Tuesday, March 22, 2011

अर्ज़ है !

काफिया, रदीफ़, मिसरा, ये सब सुन रखा है पर इनकी कैफियत मालूम नहीं .
फिर भी दो उदाहरण जो मुझे बतलाये गए थे , आपकी नज़र हैं :

बदगुमानी इस क़दर कि कोई चूम न ले
वो अपने आँचल से नक्शे पा को मिटाए जा रहे हैं

दावते इश्क है चले आओ आबे रवां की मानिंद
वो अपने आँचल से नक्शे पा को मिटाए जा रहे हैं

3 comments:

  1. बदगुमानी इस क़दर कि कोई चूम न ले
    वो अपने आँचल से नक्शे पा को मिटाए जा रहे हैं

    और कुछ
    चाहे हो न हो
    लेकिन
    इक मासूम तस्वीर-सी खिंच गयी है
    आँखों के आगे ...
    लफ्ज़ ,
    लुभाते हैं ... !!

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  2. क्या बात है ,भाई.
    लगता है बहुत जल्द ही तुम भी हमारी ज़मात में शामिल होने वाले हो.
    सलाम.

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