Monday, May 28, 2018

Shevan Rizvi

Sixty years down memory lane, the iconic Qawwali, ' Hamen toh loot liya milke husn walon ne' from the 1958 film Al Hilal sung beautifully by Ismail Azad Qawwal and the group rings a bell in the ears.The Qawwali was written by the lyricist Shevan Rizvi.Unfortunately not much seems to have been written and discussed about him, though he being a very talented lyricist wrote memorable lyrics for Hindi Cinema .The films he wrote lyrics for include Al Hilal, Humsaya, Dil Aur Mohabbat, Ek Musafir Ek Hasina, Gawayya,and Qawwali ki Raat.
The songs that can be listed among his best , besides the qawwali mentioned above are
-
Dil ki awaaz bhi sun mere fasane pe na ja,
Hath aya hai jab se tere hath mein,
Woh haseen dard de do, jise main gale laga loon,
Husn wale husn ka anjaam dekh, doobte sooraj ko waqt-e-sham dekh,
Aisey toote tar ki mera geet adhoora reh gaya,
Mujhe mera pyar de do,
and
Humko tumhaare ishq ne kya kya bana diya,jab kuchh na ban sake to tamasha bana diya....
Our humble tributes to the great lyricist !

Tuesday, May 22, 2018

The Great Gama


Today is the birth anniversary of the Great Gama, also known as Gama Pehalwan, the legendary Wrestler of the Indian sub- continent . Born this day at Amritsar in 1878 and named Ghulam Muhammad, he stepped into the shoes of his wrestler father and defeated all great wrestlers of the time. Becoming World Heavyweight Wrestling Champion (Indian Style ) in 1910 he never looked back.Winning all major wrestling bouts, he made a benchmark for others to follow. His exercise and diet regimen leaves everyone wondering, something to marvel at. 'Gama Pehalwan' has become an epithet also jokingly and mockingly hurled at a skinny person.
Post independence he migrated to Pakistan where he died on May 23, 1960, a day after turning 82.
Our humble tributes to the legendary wrestler !

Sunday, May 20, 2018

Hans Raj Behl

Today is the death anniversary of Hans Raj Behl, a very talented but less celebrated composer and music director of Hindi and Punjabi films.He made his debut in the 1946 film Pujari. The celebrated  singer, Asha Bhosle, made her singing debut in Hindi films with a song in the film Chunariya in 1948, in which music was composed by Hans Raj Behl. The 500 and odd songs set to tune by him include 'Jahan dal dal par soney ki chiriya  karti hai basera..." , ' Nain dwar se man mein woh aa ke, tan mein aag lagaye', ' Bhiga bhiga pyar ka samaa batade tujhe jana hai kahan' & ' Sab kuchh lutaya hamne, aa kar teri gali mein'
He also composed music for Punjabi films like Lachhi , Satluj de' Kande  and Pind di Kudi.
Our humble tributes to the great composer !

Friday, May 18, 2018

Politics


Politics is not party politics only, rather anything nefarious,opportunistic and reeking of favouritism involves some kind of politics.I have had the bitter taste of this early in my life as a nine year old.I was in fifth class and won monitorship through open voting by a good margin.


The boy who lost to me and still wanted to become the monitor approached the class teacher.The boy's family enjoyed some clout in the school management, so obviously the teacher was also under some pressure. A docile student that I was, I gave in, rather gave up and let that boy be the monitor.

Wednesday, May 16, 2018

Purse or Batua

माँ पे पूत,बाप पे घोड़ा
बहुत नहीं तो थोड़ा थोड़ा
Living up to the adage, like my  late father, I have never carried a purse.It well nigh means that both of us have had hand to mouth existence,with nothing left for the purse. Even my friends who carry purse or batua in the pocket, do  so more out of compulsion to carry Credit/ debit/ ATM card or some stray identify proof as there's hardly much need to carry cash.
Mercifully , a gents purse comes for anything between Rs. 200/- and Rs.2000/- including the fancy stuff, a far cry from the ladies' designer and high-end purses and handbags amazingly costing millions of rupees, meant to make a fashion statement or as a status symbol.

