराष्ट्रीय विवाह को ले कर जो भ्रांतियां अथवा पूर्वाग्रह/ दुराग्रह , विशेषकर दो ऐसे देशों के संदर्भ में जिनके संबंध किसी भी दृष्टि से मैत्रीपूर्ण नहीं कहे जा सकते, वे भी विदेशी भूमि पर प्रत्यक्षदर्शी को निराधार और अनुचित लगते हैं । ऐसे दंपती विदेश में सुखी जीवन बिताते दिखते हैं । लेखक के दूसरे राज्यों के अनुभव भी कम रोचक नहीं ।रहन सहन, जलवायु, खान पान की विविधता, सब कुछ का वर्णन इन लेखों में मिलता है।साहित्य, पत्रकारिता, विज्ञान क्षेत्र की नामचीन हस्तियों सेअपने परिचय का वर्णन भी लेखक ने रोचक रूप में प्रस्तुत किया है । कुल मिला कर विभिन्न स्थानों पर रहने का अनुभव बहुत कुछ तो सिखाता ही है और साथ में दृष्टिकोण को भी व्यापकता प्रदान करता है ।अनेकता में एकता की राष्ट्रीयता की भावना भी अनेक प्रकार की संस्कृतियों के साक्षात्कार से जागृत होती है ।
राष्ट्रीयकृत बैंक – सिंडीकेट बैंक में वरिष्ठ प्रबन्धक ( राजभाषा )के पद से सेवानिवृत्ति के बाद लेखक स्वतंत्र लेखन में मशगूल हैं । लेखक के अनुसार इस संग्रह के अधिकतर लेख पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं । उनके द्वारा इन लेखों को पुस्तकाकार में पाठकों के समक्ष लाना स्वागत योग्य है ।
भविष्य के लेखन के लिए भी लेखक को शुभकामनाएं !!
No comments:
Post a Comment