हमारे समय में स्कूल से भागने या घर से स्कूल के लिए चल कर भी अनुपस्थित रहने वाले एक-दो विद्यार्थी हर कक्षा में होते थे । कभी घर से कोई आता था तो अनुपस्थित पाए जाने पर घर में ज़रूर मंजायी होती होगी पर असर कम ही दिखता था ।
मैं चाहे अच्छा या बुरा जैसा भी स्टूडेंट रहा हूँगा, पर हर तरह से अनुशासित था और नियमित रूप से स्कूल में उपस्थित रहता था ।
स्कूल आते समय एक भद्र पुरुष से रोज़ सामना होता था जो मुझे ध्यान से देखते थे ।एक दिन यह सोच कर कि शायद मेरे पिता श्री के कोई परिचित होंगे, मैंने उन्हें नमस्ते कर दी ।
विडम्बना यह कि मेरी नमस्ते सुनने के बाद बम कुछ यूँ फूटा 'हाँ भई भागता तो नहीं अब ?' मैं और मेरा एक सहपाठी जो मेरे साथ था, दोनों हैरान परेशान ! मैंने कुछ सामान्य हो कर कहा कि उन्हें कुछ गलती लगी है । ' तुम्हारा नाम ....नहीं है ?' उन्होंने पूछा । ' जी मेरा नाम रमेश है ।' मैंने कहा । 'ओहो, ग़लती लग गयी' कह कर वो चलते बने ।
सबसे पहले तो मेरे साथ के सहपाठी ने ही खबर ली कि एक अनजान आदमी को नमस्ते करने की क्या पड़ी थी । उसके बाद उनके द्वारा बताए नाम के लड़के की खोज की तो लगा गलती लगने लायक़ समानता क़द काठी और complexion में ज़रूर थी ।
इस घटना के बाद भी उनसे सामना होता रहा पर दोनों अपनी अपनी झिझक से एक दूसरे के पास से गुज़रते रहे ।
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