हिन्दी साहित्य में नयी कहानी आन्दोलन के प्रणेता, प्रसिद्ध नाटककार मोहन राकेश की आज पुण्यतिथि है। उनके द्वारा रचित ' आषाढ़ का एक दिन ' को हिन्दी का प्रथम आधुनिक नाटक होने का गौरव प्राप्त है, जिसके लिए उन्हें 1958 में सन्गीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था ।नाटक और कहानियों के अतिरिक्त उनने उपन्यास, यात्रा विवरण, संस्मरण, आलोचना आदि के क्षेत्र में भी योगदान दिया !'आषाढ़ का एक दिन', ' लहरों के राजहंस' और ' आधे अधूरे ' नाटक रंगमंच पर भी अपार ख्याति पा चुके है । इस प्रकार भारतेंदु एवं जयशंकर प्रसाद के साथ मोहन राकेश नाटककारों की एक त्रयी के रूप में स्थापित हो चुके हैं ।
उपन्यासों में 'अँधेरे बंद कमरे ' अपना विशेष स्थान रखता है, जिसमे वैवाहिक जीवन जी की विषमताओं का उल्लेख है । 'आखिरी चट्टान तक' '50 के दशक में गोवा से कन्याकुमारी तक की गयी यात्रा का वृत्तांत है व गद्यलेखन में एक मील का पत्थर है ।
मोहन राकेश का अधिकतर लेखन आत्मकथात्मक है, अन्यथा पात्र व घटनाएं वास्तविक जीवन से लिए गये हैं । उनने अध्यापन भी किया व 'सारिका' का संपादन भी । उनके जीवन और लेखन दोनों में एक आवेग- एक तीव्रता पायी जाती है ।
अपनी आयु के 47 वर्ष पूर्ण करने से मात्र पांच दिन पूर्व इस सन्सार को अलविदा कहने वाले महान साहित्यकार को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !!
उपन्यासों में 'अँधेरे बंद कमरे ' अपना विशेष स्थान रखता है, जिसमे वैवाहिक जीवन जी की विषमताओं का उल्लेख है । 'आखिरी चट्टान तक' '50 के दशक में गोवा से कन्याकुमारी तक की गयी यात्रा का वृत्तांत है व गद्यलेखन में एक मील का पत्थर है ।
मोहन राकेश का अधिकतर लेखन आत्मकथात्मक है, अन्यथा पात्र व घटनाएं वास्तविक जीवन से लिए गये हैं । उनने अध्यापन भी किया व 'सारिका' का संपादन भी । उनके जीवन और लेखन दोनों में एक आवेग- एक तीव्रता पायी जाती है ।
अपनी आयु के 47 वर्ष पूर्ण करने से मात्र पांच दिन पूर्व इस सन्सार को अलविदा कहने वाले महान साहित्यकार को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !!
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