Monday, May 14, 2018

‘परमवीर गाथा’


परमवीर गाथा
सेकंड लेफ़्टिनेंट अरुण खेतरपाल – परमवीर चक्र विजेता
हिन्दी काव्य रचना
भगत  राम मंडोत्रा
प्रकाशक: भगत  राम मंडोत्रा( 98163 68385 ) 
कमला प्रकाशन, कमला कुटीर, गांव चम्बी
डाकघर  संघोल, ज़िला कांगड़ा ( हि.प्र. )
पिन: 176091
ISBN: 978-93-5300-307-4  
मूल्य:  रू. 250/-
प्रस्तुत  काव्य रचना परमवीर गाथा  कवि मित्र श्री  भगत राम मंडोत्रा की तीसरी प्रकाशित  काव्य पुस्तक है । जैसा कि नाम से स्पष्ट है  यह 1971 के भारत- पाक युद्ध में मात्र 21 वर्ष की आयु में  वीर गति को प्राप्त सेकंड लेफ़्टिनेंट अरुण खेतरपाल, परमवीर चक्र विजेता को दी गयी काव्यात्मक श्रद्धांजलि है । श्री भगत राम मंडोत्रा सेवा निवृत भूतपूर्व सैन्य अधिकारी हैं । यह रचना 1971 युद्ध के महानायक रहे सेकंड लेफ़्टिनेंट अरुण खेतरपाल को अभूतपूर्व श्रंद्धांजलि तो है ही , पर इसके अलावा  एक काल खंड को भी चित्रित करने में समर्थ रही है ।धर्म के आधार पर भारत का विभाजन, दोनों पड़ोसी देशों के बीच निरंतर बढ़ती नफरत का वातावरण और बिगड़ते सम्बन्ध , 1965 की लड़ाई, तत्पश्चात, पाकिस्तान सरकार की अपने ही लोगों के प्रति गलत, पक्षपातपूर्ण और दमनकारी नीतियों के कारण पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह की स्थिति, सीमा पर से भारत में शरणार्थियों का प्रवेश, और इन सब  परिस्थितियों में  मुक्ति वाहिनी की रचना और उद्भव व बांग्ला देश का जन्म – इन सब का उल्लेख इस रचना में मिलता है ।
मेरी पीढ़ी, मेजर सोमनाथ शर्मा, मेजर शैतान सिंह, मेजर धन सिंह थापा , कैप्टन जी.एस.सलारिया, मेजर होशियार सिंह , ले.कर्नल ए.बी. तारापोर जैसे  परमवीरों का नाम सुन कर ही बड़ी हुई है , इस रचना को पढ़ कर उनका भी स्मरण हो आता है । कुछ का वर्णन तो इस रचना में भी मिलता है ।
इस रचना में 1971 के निर्णायक युद्ध में सेकंड लेफ़्टिनेंट अरुण खेतरपाल की शौर्यपूर्ण भूमिका का विस्तृत वर्णन मिलता है । बसंतर नदी पर पुल का निर्माण और उस पर से भारतीय टैंकों का गुजरना, उस वीर सैन्य अधिकारी द्वारा प्रशिक्षण पर जाने की बजाय , युद्ध में भाग लेने का निर्णय , मोर्चा पर कमान संभालते हुए शत्रु के अनेक  पैटन   टैंक ध्ववस्त करके  पलायन के लिए मजबूर करना और फिर बहादुरी से आगे बढ़ते हुए, शत्रु की गोली खा कर वीरगति को प्राप्त होना, यह सब आश्चर्य चकित करने वाला है । 
101 खूबसूरत छंदों में वर्णित यह गाथा , सुभद्रा कुमारी चौहान रचित झाँसी की रानी की याद दिलाती है । फुटनोट के माध्यम से कवि ने संबन्धित यूनिट- रेजीमेन्ट, ड्राईवर, गनर आदि का उल्लेख करके आम पाठक की जानकारी में भी वृद्धि की है ।  यह केवल कवि के मनोद्गारों की अभिव्यक्ति नहीं, अपितु उसके अध्ययन , मनन, शोध का भी परिणाम है। न जाने कहाँ कहाँ से सूचना एकत्र करके कवि ने यह रचना की है ।
एक विडम्बना यह भी है  कि इस परमवीर की शहादत के एक दिन बाद ही युद्धविराम की घोषणा हो गयी थी ।
वीर गति को प्राप्त हुए इस युवा सैन्याधिकारी के मातापिता की मानसिक स्थिति का भी वर्णन मिलता है। इसके पिता एम.एल. खेतरपाल भी उस समय सेवारत कर्नल थे ।
कई वर्षों बाद  ब्रिगेडियर पद से सेवा निवृत हुए पिता का अपने पैतृक स्थान सरगोधा जाना होता है तो उनकी मुलाक़ात अपने मेजबान पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेडियर ख्वाजा मोहम्मद नासिर से होती है ।काफी संकोच के बाद मेजबान  ब्रिगडियर यह बताता है कि उसी की गोली से सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल शहादत को प्राप्त हुआ था ।इस प्रकार मेजबान ब्रिगडियर अपने मन का बोझ तो हल्का कर लेता है पर ब्रिगडियर खेतरपाल की जो मन:sथिति होती है, वह कल्पना से भी परे है । यह घटना इस गाथा का सबसे मार्मिक मोड़ है जिसे पढ़ कर द्रवित होना स्वाभाविक है। यह घटना  बरबस ही Thomas Hardy की कविता ‘The Man He Killed’ की याद आती है कि किस प्रकार व्यक्तिगत शत्रुता न होते हुए भी दोनों तरफ के सैनिक देश-भक्ति और कर्तव्यबोध के कारण एक दूसरे की मृत्यु का कारण बनते हैं।

