राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर की आज जयंती है । दिनकर जी के नाम से परिचय स्कूल के जमाने में हुआ जब पाठ्यक्रम में हिमालय पर उनकी एक कविता पढ़ी । कुछ पंक्तियाँ अब भी याद हैं , यथा :
मेरे नगपति मेरे विशाल’
साकार दिव्य गौरव विराट,
मेरी जननी के हिम किरीट,
मेरी माता के दिव्य भाल ........
मेरे नगपति मेरे विशाल’
साकार दिव्य गौरव विराट,
मेरी जननी के हिम किरीट,
मेरी माता के दिव्य भाल ........
वीर रस और शृंगार रस जैसी परस्पर विरोधी काव्य शैली में ‘कुरुक्षेत्र’ और ‘उर्वशी’ जैसी अनूठी व अद्वितीय काव्य रचनाओं का सृजन कर दिनकर जी ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। हुंकार,रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा जैसी काव्य रचनाएं तो की ही, इसके अतिरिक्त ‘संस्कृति के चार अध्याय’ नामक पुस्तक पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला । ‘उर्वशी’ के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हुए तथा पद्म विभूषण भी मिला । उनकी कविताओं की कुछ बानगी इस प्रकार है :
‘असल में हम कवि नहीं शोक की संतान हैं ............’
‘रे रोक युधिष्ठिर को न यहाँ, जाने दे उनको स्वर्ग धीर ,
पर फिरा हमें गांडीव गदा, लौटा दे अर्जुन भीम वीर.......’
पर फिरा हमें गांडीव गदा, लौटा दे अर्जुन भीम वीर.......’
‘मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं,
उर्वशी अपने समय का सूर्य हूँ मैं ...........’
उर्वशी अपने समय का सूर्य हूँ मैं ...........’
‘क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो; उसको क्या जो दन्तहीन, विषहीन, विनीत, सरल हो....’
हिन्दी साहित्य के इस पुरोधा को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !
दिनकर जी मेरे पसंदीदा कवियों में से हैं। उनकी एक कविता की कुछ पंक्तियां यहॉं प्रस्तुत कर रहा हूँ-
ReplyDeleteरात यों कहने लगा मुझसे गगन का चॉंद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है।
उलझनें अपनी बनाकर अाप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो, जगता न सोता है।