यों तो लोहड़ी रात को अलाव जला कर , उसके चारों ओर बैठ कर और गीत गा कर
मनायी जाती है , पर हमारे समय में बच्चों की लोहड़ी सुबह से ही शुरू हो जाती
थी , जब पूरे मुहल्ले के बच्चों की टोली लोहड़ी घर घर मांगने निकलती थी ।
किसी ने 10-20 पैसे दे दिये तो बहुत , यदि कोई कुछ न दे तो ‘हुक्का भई हुक्का
ए घर भूक्खा ‘ कह कर भड़ास निकाली जाती थी । रेवड़ी , मूँगफली के लिए
थोड़े पैसे इकट्ठे हो जाते थे. मेरे जैसे उम्र रसीदा लोगों के लिए अब सिर्फ
यादें ही बाकी हैं, वक़्त के साथ साथ त्योहार मनाने के तौर तरीके भी बदल
गए हैं .यों सरकारी कॉलोनी में रहते हुए कई वर्षों तक लोहड़ी का आनंद खूब
मनाया है।
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