Thursday, March 31, 2011

पुष्प की अभिलाषा

" चाह नहीं कि सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ
.............................................................
............................................................
मुझे तोड़ लेना वनमाली , उस पथ पर तुम देना फ़ेंक
मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक "
( माखनलाल चतुर्वेदी )


" देता नहीं बोस्तां भी सहारा मुझको
करती नहीं बुलबुल भी इशारा मुझको
मुरझाये फूल ने ये हसरत से कहा
अब तोड़ के फ़ेंक दो खुदारा मुझको "
( ' जोश ' मलीहाबादी )

2 comments:

  1. " चाह नहीं कि सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं
    चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ

    मुझे तोड़ लेना वनमाली , उस पथ पर तुम देना फ़ेंक
    मातृ भूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक "...

    I'm very much attached with these lines. Cannot express how significant they are in my life.

    .

    ReplyDelete
  2. Bachpan me pdhi hui sri maakhnlaal ji ki yah kvita dil ko bha gai

    ReplyDelete