देश की आन की खातिर, मर मिटने वाले,
सदा ही चिर-यौवन चिर जीवी हुआ करते हैं ।
भुला देती हैं जब उन्हें अगली पीढ़ियां,
वास्तविक मृत्यु तो वह तभी मरते हैं ।
आओ प्राण करें सदैव जीवित उन्हें रखेंगे,
जिन्होंने देश जिये इसलिए जान लुटाई थी ।
                           इस संकल्प से आरंभ हो कर यह रचना आद्योपांत पाठक को बांधे रखती है ।
इससे अधिक पंक्तियाँ मैं उद्धरित नहीं कर रहा, क्योंकि पाठक स्वयं इस रचना को पढ़ कर कवि के प्रति प्रशंसा और कृतज्ञता के भाव से भर उठेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है
कवि ने एक परमवीर के माध्यम से अनेक परमवीरों को श्रद्धांजलि दी है, जिन पर हमें सदा से गर्व है  


 



Saturday, May 12, 2018

बस यूँ ही

पत्नी जब भी खाना परोसती है तो सालन के बारे में ज़रूर पूछती है ' कैसा बना या बनी ' । वह खुद भोजन  पूजा आदि के बाद करती है। यूँ अच्छा पका लेती है पर कभी अच्छा न भी बना हो तो क्या सच बोल कर  अपनी शामत बुलानी है ! इसलिए मेरा  stock  reply 'अच्छा' ही होता है । पर अच्छा लगता है,  संवाद  जारी रहता है । भरी जवानी में प्रेमालाप नहीं किया तो इस उम्र  में...... खैर छोड़ो, यही क्या कम है  !!

Wednesday, May 9, 2018

Only a dream, mercifully

Surrounded by a gathering of people,an elected representative , a politician of sorts giving me a dressing down ,for no tenable reason whatever, perhaps only to put an impression as to how powerful he is, as I am utterly a new incumbent to a field post.And I seething with anger inside, have no option but to listen to his inanities in silence.
Suddenly, my eyes open.
Oh, it is a dream, I say to myself , relieved !
Fortunately this has never happened  in my career, that is now left behind long back .
What does this indicate !
Is it my general dislike for the species ?

Sunday, May 6, 2018

रिहड़ु खोलू

‘रिहड़ु  खोलू'
(काँगड़ी हिमाचली कविता संग्रह)
भगत  राम मंडोत्रा
प्रकाशक: भगत  राम मंडोत्रा
कमला प्रकाशन, कमला कुटीर, गांव चम्बी
डाकघर  संघोल, ज़िला कांगड़ा ( हि.प्र. )
पिन: 176091
ISBN: 978-93-5265-589-2   Paperback
      978-93-5290-590-8   E-Book
मूल्य:  रू. 200/-

