" चाह नहीं कि सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ
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मुझे तोड़ लेना वनमाली , उस पथ पर तुम देना फ़ेंक
मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक "
( माखनलाल चतुर्वेदी )
" देता नहीं बोस्तां भी सहारा मुझको
करती नहीं बुलबुल भी इशारा मुझको
मुरझाये फूल ने ये हसरत से कहा
अब तोड़ के फ़ेंक दो खुदारा मुझको "
( ' जोश ' मलीहाबादी )
" चाह नहीं कि सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं
ReplyDeleteचाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ
मुझे तोड़ लेना वनमाली , उस पथ पर तुम देना फ़ेंक
मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक "...
I'm very much attached with these lines. Cannot express how significant they are in my life.
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Bachpan me pdhi hui sri maakhnlaal ji ki yah kvita dil ko bha gai
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