Wednesday, April 13, 2011

ज़रा इनकी भी सुध लो !

श्वानों को मिलता दूध वस्त्र भूखे बालक अकुलाते हैं।
माँ की हड्डी से चिपक ठिठुर जाडे की रात बिताते हैं

( रामधारी सिंह ' दिनकर ' )

" पुख्ता हैं जनाबेशैख कि हम हैं कच्चे
इतना तो बता दें वो अगर हैं सच्चे
कि पिछले जनम में थे खुदा के दुश्मन
ये भूख से एड़ियाँ रगड़ते बच्चे "

( ' जोश ' मलीहाबादी )

3 comments:

  1. The lines are so touching by both the poets.

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  2. श्वानों को मिलता दूध वस्त्र भूखे बालक अकुलाते हैं।
    माँ की हड्डी से चिपक ठिठुर जाडे की रात बिताते हैं

    दिनकर जी को नमन .....

    आभार...!!

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  3. A place where I get solace !!!!

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