‘रिहड़ु खोलू’  कवि मित्र श्री भगत राम मंडोत्रा का दूसरा कविता संग्रह है ।इससे पूर्व उनका पहाड़ी में ही एक कविता संग्रह ‘जुड़दे पुल’ प्रकाशित हो चुका है ।इस कविता संग्रह के बारे में यों तो विद्वदजनों ने प्राक्कथन में अपनी टिप्पणियों में  सब कुछ कह दिया है, फिर भी दो शब्द मेरी ओर से !
 32 वर्ष भारतीय सेना में सेवायें देकर सूबेदार मेजर (ऑनरेरी  लेफ्टिनेंट)के पद से सेवानिवृत  व तदोपरांत 5 वर्ष इंटेलिजेंस ब्यूरो में बतौर ACIO रह चुके मंडोत्रा जी ने कविता लेखन में अपनी रुचि को आगे बढ़ाने का जो खूबसूरत  निर्णय लिया , उसकी परिणति उनके इन कविता संग्रहों के रूप में हमारे सामने है ।फ़ेसबुक तो इनकी छोटी बड़ी  सुंदर रचनाएँ प्रतिदिन ही पढ़ने को मिलती हैं। ‘रिहड़ु खोलु’ का आवरण ही अपने आप में नैसर्गिक सौंदर्य का परिचायक है  तथा बरबस अपनी ओर आकृष्ट करता है। 79 बेहतरीन  कविताओं से सुसज्जित  इस संग्रह में पढ़ने, गुनने और आनंदित होने के लिए बहुत कुछ है ।कवि कहाँ एक ओर अपने प्रदेश के प्राकृतिक  सौन्दर्य से अभिभूत हैं, वहीं दूसरी ओर उनके  सैन्य जीवन के प्रत्यक्ष अनुभव भी कुछ कविताओं में सहज ही दृष्टिगोचर है । सेना , सैनिकों व सैनिकों द्वारा देश की रक्षा हेतु दिये गए बलिदान के प्रति प्रकट किए उद्गार एक आम नागरिक को भी गर्व का अनुभव कराते हैं । कविताओं में व्यंग्य की धार कुछ और तेज हुई है व बेबाकी भी बढ़ी है ।
प्रथम कविता  ‘हिमाचले  च छैल नज़ारे मिलदे’ में प्रदेश के प्राकृतिक एवं मानवीय सौंदर्य और मनोरम दृश्यावली के साथ साथ सादगीपूर्ण सामाजिक जीवन, पहनावे व खान पान की झलक दिखती है । पुस्तक का नाम ‘रिहड़ु खोलु’  भी इसी कविता से लिया गया है ।
हिमाचले  च छैल नज़ारे मिलदे ।
सिद्धे सादे लोक प्यारे मिलदे ।।
..................
रिहड़ु खोलु धरान पधरे हार ।
पौड़ी ख्तेयान दे नजारे मिलदे ।।
..................
छोले डोरू कुर्ता सुथणु घघरी।
रीहड़ेयां सलमे सितारे मिलदे ।।
से पढ़ने का समा बंधता है ।
‘बोलियाँ चाहे बखरियां, बखबख हर रुआज है’ कविता   ‘अनेकता में एकता’ का संदेश देती है –
‘वक़्त औणे पर सबों इक जुट खड़ोंदे दुस्सदे ।
बोलियाँ चाहे बखरियां, बखबख हर रुआज है ll
..................
कुछ अन्य कविताओं की बानगी इस प्रकार है :

मेरा देश हसदा रैह  l
मेरा बाग बसदा रैह  ll
..........
जांदा रस्ता कुस पासें l
‘भगत’ कोई दसदा रैह ll
.................
सरहदां पर जाई, लड़दा कोई कोई l
वीर बहोते हन, पर मरदा कोई कोई ll
.......
हमदरद बैठी महलां तां सारे बणदे l
दीन दुखियां जाई, रलदा  कोई कोई ll

.......
लोकराज इक मखौल बणाया नेतेयां l
वोट पाई चेता करदा कोई कोई ll
................
याद ओंदे सैह  नियारे दिन   l
फौजी बणी कदी गुज़ारे दिन  ll
घरां ते दूर बसड़ा इक टब्बर  l
वजोगण रातां, बणजारे दिन  lI

