Tuesday, May 25, 2021

HUMBLE TRIBUTES TO A KARMAYOGI

 

 


I had known Anand Dhwaj Negi- A.D.Negi for short - through a friend Sonam Ringchain Negi, another gem of a man who retired as Engineer in Chief , HPPWD  some years back.

In fact Mr. A.D. Negi had hosted both of us when we stayed at Pooh overnight in 1997while covering the tour of the District by the then Chief Minister Sh . Virbhadra Singh, as part of the District Administration.

He came across as a shy straightforward man indulging only in meaningful talk. 

Later I met him  in his office at HIPA , Fairlawns,  Shimla in his office in 2002,  he being posted as Deputy Controller ( F&A)  being a member of State Accounts Service.

The very next year i.e. in 2003 when he had about four years of service left, he sought voluntary retirement and devoted himself to the onerous task of developing Thangkarma, a cold desert area near Chango in Hangrang sub- tehsil of Kinnaur District bordering Spiti. I had known about some of his activities there, comprising Agriculture, Horticulture and Animal Husbandry.

After reading of  his sad demise in the Newspaper , I googled A.D.Negi on internet and a whole lot of links opened up before me in the shape of write-ups, Articles, and video clips highlighting his wonderful achievements.

Thanks to the sincere efforts of this, honest, sincere, hard-working former Government officer, the 90 ha. area is now full of about thirty five thousand plants of various types including apple. Mr. Negi successfully cultivated Rajmah, chuli and peas, apart from rearing cows, donkeys and a herd of Tibetan goats.

His death the other day at Chandigarh due to brain stroke leaves many shocked and grieved . The late detection of brain stroke and the time lost in transit is said to be cause of his passing away.

Those interested in knowing about his remarkable contribution and achievements may google A.D.Negi and they find valuable material written about him.

My humble tributes to the real Karmayogi !!


(Photo courtesy- Google)

Sunday, May 23, 2021

CORONA MUSINGS

It is fourteen months now since the serious thinking about finding the remedy and relief from the Covid Pandemic started and the first 21 day lockdown was ordered to be observed. The Pandemic had taken the world unawares and resulted  not only in massive loss of human lives, but also economic slowdown, huge loss of jobs and employment, mass exodus of Labour , a stop to all educational activity as a result of forced closure of all institutions like schools and colleges. 

Amid all the disastrous consequences , there was a lurking hope that the  Vaccine which was in the vigorous process of being developed would see the light of the  day, hit the market and provide much needed relief if not prove a panacea. There was some respite in the months of October & November which continued through January and some part of February. Come March and the start of Vaccination drive  throughout the country  and the Pandemic strikes again with much more force and intensity. Also on the flip side are the avoidable elections and the large scale state sponsored celebration of Kumbh Mela, the gatherings in both cases throwing all caution to the winds .No doubt till this time we had Covid centres and Hospitals established and running, and some semblance of a system in place. Unfortunately we lost many Corona warriors to Pandemic.

As of today, are we any better than last year? I think rather worse, with the panicky situation arrived at due to shortage of oxygen required to be administered to serious patients and many losing life due to this only.

As if this was not enough, close on the heels have arrived Black Fungus and  White Fungus to add to the woes and suffering.

In short, the Covid has outsmarted all human endeavour.

God save us all !!

Friday, May 7, 2021

TRAGI-COMEDY OF ERROR

 हमारे समय में स्कूल से  भागने या घर से स्कूल के लिए चल कर भी अनुपस्थित रहने वाले एक-दो विद्यार्थी हर कक्षा में होते थे । कभी घर से कोई  आता था तो अनुपस्थित पाए जाने पर घर  में ज़रूर मंजायी होती होगी पर असर कम ही दिखता था ।

मैं चाहे अच्छा या बुरा  जैसा भी स्टूडेंट रहा हूँगा, पर हर तरह से अनुशासित था और  नियमित रूप से स्कूल में उपस्थित रहता था ।

स्कूल आते  समय एक भद्र पुरुष से रोज़ सामना होता था जो  मुझे ध्यान से देखते थे ।एक दिन यह सोच कर कि शायद मेरे पिता श्री के कोई परिचित होंगे, मैंने उन्हें नमस्ते कर दी ।

