Tuesday, November 19, 2019

शैलेश मटियानी

शैलेश मटियानी मेरे प्रिय कथाकार हैं , जिनकी रचनाएं मैं बड़े शौक से पढ़ता हूँ । आजकल उनके दो कथा संग्रहों का पठन कर रहा हूँ । एक संग्रह की दो कहानियों के शीर्षकों पर नज़र गयी तो दोनों पढ़ लीं  । 'बाली- सुग्रीव' और 'दशरथ' नाम की कहानियां राम लीला प्रसंगों पर आधारित हैं ।
' बाली- सुग्रीव' कहानी में  दोनों पात्रों की प्रतिद्वंद्विता केवल मंच तक ही सीमित न रह कर किस प्रकार उनके वास्तविक जीवन में  प्रवेश कर जाती है,का सुन्दर सजीव चित्रण है । साल दर साल वही दो व्यक्ति इन दो पात्रों की भूमिका  निभा रहे हैं  । अच्छे अभिनय के बूते ख़ूब वाहवाही  लूटने वाला बाली का अभिनय करने वाला पात्र  हर बार सुग्रीव के हाथों मारा जाना पसंद  नहीं करता और अदला बदली कर सुग्रीव का रोल करना चाहता है । कारण यह भी है कि सब यश कीर्ति सुग्रीव की झोली में आते हैं जबकि कारनामा राम के बाण का है ।इसके अलावा मंच का सुग्रीव वास्तविक जीवन में भी  श्रेष्ठ होने का भ्रम पाल लेता है और डींगें मारना शुरू कर देता है । परंतु केवल एक मैडल का लालच ही है जो बाली के पात्र को बांधे हुए है । हमेशा की तरह इस बार भी बाली सुग्रीव आमने सामने हैं पर बाली  कुछ और ही ठाने हुए है । आपसी युद्ध के समय बाली  , पहचान के लिए  सुग्रीव के गले में डाली हुई पुष्प माला ज़बरदस्ती निकाल कर अपने गले में डाल लेता है और  उसकी  पीठ पर  मुगदर से वार करके विजयी मुद्रा में खड़ा हो जाता है।इतने में राम का बाण  भूमि पर लेटे  सुग्रीव को लगता है।सब गड़बड़ हुआ देख लोग राम से कहते हैं कि सुग्रीव को बाण क्यों मारा  । अब राम की दुविधा यह कि अपनी दी हुई  विजयमाला पहने हुए बाली को बाण मारते भी तो कैसे ।

'दशरथ'  कहानी में  दशरथ की भूमिका एक नए पात्र को दी गयी है, क्योंकि वर्षों से दशरथ की भूमिका निभाने वाला पात्र स्थानांतरित हो कर जा चुका है । नए चुने गए पात्र का दशरथ से साम्य इस बात का है कि उसकी भी तीन पत्नियां हैं । नया पात्र अभिनय के प्रति बहुत गंभीर है और रिहर्सल के दौरान रटाये गए  शब्दों को घर आ कर भी दोहराता रहता है , जिससे उसकी तीनों पत्नियां तंग आकर उलाहना भी दे देती हैं । खैर, मंचन का दिन आ जाता है और तीनों पत्नियां भी दर्शकों के बीच  विराजमान हैं । 
विडम्बना यह कि भूमिका निभाते समय ' हे राम ' कहते कहते पात्र  के प्राण पखेरू उड़ जाते हैं और रह जाता है तीनों पत्नियों का रूदन  और विलाप  !!

Monday, November 11, 2019

राजिंदर सिंह बेदी

आज विख्यात उर्दू लेखक राजिंदर सिंह बेदी की पुण्य तिथि है । 1 सितंबर 1915 को  अविभाजित पंजाब के स्यालकोट में जन्में राजिंदर सिंह बेदी  प्रगतिशील लेखक आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर थे  , जिनने उपन्यास, कहानी और नाटक लिखे । उनकी शिक्षा लाहौर में हुई और शिक्षा उर्दू में होने के कारण उसी भाषा में  लेखन के प्रति प्रवृत्त हुए । उनने AIR जम्मू में अपनी सेवाएं दीं । शुरू के उनके दो कहानी संग्रह ' दान- ओ- दाम' और 'ग्रहण' के नाम से प्रकाशित हुए।
उनकी कहानी 'गर्म कोट ' बहुत चर्चित हुई ।बाद में उनके दो और कहानी संग्रह 'कोख जली'  और 'अपने दुःख मुझे दे दो'  नाम से  छपे  ।
एक लेखक के रूप में उन्हें अधिक ख्याति  उनके उर्दू उपन्यास ' एक चादर मैली सी' से मिली जिसमें ग्रामीण पंजाब में स्त्री शोषण, व्यथा का जीवंत चित्रण है। इस उपन्यास को पढ़ कर उनके मित्र व समकालीन लेखक कृश्न चंदर ने उनसे कहा ' कमबख्त तुम नहीं जानते , तुमने ये क्या लिख दिया है'! इस उपन्यास का हिंदी , बंगाली सहित अन्य भाषाओं में भी हुआ । अंग्रेजी में इसका अनुवाद खुशवंत सिंह ने किया जो ' I Take This Woman' नाम से छपा । 1962 में लिखे इस उपन्यास पर बेदी को 1965 का साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला । इस उपन्यास की लोकप्रियता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इस पर इसी नाम से भारत में तो फिल्म बनी ही, साथ ही 1978 में ' मुट्ठी भर चावल' नाम से पाकिस्तान में भी फिल्म बनी ।

फ़िल्मी दुनिया से जुड़ जाने के बाद राजिंदर सिंह बेदी ने  बतौर निर्देशक, पटकथा लेखक और संवाद लेखक भी बहुत नाम कमाया । संवाद लेखक के रूप में उनकी पहली फिल्म ' बड़ी बहन' थी जो 1949 में बनी । इसके बाद उनने फिल्म 'दाग़' (1952) के संवाद भी लिखे । अपनी कहानी 'गर्म कोट' पर आधारित इसी  नाम की फिल्म के पट कथा लेखक व सह निर्माता भी रहे ।  फिल्म रंगोली के निर्माण से भी संबद्ध रहे ।
बतौर निर्देशक उनकी फिल्मों में दस्तक , फागुन, आँखिन देखी ,और नवाब साहिब शामिल हैं ।
संवाद लेखक के रूप में उनकी चर्चित फिल्में मिर्ज़ा ग़ालिब , देवदास, मधुमती, अनुराधा , अनुपमा, सत्यकाम ,बसंत बहार , मिलाप, बम्बई का बाबू, और अभिमान हैं ।
बतौर पट कथा लेखक उनकी फिल्मों में दस्तक, मेरे हमदम मेरे दोस्त, मेरे सनम, रंगोली, आस का पंछी,मेम दीदी, गर्म कोट शामिल हैं ।फिल्म क्षेत्र में इन्हें कई पुरस्कारों से भी नवाज़ा गया 
1982 में पक्षाघात होने के बाद  1984 में आज ही के दिन इनका निधन हुआ ।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी महान व्यक्तित्व को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !