बकौल ग़ालिब 'मौत का एक दिन मुअय्यन है, नींद क्यों रात भर नहीं आती' । यह सामान्य दिनों का शाश्वत सत्य है । मौत निश्चित है पर समय निश्चित होते हुए भी ज्ञात नहीं । यही निश्चितता में अनिश्चितता की स्थिति जीवन को चलाए हुए है । पर कॉरोना काल में असमय काल का ग्रास बनते लोगों के बारे में देख सुन कर सहज ही हर प्रकार से भयावह और चिंता जनक बनी स्थिति का स्वतः अनुमान हो जाता है । हर आयु के लोग संक्रमण से प्रभावित हो रहे है । कोविड19 कई स्वरुप बदल चुका है । आवश्यक सावधानी हेतु व्यापक प्रचार हो रहा है । दुर्भाग्यवश कुछ ऐसे प्रबुद्ध , पढ़े लिखे, बुद्धिमान लोग भी जीवन से हाथ धो बैठे हैं जिन्होंने संभवतः स्वयं कोई असावधानी नहीं बरती पर दूसरे लोगों की असावधानी से कोविड की जद में आए ।
आश्चर्य और दुःख होता है कुछ युवा और कुछ उम्रदराज़ लोगों को देख कर जिन्होंने आस पास की घटनाओं से कोई सबक़ नहीं लिया और डॉन बन कर बिना मास्क के और सावधानी के अन्य मानकों को धत्ता बता कर घूमते हुए स्वयं के अतिरिक्त औरों के लिए भी खतरा बनते हैं ।
अंग्रेज़ कवि जॉन डन के शब्दों को थोड़ा परिवर्तित करते हुए -
For whom the bell tolls , it tolls for me को ध्यान में रखते हुए ही बचाव संभव है ।
वैक्सीन आने और उसके प्रभाव से रोग या संक्रमण से मुक्त होने के लिए अभी कई पड़ाव पार करने होंगे ।
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