स्मृति शेष
तेज राम शर्मा
( 25.03.1943 – 20.12.2017 )
तुम को न भूल पाएंगे !
आज पूरा एक वर्ष हो गया आपको गए , पर अब भी विश्वास नहीं होता कि आप भौतिक / शारीरिक अवस्था में अब साथ नहीं हैं । साथ हैं तो आपकी बातें, समय समय पर आपके द्वारा दिये जाने वाले बहुमूल्य परामर्श व मार्गदर्शन और मानवीय संवेदना से युक्त आपकी काव्य रचनाएं । आपके द्वारा गत वर्ष 18 नवंबर को फेसबुक पर डाला गया अंतिम हाइकु-
हाइकु
अनाथ हुए
आत्महा दवा हुई
विधवा हुई
- मन को व्याकुल करता है ।
क्या यह पूर्वाभास था , सब कुछ छोड़ कर चले जाने का ? इतनी जल्दी समर्पण करने वालों में आप नहीं थे. You had been a fighter !
स्वास्थ्य संबंधी जो भी आपकी नज़र से गुज़रता, आपने सदा विभिन्न माध्यमों से मेरे साथ साझा किया। फिर इसे नियति की विडम्बना न कहें तो क्या कहें कि गर्दन की दर्द जिसे केवल cervical spondylosis समझ कर उपचार करवाया जा रहा था , उसके साथ ही शरीर में कुछ और प्रक्रिया भी चल रही थी , जिसका आभास तक न हुआ। आखिर में बाद परीक्षण जब nervous breakdown जैसा कुछ बताया गया तो उस समय बहुत देर हो चुकी थी । नियति अपना काम कर चुकी थी । परिणामत: आप अलविदा कह कर चल दिये । वापिस आयी तो आपकी निर्जीव देह !
आपकी अपनी ही एक कविता, कुछ इस तरह-
जब मैं वापसी की सोचता हूँ -
जब मैं वापसी की सोचता हूँ
तो बहुत आगे निकल चुका होता हूँ
अपनी नियति को बदलने में असमर्थ
यात्रा पर मेरे पहले कदम के साथ-साथ
हवा ने भी अपना रुख बदला होगा
काली बिल्ली काट गई होगी रास्ता
यादव वंश–सा कोई शाप
वहाँ भी फलीभूत हुआ होगा
मुझे डर है
कुम्भीपाक उतर आया होगा
दंत-कथाओं से
ज़मीन पर
उंगलियों के छोर पर
बढ़ आए होंगे नाख़ून
समय नशे में धुत
जगमगाते शहरों में भटक गया होगा
थैली की गर्दन पर
कस गई होगी उसकी पकड़
वापसी जहाँ होगी
समय नहीं ताने होगा वहाँ
तोरण और बंदनवार
वहाँ दहलीज़ पर
फैल गए होंगे कुकुरमुत्ते।
सौजन्य : कविता कोश
------
अनुकरणीय जीवन यात्रा के साथ ही तीन दशक से अधिक की काव्य सृजन यात्रा को भी चिर विराम !
सादर नमन !
तेज राम शर्मा
( 25.03.1943 – 20.12.2017 )
तुम को न भूल पाएंगे !
आज पूरा एक वर्ष हो गया आपको गए , पर अब भी विश्वास नहीं होता कि आप भौतिक / शारीरिक अवस्था में अब साथ नहीं हैं । साथ हैं तो आपकी बातें, समय समय पर आपके द्वारा दिये जाने वाले बहुमूल्य परामर्श व मार्गदर्शन और मानवीय संवेदना से युक्त आपकी काव्य रचनाएं । आपके द्वारा गत वर्ष 18 नवंबर को फेसबुक पर डाला गया अंतिम हाइकु-
हाइकु
अनाथ हुए
आत्महा दवा हुई
विधवा हुई
- मन को व्याकुल करता है ।
क्या यह पूर्वाभास था , सब कुछ छोड़ कर चले जाने का ? इतनी जल्दी समर्पण करने वालों में आप नहीं थे. You had been a fighter !
स्वास्थ्य संबंधी जो भी आपकी नज़र से गुज़रता, आपने सदा विभिन्न माध्यमों से मेरे साथ साझा किया। फिर इसे नियति की विडम्बना न कहें तो क्या कहें कि गर्दन की दर्द जिसे केवल cervical spondylosis समझ कर उपचार करवाया जा रहा था , उसके साथ ही शरीर में कुछ और प्रक्रिया भी चल रही थी , जिसका आभास तक न हुआ। आखिर में बाद परीक्षण जब nervous breakdown जैसा कुछ बताया गया तो उस समय बहुत देर हो चुकी थी । नियति अपना काम कर चुकी थी । परिणामत: आप अलविदा कह कर चल दिये । वापिस आयी तो आपकी निर्जीव देह !
आपकी अपनी ही एक कविता, कुछ इस तरह-
जब मैं वापसी की सोचता हूँ -
जब मैं वापसी की सोचता हूँ
तो बहुत आगे निकल चुका होता हूँ
अपनी नियति को बदलने में असमर्थ
यात्रा पर मेरे पहले कदम के साथ-साथ
हवा ने भी अपना रुख बदला होगा
काली बिल्ली काट गई होगी रास्ता
यादव वंश–सा कोई शाप
वहाँ भी फलीभूत हुआ होगा
मुझे डर है
कुम्भीपाक उतर आया होगा
दंत-कथाओं से
ज़मीन पर
उंगलियों के छोर पर
बढ़ आए होंगे नाख़ून
समय नशे में धुत
जगमगाते शहरों में भटक गया होगा
थैली की गर्दन पर
कस गई होगी उसकी पकड़
वापसी जहाँ होगी
समय नहीं ताने होगा वहाँ
तोरण और बंदनवार
वहाँ दहलीज़ पर
फैल गए होंगे कुकुरमुत्ते।
सौजन्य : कविता कोश
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अनुकरणीय जीवन यात्रा के साथ ही तीन दशक से अधिक की काव्य सृजन यात्रा को भी चिर विराम !
सादर नमन !
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