Thursday, May 7, 2015

शिव बटालवी

बिरह दा सुल्तान शिव बटालवी, पंजाबी कविता का एक अमिट हस्ताक्षर। शिव बटालवी की आज पुण्यतिथि है। अपने जीवन के  37वें वर्ष में ही इस संसार को अलविदा कहने वाले इस अत्यंत लोकप्रिय कवि को सबसे कम उम्र में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होने का गौरव हासिल है। अपने अल्प जीवन काल में लूना  काव्यनाटक की रचना के साथ साथ अनेकों गीत व कविताएं भी रची। उनकी कविताओं में सौंदर्य, प्रेम , भावावेग, विरह आदि सब का समावेश मिलता है । बिना आडंबर के, सीधे सादे शब्दों में गूढ़ भावों की अभिव्यक्ति शिव बटालवी  को अलग पहचान ही नहीं देती बल्कि उन्हें कवियों की अग्रिम पंक्ति मे  भी खड़ा करती है.  मैनु तेरा शबाब लै बैठा..... और चरखा मेरा रंगला विच सोने दियाँ मेखां...... तो लोकप्रियता के शीर्ष पर हैं।उनकी कविता में क्लासिकल और रोमांटिक दोनों का समावेश और समन्वय मिलता है। यूं उनकी तुलना अंग्रेज़ रोमांटिक कवि शैले  से भी की गई है परंतु शिव बटालवी, जॉन कीट्स के  काफी  निकट  पाये जाते हैं। सौन्दर्य बोध , मृत्यु की ईच्छा व मृत्यु का पूर्वाभास  दोनों में पाया जाता है। उल्लेखनीय है कि शिव बटालवी और कीट्स दोनों ने ही दीर्घायु नहीं पाई और  युवावस्था में ही सिधार गए .
शिव बटालवी के गीत/ कविता की एक बानगी:
“असां ते  जोबण रुते मरना
टुर जाणा असां भरे भराये
एह मेरा गीत किसे न गाणा
एह मेरा गीत मैं आपे गा के
 भलके ही मर जाणा.......”
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“माये नी माये
मैं इक  शिकरा यार बनाया
ओदे सिर ते कलगी
ओदे पैरीं  झाँझर
ते ओ चोग चुगेंदा आया......”
                                     ……………….
“ जाच मैनु  आ गयी  गम  खाण दी
  हौली हौली रो के जी परचाण   दी......”
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“जी करदा  ए  इस दुनिया नू  मैं हस के ठोकर मार देयां......”



1 comment:

  1. ईमानदारी से कहूँ तो शिव बटालवी का नाम पहली बार सुना है मैनें। चूँकि पंजाबी जानता नहीं इसलिए पंजाबी साहित्‍य से अधिक परिचय नहीं रहा है। किन्‍तु बी0ए0 में अंग्रेेजी साहित्‍य में जॉन कीट्स को पढ़ चुका हूँ इसलिए कुछ कुछ समझ सकता हूँ बाकी अापकी पोस्‍ट भी ने इनके बारे में जानकारी दी है। न जाने क्‍यों ऐसी नैसर्गिक प्रतिभाएं अल्‍पायु में ही दुनिया छोड़ जाती हैं। हिन्‍दी साहित्‍य में भारतेन्‍दु, भुवनेश्‍वर प्रसाद और दुष्‍यन्‍त कुमार जैसी प्रतिभाएं अल्‍पायु में ही दुनिया छोड़ गईं। यह कल्‍पना करना मुश्किल है कि यदि ये प्रतिभाएं और अधिक समय जीवित रहतीं, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो, तो अपने अपने क्षेत्र में उन्‍होंने कितना योगदान दिया होता।

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