Thursday, September 25, 2014

मान न मान, मैं तेरा मेहमान

कुछ समय पूर्व ‘अतिथि तुम कब जाओगे’ फिल्म की बहुत चर्चा रही। यों मैंने फिल्म तो नहीं देखी पर शीर्षक से यही लगता है कि बिन बुलाए , अवांछित व एक बार आ कर जाने का नाम न लेने वाले अतिथि या मेहमानों को ले कर ही है । कहते भी हैं , मेहमान 2-3 दिन का होता है , उसके बाद शायद बोझ । कई बार मेहमान तो एक-आध दिन का ही होता है पर अचानक आ धमकना बहुत अखरता है।संचार क्रांति से पूर्व, अक्सर मेहमानों का आगमन अचानक ही होता था । ज़ाहिर है , बिना पूर्व सूचना के पधारे मेहमानों के आगमन पर मेज़बान की कुछ प्रतिक्रिया तो होनी ही है, प्रकट में तो नहीं पर सोच में ।यह प्रतिक्रिया मेहमान के पधारने के समय को ले कर है । वर्षों पूर्व वैसे ही चर्चा के दौरान एक सज्जन ने अपने इलाक़े की बात बताई और तीन तरह की प्रतिक्रिया का खुलासा किया।
1. रात हो चुकी है, भोजन अभी तैयार हो ही रहा है ऐसे में कोई मेहमान आ जाए तो – आई पहुंचे !
2. रात हो चुकी है, भोजन बन चुका है और खाने की प्रतीक्षा है तो आगमन पर- आई ढै ।
3. रात काफी बीत चुकी है, घर के सब सदस्य खानपान से फारिग हो चुके हैं , तब कोई आ जाए तो- आई मुए !

आप का क्या विचार है !

Thursday, September 18, 2014

'आवारा मसीहा '

आजकल विख्यात लेखक स्व. विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित यशस्वी बांग्ला उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की जीवनी ‘आवारा मसीहा’ का पुनर्पाठ कर रहा हूँ और अभिभूत हूँ. शरतचन्द्र के व्यक्तित्व और कृतित्व का प्रभाकर जी ने ऐसा चित्रण किया है कि शरतचन्द्र स्वयं ही नहीं बल्कि उनके उपन्यासों के पात्र भी जीवंत हो आँखों के सामने विचरण करते प्रतीत होते हैं . वास्तव में यह रचना लेखक के श्रमसाध्य शोध का परिणाम है. इस पुस्तक की सामग्री जुटाने के लिए लेखक ने बंगाल और बिहार , मध्यप्रदेश के साथ साथ वर्तमान बांग्ला देश , तथा बर्मा ( म्यांमार ) तक का भ्रमण किया व लोगों से जानकारी प्राप्त की . जीवनी का शीर्षक ‘आवारा मसीहा’ शरतचंद्र के जीवन चरित को परिभाषित करने में सक्षम है . सम्पूर्ण नारीत्व – जो कि दया, करुणा , ममता, सेवा, परोपकार , त्याग का समग्र रूप है , उनकी दृष्टि में सतीत्व से कहीं अधिक महान है , ऐसी स्थापना परम्परावादी नैतिकता के पक्षधर लोगों के गले से भले ही नीचे न उतरे , पर सोचने पर अवश्य मजबूर करती है. मानव प्रेम ही नहीं बल्कि प्राणिमात्र से स्नेह जो शरतचंद्र के पशु-पक्षी प्रेम में स्पष्ट झलकता है , उन्हें रचनाकारों की एक अलग ही पंक्ति में खड़ा करता है . अँगरेज़ लेखक सेमुअल जॉनसन के जीवनी लेखक जेम्स बॉसवेल का जो स्थान अंग्रेजी साहित्य में है, प्रभाकर जी ने ‘आवारा मसीहा’ रच कर ही उस से बेहतर स्थान प्राप्त किया है व ख्याति अर्जित की है . विष्णु प्रभाकर का अन्य लेखन भी उच्चकोटि का रहा है .