.......
ओबरिया रखे बर्दी मैडल गुज़ारे l
हाखीं बीच तरदे प्यारे दिन ll
देश -अणख सिरें रखी  गुज़ारे l
‘भगत’ ठंडे कदी करारे दिन  ll

..................
सिपाही  कसमां खांदे कने खूब  निभान्दे l
ज़मीर नी होंदा होरना साहीं बिकेया ll
.......
रोज सुखना करदा ‘भगत’  परमेसरे अगें l
थकण नी कन्धे भारत  जिन्हां पर टिकेया ll

...............
असां बस रौला पांदे किछ करदे नी l
असां बस गीतां गांदे, किछ करदे नी ll
कोई डुबदा मरे चाहे लुट्टे पिट्टे l
असां बीडिओ बणान्दे , किछ करदे नी ll
.............
जिसदी गुड्डी चढ़दी उस पिछें चली पोंदे l
होआ दिखी पूणा लांदे, किछ करदे  नी ll

  •   उपरोक्त पंक्तियाँ  इस संग्रह की  कुछ शुरुआती  कविताओं से ली गयी हैं,  जिनसे  कवि की व्यापक दृष्टि और दृष्टिकोण का पता चलता है । जहां एक ओर कवि अपने  सैन्य जीवन को याद करके गौरवान्वित है, वहीं वर्तमान  परिस्थितियों , चाहे सामाजिक हों, चाहे राजनीतिक, के प्रति आक्रोश भी व्यक्त करता है । नेताओं, मीडिया , और आमजन  की उदासीनता और अकर्मण्यता   की कवि ने अच्छी ख़ासी खबर ली है ।इस सबके  अलावा भी संग्रह में बहुत कुछ है जो पाठक को आनंदित करने के साथ साथ  बहुत कुछ सोचने व करने की भी प्रेरणा देता है ।

Friday, May 4, 2018

Chhatrasal

Today is the birth anniversary of Maharaja Chhatrasal, the Bundela warrior. He was born this day in 1649. Inspired by Chhatrapati Shivaji, he raised a revolt against the mighty Mughals and took on  Aurangzeb's forces with a handful of soldiers.He was only 22 then. He founded the Panna kingdom and ruled the same till his death in 1731.He was a great patron of  art and literature.The poet Bhushan was his Court poet who through his adulatory writings, immortalised Chhatrasal.
Chhatrasal was in alliance with the Marathas and had given his daughter Mastani in marriage to Peshwa Bajirao.
The 2015 Bollywood flick Bajirao Mastani  is about the couple.
Our humble tributes to the great warrior and the Ruler !

Thursday, May 3, 2018

Achala Sachdev


Today is the birth anniversary of Achala Sachdev, a popular Bollywood actress of her time. Born this day in 1920 at Peshawar in undivided India, before partition she worked in All India Radio Lahore and also in All India Radio, Delhi. She made her debut in acting with the 1938 film ‘Fashionable Wife’ and went on to act in about 130 films in a career spanning over six decades.

She is particularly known for her stellar role in the blockbuster Waqt as the wife of Balraj Sahni. Her expressions in the popular song ‘ Aye Meri Zohra Zabeen.......’ are a treat to watch. She also had a memorable role as grandmother of Kajol in Dilwale Dulhania Le Jayenge. Her filmography include films like Anhonee, Footpath, Chandni Chowk, Munna, Naukri, Sabse Bada Rupaiyya , Bandhan, Hum Panchhi Ek Daal Ke, , Pardesi, Miss Mary , Adalat, Manzil, Angulimaal, Kalpana, Sampooran Ramayan, Meri Soorat Teri Ankhen, Dil Ek Mandir, Shagun, Sangam, Haqiqat, Arzoo, Himalaya Ki God Mein, Aag Shagord Humraaz, Sapnon ka Saudagar, Mere Humdum Mere Dost, Kanyadan, Prem Pujari, Pavitra Papi , Heer Ranjha, Hare Rama Hare Krishna, Anamika Parinay, Paraya Dhan, Kora Kagaz, Julie, Laila Majnu , Chandni, Kabhi Khushi Kabhi Gham and many many others . she also acted in English films like Nine Hours to Rama & The Householder. 

Blessed with a long life, she died on April 30, 2012 aged 91 at Pune. .

Our humble tributes to the talented and popular actress !