Sunday, November 6, 2016

ननु ताकती है दरवाज़ा' - श्री रोशन जसवाल

कभी भावनाओं के स्वत: स्फूर्त आवेग तथा कभी गहन विचार मंथन का परिणाम , कविता कुछ भी हो सकती है। चाहे कुछ भी हो, कविता का एक गुण संप्रेषणीयता भी है जिसके लिए सरल सादे शब्दों का चयन अति महत्वपूर्ण है । कुछ व्यक्तिगत अनुभव, कुछ दूसरों के अनुभव, कुछ आस पास घटित होने वाला जो कभी मन मस्तिष्क को कचोटता तो कभी चुनौती देता प्रतीत होता है- इन सबसे कविता बनती है । कई बार विपरीत परिस्थितियों या भाग्य के थपेड़ों के आगे हमारी असहायता भी घोर निराशा का रूप ले कर कविताओं में प्रतिध्वनित होती है।
काव्यसंग्रह ‘ननु ताकती है दरवाज़ा’ भी ऐसी 64 कविताओं का एक गुलदस्ता है । कविताएं सामान्य व्यक्तियों, परिस्थितियों और सोच को विषय- वस्तु बना कर लिखी गयी हैं इसलिए पाठक का इनसे जुड़ाव महसूस करना सहज स्वाभाविक है।1983 से ले कर आज तक , तीन दशकों से भी अधिक के कालखंड में फैली ये कुछ चयनित प्रतिनिधि कविताएं हैं । सर्वप्रथम शीर्षक कविता का विषय ‘ननु’ कविता को लें तो इसमे एक असहाय पिता का अपराधबोध दिखाई देता है, शायद अपनी बेटी ननु की छोटी मोटी ख़्वाहिश पूरी न कर पाने की असमर्थता को ले कर परंतु ननु की आशा ,उसकी उम्मीद कायम ही नहीं, अडिग है इसीलिए “आसान नहीं है ननु बनना....” ।इस को पढ़ कर उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ की कहानी ‘डाची’ की याद आती है गो उसमे परिस्थिति वश बाकर जाट अपनी बेटी की इच्छा पूरी नहीं कर पाता बावजूद इसके कि मूल्य चुका कर डाची वो खरीद लेता है। इसी प्रकार ‘माठु’ कविता में ‘माठु’ का साक्षर होना उसकी शक्ति बनता है व शोषण का विरोध करने में उसकी आवाज़ । साक्षारता अभियान की सफलता का यह एक परिचायक है । ‘औरत’ कविता अपने आप में बहुत कुछ कह जाती है क्योंकि उस परिस्थिति की ओर इंगित करती है जब एक निकम्मे पुरुष से विवाह बंधन में बंध कर सारे परिवार के लालन पालन का बोझ उसे अपने कंधों पर उठाना पड़ता है और वो ‘मर्द’ हो जाती है। ‘परिवर्तन’ कविता की प्रारंभिक पंक्ति ‘परिवर्तन यूं ही नहीं आते’ अपने आप में पूर्ण कविता है और संस्कृत श्लोक ‘ उद्यमेन ही सिद्धयंती, कार्याणि न मनोर्थै ‘ की याद दिलाती है , गोया कुछ नया सोचने, कुछ नया करने की दरकार है ।इसी प्रकार ‘पराजय’ कविता एकदम नए कलेवर की कविता लगती है। ‘दूर के ढोल’ एक असंपकृतता की ओर संकेत करती है, जो तब तक स्वाभाविक या स्वभावगत है जब तक आंच अपने पर न आए !
इस काव्य संग्रह के रचयिता श्री रोशन जसवाल से मेरा व्यक्तिगत परिचय नहीं परंतु ब्लॉग और फेसबुक पर उनके आलेखों के माध्यम से उन्हें कुछ हद तक जानता और पहचानता हूं । आकाशवाणी और दूरदर्शन केंद्र शिमला से प्रसारित उनके समाचार वाचन को सुन कर उनकी वाणी के ठहराव से प्रभावित हुआ हूँ । शायद ये उनके व्यक्तित्व की स्थिरता का भी परिचय है, स्थिरता से मेरी मुराद ठोस धरातल पर रहने से है ।
भविष्य में इस संग्रह की कुछ और कविताओं पर भी प्रकाश डालूँगा ।
संग्रह पठनीय ही नहीं ग्राह्य भी है , इसमे कोई संदेह नहीं।
भविष्य के लिए भी मैं श्री जसवाल को शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ

No comments:

Post a Comment