Wednesday, May 20, 2015

सुमित्रानंदन पंत


प्रकृति के अनुपम चितेरे सुकुमार कवि  सुमित्रानंदन पंत की आज जयंती है.आज ही के दिन नैसर्गिक सौंदर्य से सराबोर अल्मोड़ा के कोसानी गाँव में 1900 ई॰ को जन्मे , गुसाईं दत्त से सुमित्रानंदन बने पंत जी ने वृहद साहित्य सम्पदा छोड़ी है.उत्तर छायावाद के प्रतिनिधि कवि  तो वे है ही. प्रकृति प्रेम उनकी कविता मे प्रमुखता से विद्यमान है, और ग्रामीण जीवन ने  उन्हें  विशेष रूप से आकर्षित व प्रभावित किया है. उनके एक काव्य संग्रह का नाम ही ग्राम्या है, और  ग्राम-श्री नामक कविता में तो मानो प्रकृति सजीव और साकार  हो उठती है।
“फैली खेतों में दूर तलक,
मखमल सी कोमल हरियाली
लिपटी जिनसे रवि की किरणें
चांदी की सी उजली जाली........”
                                -पढ़ते पढ़ते  पाठक जब
लहलह पालक, महमह धनिया, 
लौकी औ' सेम फली, फैलीं,
मख़मली टमाटर हुए लाल, 
मिरचों की बड़ी हरी थैली
.....” तक पहुंचता है तो मंत्र मुग्ध हो चुका होता है .
अपनी कविता की पंक्तियों –
“छोड़ द्रुमों की मृदु छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया,
बाले तेरे बाल जाल में कैसे  उलझा दूं लोचन......”  में तो पंत जी प्रकृति प्रेम को सर्वश्रेष्ठ मानते  प्रतीत होते हैं.मानवीय सौंदर्य उन्हें  आकर्षित नहीं करता .     
प्रकृति प्रेम  व प्रकृति  वर्णन में पंत जी  अंग्रेज़ कवि  वर्ड्सवर्थ को भी एक तरह से पीछे छोड़ते प्रतीत होते हैं, जबकि  वर्ड्सवर्थ कि कविता में भी प्रकृति से एकरसता प्रचुर मात्रा में पाई जाती है.

इसके अतिरिक्त उनने मधुज्वाल के नाम से उमर खय्याम की रुबाइयों का अनुवाद सीधा  मूल फारसी से किन्ही फारसी विद्वान की सहायता से किया है , जो कि पढ़ते ही बनता है .
एक बानगी:
“खोलकर मदिरालय का द्वार
प्रात ही कोई उठा पुकार
मुग्ध श्रवणों में मधु रव घोल,
जाग उन्मद मदिरा के छात्र!
ढुलक कर यौवन मधु अनमोल
शेष रह जाय नहीं मृद् मात्र
ढाल जीवन मदिरा जी खोल
लबालब भर ले उर का पात्र !.........”
कविवर हरिवंशराय बच्चन और महाप्राण निराला के प्रति  यदि कुछ प्रतिस्पर्धा का भाव है, तो दोनों के प्रति पंत जी की आत्मीयता भी कम नहीं. हिन्दी सिनेमा के सुपर स्टार रहे आमिताभ  बच्चन को  अमिताभ नाम पंत जी का ही दिया हुआ है. निराला के दबंग व्यक्तित्व के आगे  पंत जी यद्यपि लाचार दिखते हैं , तथापि  उनकी काव्य प्रतिभा के प्रति पंत जी का आदर व सम्मान उनकी इन पंक्तियों में झलकता है
“…….जीवन के कर्दम से अमलिन मानस सरसिज
शोभित तेरा, वरद शारदा का आसन निज।
अमृत पुत्र कवि, यश:काय तव जरा-मरणजित,
स्वयं भारती से तेरी हृतंत्री झंकृत........”
माँ सरस्वती के इस वरद सपूत को  श्रद्धांजलि  !

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