विडम्बना यह कि  मेरी नमस्ते सुनने के बाद बम कुछ यूँ फूटा 'हाँ भई भागता तो नहीं अब ?' मैं और मेरा एक सहपाठी जो मेरे साथ था, दोनों हैरान परेशान ! मैंने कुछ सामान्य हो कर कहा कि उन्हें कुछ गलती लगी है । ' तुम्हारा नाम ....नहीं है ?' उन्होंने पूछा । ' जी मेरा नाम रमेश है ।' मैंने कहा । 'ओहो, ग़लती लग गयी' कह कर वो चलते बने ।

सबसे पहले तो मेरे साथ के सहपाठी ने ही खबर ली कि एक अनजान आदमी को नमस्ते करने की क्या पड़ी थी । उसके बाद उनके द्वारा बताए नाम के लड़के की खोज की तो लगा गलती लगने लायक़ समानता क़द काठी और complexion में ज़रूर थी ।

इस घटना के बाद भी उनसे सामना होता रहा पर दोनों अपनी अपनी  झिझक से एक दूसरे के पास से गुज़रते रहे ।

Thursday, May 6, 2021

कॉरोना काल की फैंटेसी

 सुबह उठते ही  धर्मपत्नी का फरमान ‘ तंग भी आ जाती हूँ एक ही रूटीन से। आज खाना कहीं बाहर खाएंगे’। अब मेरे पास मना करने का न कोई कारण है न कोई दलील, सारा काम वही तो करती है । मैं हामी भर देता हूँ मन ही मन सोचते हुए कि कुछ अलग तो मुझे भी चाहिए ।बस मैं उसे मेरे लिए नाश्ता  बनाने के लिए कहता हूँ क्योंकि वो नाश्ता नहीं brunch ही करती है । इसके बाद रोज़ के कार्य का निबटारा होता है जिसमे साफ सफाई, स्नान और पूजा आदि शामिल हैं ।  HRTC की टैक्सी जिस पर Ride With Pride लिखा रहता है और जो प्राइवेट टैक्सी से लगभग 1/6 किराए पर सीधा मॉल पर ले जाती है ही एक मात्र विकल्प है । दोपहर में वही टैक्सी हमें मॉल पर पहुंचा देती है । मुझे तसल्ली इस बात की है कि लंच का मतलब लंच ही  होने वाला है क्योंकि her highness का  पसंदीदा रेस्तरां Baljee’s बंद हो चुका है जहां इडली दोसे पर ही अपनी सुई अटकती थी । शाकाहारी होने के नाते रेस्तरां या ढाबे के विकल्प बहुत कम हैं इसलिए मिडिल बाज़ार में ‘Gupta jee’ के जाना होता है । शुद्ध शाकाहारी खाना मिलता है और गुणवत्ता के लिहाज़ से rated भी है । खैर अपनी पसंद का लंच हम दोनों करते हैं और तृप्ति अनुभव करते हुए बाहर निकल कर सीढ़ियाँ चढ़ मॉल पर आ जाते हैं ।

कई दिन से शॉपिंग नहीं की इसलिए DCAR का रुख करते हैं , मैं अपने लिए एक शर्ट खरीद लेता हूँ । पत्नि को अपने मतलब का कुछ वहाँ नहीं मिलता तो दूसरी दुकानों/ शोरूम में जाना होता है । वह भी  अपने लिए कुछ खरीद लेती है । मॉल का काम बस इतना ही है, इस बीच कुछ परिचित मिल जाते हैं तो उनसे दुआ सलाम होती है । अब लोअर बाज़ार का रुख़ कतरे हैं और  mehru’s के यहाँ गुलाब जामुन का आनंद लेते हैं । इसके बाद कुछ फल और सब्ज़ी की खरीद होती है और वापिस टैक्सी स्टैंड पर। वही Ride With Pride घर भी पहुंचा देती है । इस तरह समय का कुछ भाग बहुत अच्छा कटता है ।


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कोरोना काल की यह fantasy आपको कैसी लगी ?