Friday, February 23, 2018

माँ

स्कूल के ज़माने में रूसी लेखक पौस्तोवस्की का उपन्यास
समय के  पंख' पढ़ा था और  Time has wings एक प्रचलित कहावत है। पच्चीस वर्ष  का अरसा कम नहीं पर  इतना ज्यादा भी नहीं कि बहुत कुछ भुलाया जा सके ।
माँ को गए 25 वर्ष  हुए । 1993 में 23-24  फरवरी की रात को  हम सब को  छोड़ कर अनंत यात्रा पर निकल गयी।यों उनका जाना न  अचानक था न अप्रत्याशित क्यों कि माँ  food pipe के कैंसर जैसे असाध्य रोग से ग्रसित थी और कुछ महीनों से बहुत  कष्ट में थी। ज़ाहिर है, food pipe का कैंसर था खाने व निगलने में कठिनाई थी। माँ को  कष्ट से मुक्ति तो मिली  पर हमारे  लिए तो  असहनीय दुःख था।
वैसे माँ का स्वास्थ्य कभी अच्छा नहीं रहा पर  थोड़े बहुत  कष्ट या तकलीफ की कभी परवाह न  की और पारिवारिक दायित्वों को भली प्रकार निभाया।माँ का प्यार हम सब को बिना किसी  भेदभाव के  समान रूप से मिला।
थोड़ा और पीछे  जाऊं तो याद आता है कि  बात चीत में माँ अक्सर अपनी उम्र 40 वर्ष होना बताती थी और मुझे चिन्ता
हो जाती थी क्योंकि पास पड़ोस में स्कूल में पढ़ रहे बच्चों को मातृ सुख से  वंचित होते देख चुका था । एक बार तो  एक  पड़ोसन ने माँ की बात काटते  हुए  62 वर्ष  आयु  होने की भविष्यवाणी कर दी थी। खैर  जब माँ 41 की हुई  तो  मानो चिंता का  एक बोझ  मेरे मनमस्तिष्क से उतरा ।
हमारी  पढ़ाई लिखाई का ध्यान  रखना, कॉपी किताब से  ले कर स्कूल की वर्दी,  अन्य  वस्त्रादि  आवश्यकताओं  का ध्यान माँ बखूबी रखती  थी । पिता जी  का काम केवल धन उपलब्ध कराना था। हाँ, हम में से कोई बीमार होता तो  माँ  और पिता जी दोनों दिन रात एक कर देते।
1991 की  गर्मियों के आस पास जब मेरी  पत्नी दुबारा उम्मीद से हुईं तो प्रत्याशित प्रसव से 4-5 मास   पूर्व माँ  हमारे साथ रहने को सराहां आयी  जहां उन दिनों  मैं सेवारत था ।
 यद्यपि इस दौरान  माँ   को गले में  तकलीफ शुरू हो चुकी थी पर उसे  दरकिनार करते हुए  उन ने मेरी पत्नी का हर प्रकार से ध्यान रखा । जनवरी 1992 में  हमें पुत्र की प्राप्ति हुईं।अप्रैल मई में  माँ वापिस शिमला आयी तो परीक्षण के उपरान्त कैंसर होने की पुष्टि हुई। उसके बाद radio therapy आदि  इलाज का सिलसिला  जिससे कोई लाभ  नहीं ।अंततः 62 वर्ष पूरे  करने से   लगभग  दो  मास पूर्व ही माँ चल बसी । यों माँ की यह इच्छा थी कि मेरे पुत्र को बड़ा होते देख लेती ।
उस समय मुझे उस पड़ोस की  आंटी  की  at  random की गयी  भविष्यवाणी याद आयी ।
आज जबकि उम्र के उस पड़ाव को   मैं स्वयं पार कर चुका हूँ तो लगता  है कि माँ  वक़्त से  कुछ पहले ही चली गयी ।

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