Saturday, September 12, 2020

Shimla Musings

आज अपने स्कूल के एक अन्य अध्यापक महोदय की याद आ रही है , जिनका नाम नराता राम था । उम्र से काफी बुज़ुर्ग थे पर चुस्त दुरुस्त । संजौली में रहते थे और लक्कड़ बाजार तक आना जाना साइकिल पर  होता था । विद्यार्थियों को सख्त हिदायत थी कि ऐसे समय उन्हें अभिवादन न करें , शायद एक बार ध्यान बंटने पर दुर्घटना होते होते बची । घनी मूंछे और टोपी उनकी विशेष पहचान थी । छोटी कक्षाओं को गणित,  सामाजिक अध्ययन पढ़ाते थे। गणित के ऐसे ऐसे फार्मूले उनके पास थे जो  किताबों में कहीं ढूंढ कर नहीं मिलते थे । पढ़ाने का ढंग बहुत अच्छा था । दोनों विषयों पर पकड़ अद्भुत थी । चाहे  इतिहास  में जलालुद्दीन अकबर हो या भूगोल  में  मरुस्थल कालाहारी, विस्तृत जानकारी मिल जाती  थी ।रौब  पूरा था , अनुशासन हीनता बर्दाश्त न थी । गुस्सा आने पर 'हराम खोरो'  उनका तकिया क़लाम था । एक बार शनिवार को क्लास छोड़ते समय उनके मुंह से निकल गया 'ज़िन्दगी रही तो फिर मिलेंगे' . मेरा रविवार का दिन भी इसी पसोपेश में गुज़रा कि कहीं कुछ हो न जाए । सोमवार को जब सब सामान्य पाया तो मन को  शांति मिली ।

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