ज़िन्दगी रही तो फिर मिलेंगे - सीधे सादे शब्द पर अपने आप में एक सत्य को समेटे हुए . अगले पल क्या होगा किसे मालूम , पर हम हैं कि समझने को तैयार ही नहीं. आपस की कलह क्लेश, मन मुटाव, दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश , क्या यह सब इस सच्चाई के सामने बेमानी नहीं ?
बरसों पूर्व जब मैं मात्र दस वर्ष का और छठी कक्षा का छात्र था तो एक शनिवार को हमारे एक अध्यापक ने पढ़ाने के बाद कक्षा छोडते समय अचानक ही कह दिया , या उनके मुंह से निकल गया “ ज़िंदगी रही तो फिर मिलेंगे ” । यह बात मेरे मन को बहुत लग गयी कि उन्होने ऐसा क्यों कहा – कहीं कुछ अनहोनी तो नहीं होगी ? मैं जानता हूँ कि वह दिन और रविवार का दिन मैंने किस तरह बिताया। सोमवार को जब स्कूल पहुँच कर उन अध्यापक महोदय को सही सलामत पाया तब कहीं जा कर चैन आया । कहने को बात छोटी सी है पर बड़ी भी।
जैसा कि मेरे स्व. पिता जी अक्सर सुनाया करते थे :
“आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं
सामान सौ बरस का , पल की खबर नहीं “
बस , थोड़ा ध्यान देने की ज़रूरत है !
No one knows what future has in store. All we can do is to live with love and affection for all.
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