Sunday, October 26, 2014

Cooking, no cakewalk !

Being one whose culinary skills are limited to making  tea , sometimes my wife puts me to the task of  overseeing the cooking  of  dal sabzi on gas burner. I  think I have  a good  judgement  of  the process of cooking  in a pressure cooker , as  even under my supervision,  plain rice, and pulao have always turned out well , with  little to complain about. I also know exactly  for how long  potatoes need boiling  to make them just right for  parathas. Sometimes aloo- gobhi  gives a bit of trouble  as both  do not cook simultaneously. But  the real test comes  when  I am left  to supervise  bhindi.  Rightly or wrongly, my wife does not add  even  a drop  of  water  to  vegetables being cooked  dry . Though the  pan is  non –stick, still to play it safe , I always put some  water to hasten the cooking process as also  to see that nothing sticks to the sides of the pan . In the process sometimes  things go awry and  in anger, wife says, “ tum hi khao is sabzi ko “ ,  but eats in silence  in the hope that  some day I will learn  to cook.

Monday, October 20, 2014

सेब और देव


पुनर्पाठ की इच्छा करते हुए बरसों पूर्व  पढ़ी  अज्ञेय की कहानी सेब  और  देव  इंटरनेट खँगालने पर मिल ही गई.हिमाचल के ही कुल्लू मनाली क्षेत्र में एक प्राचीन मंदिर को केंद्र में रख कर लिखी ये कहानी प्राचीन इतिहास और पुरातत्व  के एक शिक्षक प्रोफेसर गजानन पण्डित के बारे में है जो पुरानी मूर्तियों की खोज में एक निर्जन और दुर्गम स्थान पर बने जीर्ण शीर्ण अवस्था को प्राप्त हो चुके एक प्राचीन मंदिर में रखी एक 500 वर्ष पुरानी मूर्ति की ओर इतना आकर्षित होते हैं कि उसे अपने ओवरकोट की लंबी सी जेब में छुपा कर ले जाने की इच्छा पर नियंत्रण नहीं रख पाते और  पुरातत्व की दृष्टि से अमूल्य इस मूर्ति को ले कर  वापिस चल पड़ते हैं।  
होता यों है कि मंदिर का पता पूछते पूछते जब वह  जा रहे होते हैं तो एक लड़के को सेब चुराते हुए देख कर उसे यह कह कर डांट लगाते हैं क्यों बे बदमाश, चोरी कर रहा है? शर्म नहीं आती दूसरे का माल खाते हुए?” और
पाजी कहीं का! चोरी करता है! तेरे-जैसों के कारण ही पहाड़ी लोग बदनाम हो गये हैं। क्यों चुराये थे सेब? यहाँ तो पैसे के दो मिलते होंगे, एक पैसे के खरीद लेता? ईमान क्यों बिगाड़ता है?” और डांट ही नहीं लगते बल्कि एक तमाचा भी लगा देते हैं ।
वापसी में जब वही लड़का  सेब की चोरी करते हुए  दुबारा मिलता है तो प्रोफेसर साहिब उसे फिर डांटते हैं
बदमाश, फिर चोरी करता है ! अभी मैं डाँट के गया था, बेशर्म को शर्म भी नहीं आती! और  दो चांटे रसीद कर देते हैं। एकाएक उनके भीतर से एक आवाज़ आती है या एक विचार कोंधताहै इसने तो सेब ही चुराया है, तुम देवस्थान लूट लाए! एक अपराध बोध के जागृत होने पर और अपने इस घृणित कृत्य पर आत्मग्लानि अनुभव करते हुए , उल्टे पाँव उसी मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं और उस प्राचीन देवी प्रतिमा को  यथास्थान रख कर अपने आपको  पाप –मुक्त करते हैं और हल्का अनुभव  करते हैं ।
यह कहानी पण्डित सुदर्शन की लिखी कहानी हार की जीत की भी याद दिलाती है जिसमे डाकू खड़गसिंह आत्मग्लानि का अनुभव करते हुए , पश्चाताप और प्रायश्चित स्वरूप बाबा भारती का  धोखे से हथियाया हुआ उनका प्रिय घोड़ा सुल्तान वापिस उनकी कुटिया के बाहर बांध देता है।

ऐसी कहानियों को यों ही कालजयी नहीं कहा जाता ।

Saturday, October 18, 2014

My simian friend


A visitor to my house every other day. If I am not around , knocks at the door or otherwise heralds its arrival by making a typical 'hin' sound. Is neither afraid nor does it frighten, just like a pet . Whatever we give it to eat, it finishes the same sitting on top of the boundary wall facing the entrance and goes away. Surprisingly does not eat डबलरोटी which it simply ignores.