‘जुड़दे पुल’
पहाड़ी
कविता संग्रह
भगत
राम मंडोत्रा
प्रकाशक:
भगत राम मंडोत्रा
कमला
प्रकाशन, कमला कुटीर, गांव चम्बी
डाकघर
संघोल, ज़िला कांगड़ा ( हि.प्र. )
पिन:
176091
ISBN:
978-93-5258-202-0
मूल्य:
रु. 145/-
‘जुड़दे पुल’ कवि लेखक मित्र
श्री भगत राम मंडोत्रा द्वारा रचित 85 पहाड़ी कविताओं का संग्रह है । कवि ने भारतीय
सेना में सूबेदार मेजर ( आनरेरी लेफ्टिनेंट
) के रूप में सेवाएँ दी हैं तथा तदोपरांत इंटेलिजेंस
ब्यूरो में ACIO भी रह चुके हैं । कविता संग्रह काँगड़ी- पहाड़ी बोली
में है व अपनी सादा शैली, शब्द चयन व
बिम्ब रचना से आकर्षित करने में पूर्णतया सक्षम
है । अनेक कविताएं ग्राम्य पृष्ठभूमि की हैं ।इस कविता संग्रह का फ़लक विस्तृत है तथा
जीवन के सभी रंगों का इसमे समावेश मिलता है। इसमे विशुद्ध हास्य ,
हल्का सा व्यंग्य, प्रेम , रोमांस सभी कुछ का पुट मिलता है । कवि की पैनी दृष्टि
से कुछ नहीं बचता । कविताओं के शीर्षक मसलन’ ‘भा मत खाई करा’, ‘ये
जमीना दे टुकडु’, ‘घघरी’, ‘उम्मीद’, ‘बकरियाँ’ , ‘गांयीं’, ‘यादां’, ‘बौड़ियाँ’, ‘बोंकरी’, ‘बापू इस देशे नी औणा’ ,
‘मीडिया’, ‘मेले’, ‘महंगाई’, ‘होई सके तां फिरी औणा कलाम’,
‘नुहुआं’, ‘कार्गिल विजय दिवस’, ‘शहीदा
जो सलाम’, ‘सही चुणनी असां सरकार’
आदि आदि अपने आप में बहुत कुछ बता देते हैं। गरज ये कि घरेलू जीवन,प्रदूषण, पर्यावरण संरक्षण, संस्कृति, ग्रामीण परिवेश, देश भक्ति,वर्तमान
हालात, मीडिया की मनमानी व कार-करदगी,
एक जागरूक नागरिक के नाते कर्तव्य एवं जिम्मेदारियाँ-
लगभग सभी कुछ को अपनी कविताओं में कवि ने समेटा
है।
एक
बानगी :
बणी
ठणी सामने मत आई करा
असां
बी घट नी भा मत खाई करा
...
दिखावे
दी तां अजकलहद नी रही
भलेयों
ढकी ढकोई आई करा
...........
निआंयेँ
दिया देविया हाखीं धूडां जमियां
मकदमे
दियां उमरां माहणुआं ते लमियां
.............
होये
भला नी बुरा करणा
पापा
दी नी पंड बधाणी
............
टब्बरे
जो रोटियां थे खुआंदे, ये जमीनां दे टुकडु
बेहलेयां
जो रिज़क थे दुआंदे, ये जमीनां दे टुकडु
.............
हवाई
मैहलां बिच रहणा छड़ीता
चोर
चलाकां कने बैहणा छड़ीता
............
टेकदा
था मत्था 'भगत' जिथु हर बार
पैडियां
मंदिरे दी ढही गईयां
..........
होई
भ्याग निंदरा छडणा पौणा
सफर
तां मुसाफरा चली के कटोणा
...............
खूब
पता होंदा झूठे लारेयां दा
कैंहनी
मुकदा अप्पु जो ठगाणे दा चा
.........
हवन
पूजा पाठ वेले मरद पाण धोतियाँ
जणासां
दा पवितर पहनाव हर बार घघरी
................
करदी
रही साफ सफाई बोंकरी
सड़कां
लगाई लसकाई बोंकरी
बड़ेयां
बड़ेयां माणुआं ठुक्का ने
हथ
लाई फ़ोटो खिंचाई बोंकरी
..............
आजाद
भारते दी सोह
बापू
इस देशे नी औणा
पहलें
पिस्तोल थी चलियो
हुण
तां तोपां चली पोणा
.............
' हवाई मैहलां बिच रहणा छड़ीता'
कविता में छड़ीता,
दसीता, करीता, पढ़ीता, मढ़ीता आदि शब्द ज़ाहिरी तौर पर दो शब्दों के मेल से
बने हैं और बोलचाल की भाषा में इसी रूप में प्रयुक्त होते हैं । इन शब्दों के कारण भी पाठक कविता
से अपना जुड़ाव अनुभव करता है ।
सभी
कविताएं रोचक भी हैं और संदेशपरक भी । मेरा संबंध यद्यपि शिमला से है ,
फिर भी केवल एकाध शब्द से ही मैं अपरिचित था
। पाठक अवश्य इन कविताओं का आनंद ले सकते हैं ।
कवि
की दो और पुस्तकें भी हैं, जिनकी चर्चा बाद में ।
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