Tuesday, September 21, 2010

“ तैमूर लंग ”

बचपन में, जब मैं पाँचवी कक्षा का छात्र था , हिन्दी के पाठ्यक्रम में एक कहानी थी “ तैमूर लंग ”। कहानी मुझे इसलिए भी याद है कि उस समय कहानी और शीर्षक का दूर दूर से भी कोई संबंध मालूम न पड़ा क्योंकि एक तो इतिहास की इस क्रूर हस्ती से परिचय कुछ बाद में हुआ , दूसरा , कहानी में शीर्षक केवल एक बार आया है वह भी अंत में। लेखक का नाम मुझे याद नहीं पर कहानी प्रथम पुरुष में थी और दो मित्रों के बारे में थी जो एक ही नाटक कंपनी में काम करते थे ।कहानी का लेखक नाटककार था और उसका मित्र अभिनेता। दुर्भाग्य वश एक नाटक के मंचन के समय अभिनेता मित्र के पाँव में कील चुभ गयी और सेप्टिक होते होते पाँव कटवाने तक की नौबत आ गयी । अभिनेता मित्र तो जीवन से निराश हो ही चुका था क्योंकि अभिनय क्षेत्र की समस्त राहें बंद हो चुकी थी । कई दिन दोनों मित्रों की कोई मुलाक़ात न हुई । उधर लेखक मित्र को चैन कहाँ , वह अपने मित्र के लिए कुछ करना चाहता था । उसने अपने मित्र के लिए एक नाटक लिखा और पांडुलिपि उसे दिखाने के लिए ले गया । नाटक का शीर्षक था “ तैमूर लंग ” ।

कृतज्ञता से भाव विभोर हुए अभिनेता मित्र ने कहा “ इतनी प्रबल उत्तेजना किसने दी ? “

लेखक मित्र का उत्तर था “ तुमने , तुम्हारे प्रेम ने ! ”

कहानी का मर्म जब कई वर्षों के बाद जान पाया तो सच्ची मित्रता का भी अर्थ समझ में आया कि यह नाटक इसी लिए लिखा गया था कि लेखक का मित्र, जो अपना पाँव गंवा चुका था , तैमूर लंग की भूमिका निभा सके ।

सच में ऐसी कालजयी कहानियाँ हर समय तो नहीं लिखी जाती।

Wednesday, September 15, 2010

KHIDKI OR WINDOW

The very mention of the word Window as the English translation of Khidki evoked the image of an opening in the wall , with a wooden frame with one or two pallas with glass fixed in between so that one could have the view of the outside world without any fear of wind or storm, as also bask in the warmth of sunshine in the winter months . Khidki, used to be a source of romance blossoming between two young hearts looking wistfully at each other through the windows and in case of lucky ones , often maturing into life long relationship through matrimony.. There are many instances when some daring ( sic ) lover would jump out of the window lest he be caught meeting the beloved chori chori red handed – and breaking his leg in the process.I remember, as youngsters, we used to recite lines like Khidki khuli zulf uri.....without knowing the meaning, much to the annoyance of our elders. Similarly, the lines - Kharak Singh ke kharakne se kharakti hain khidkiyan , khidkiyon ke kharakne se khadakta hai Kharak Singh - were only an exercise in alliteration . There are a number of songs and ghazals finding mention of the word Khidki, like the one in film Padosan- Mere Samne wali Khidki Mein ik chaand ka tukda rehta hai or yeh Khidki jo band rehti hai. Or as in a Ghazal, Khuli hain Khidkian har ghar ki lekin, gali mein jhankta koi nahin hai.. Khidki was not only a passage for light to enter into our rooms but also our lives both literally and metaphorically.
But now the mention of Windows transports us straight to the Computer world where Windows denotes user friendly interface , making things easier. We have been introduced to different versions of Windows e.g. Windows, 95, 97, 98, 2000, 2003, 2007, XP, Vista and now, Windows 7, denoting various configurations and specifications which terms are all Greek to a layman like me and at the same time sound so unromantic

Saturday, September 4, 2010

उपेंद्रनाथ अश्क

2010 भी दो तिहाई समाप्त हो चुका है और महान रचनाकार उपेंद्रनाथ अश्क की जन्मशती के बारे हिन्दी साहित्य जगत की चुप्पी समझ से परे है .कविता, कहानी , उपन्यास , नाटक यानि लेखन की सभी विधाओं में प्रभाव पूर्ण ढंग से क़लम चलाने वाले अश्क जी अपने समय के हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रहे हैं . उनका उपन्यास “गिरती दीवारें " उपन्यास लेखन में यदि मील का पत्थर साबित हुआ है तो “बड़ी बड़ी आँखें " और “ एक नन्ही किंदील" भी अपने आप में बेजोड़ हैं .
“ डाची ” कहानी भी कम रोचक नहीं. उनकी कविता “मरुस्थल से " बरबस याद आती है इसलिए भी कि यह कैसा मरुस्थल है जो किसी महान लेखक की याद को हरा भरा रखना तो दूर, पनपने देने में भी अक्षम है ।