श्वानों को मिलता दूध वस्त्र भूखे बालक अकुलाते हैं।
माँ की हड्डी से चिपक ठिठुर जाडे की रात बिताते हैं
( रामधारी सिंह ' दिनकर ' )
" पुख्ता हैं जनाबेशैख कि हम हैं कच्चे
इतना तो बता दें वो अगर हैं सच्चे
कि पिछले जनम में थे खुदा के दुश्मन
ये भूख से एड़ियाँ रगड़ते बच्चे "
( ' जोश ' मलीहाबादी )
The lines are so touching by both the poets.
ReplyDeleteश्वानों को मिलता दूध वस्त्र भूखे बालक अकुलाते हैं।
ReplyDeleteमाँ की हड्डी से चिपक ठिठुर जाडे की रात बिताते हैं
दिनकर जी को नमन .....
आभार...!!
A place where I get solace !!!!
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