हम हुए तुम हुए के  मीर हुए
उनकी  जुल्फों के सब असीर हुए
                            ( मीर  तकी  'मीर'  )
छोड़ द्रुमों की मृदु छाया , तोड़ प्रकृति से भी माया
बाले    तेरे बाल जाल में   कैसे  उलझा दूं लोचन
                               ( सुमित्रानंदन  पन्त  )
 
खूबसूरत पंक्तियों में बयाँ एक ऐसा सच , जिसे कोई नकार नहीं सकता ।
ReplyDeleteख़याल-ए-मीर...
ReplyDeleteपंत का ध्यान ....
अन्तर क्या दोनों की चाह में, बोलो ... !!