Monday, March 28, 2011

ख्याल अपना अपना

हम हुए तुम हुए के मीर हुए
उनकी जुल्फों के सब असीर हुए
( मीर तकी 'मीर' )

छोड़ द्रुमों की मृदु छाया , तोड़ प्रकृति से भी माया
बाले तेरे बाल जाल में कैसे उलझा दूं लोचन
( सुमित्रानंदन पन्त )

2 comments:

  1. खूबसूरत पंक्तियों में बयाँ एक ऐसा सच , जिसे कोई नकार नहीं सकता ।

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  2. ख़याल-ए-मीर...
    पंत का ध्यान ....

    अन्तर क्या दोनों की चाह में, बोलो ... !!

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