कल 2 जून था/थी और हस्बे मामूल दो जून की रोटी को ले कर कुछ हंसी मज़ाक वाली पोस्ट्स भी नज़र से गुज़रीं ।कोविड महामारी के चलते दो जून की रोटी का जुगाड़ भी एक समस्या का रूप ले चुका है विशेषकर रोज़ कमा कर रोज़ खाने वाले मजदूर वर्ग के लिए। गत वर्ष की तरह इस वर्ष मजदूरों के पलायन की ख़बरें मीडिया पर सुनने को नहीं मिलीं । क्या हालात इस बार कुछ बेहतर हुए हैं कि पलायन वाली स्थिति उत्पन्न ही न हुई ! निजी क्षेत्र में लाखों करोड़ों लोगों की नौकरियां ज़रूर गयीं हैं, और जिनकी नौकरी चल भी रही है, उन्हें वेतन में कटौती का सामना करना पड़ रहा है। विडम्बना यह कि बड़े बड़े उद्योगपतियों के लाभ और आय में वृद्धि दर्ज की जा रही है । कुल मिला कर आम आदमी के लिए स्थिति चिंताजनक बनी हुई है । कोविड से होने वाली मौतों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा जो एक विचलित करने वाला तथ्य है | लोग फिर भी पूरी सावधानी नहीं बरत रहे व खुद को और दूसरों को भी जोखिम में डाल रहे हैं ।
न जाने भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है !!
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