चल चला चल
लेखक: जगदीश बाली
प्रकाशक : Authors Press, नई दिल्ली
ISBN 978-93-87281-02-8
पृष्ठ संख्या: 252
मूल्य : रु॰ 350/-
यह अभिप्रेरक पुस्तक ‘चल चला चल’ लेखक जगदीश बाली की दूसरी पुस्तक है । इससे पूर्व अङ्ग्रेज़ी में लिखी उनकी पुस्तक ‘The Spark Is Within You’ भी आ चुकी है जो काफी लोकप्रिय रही है। दोनों पुस्तकें अभिप्रेरक हैं इसलिए विषयवस्तु में समानता तो है पर ‘चल चला चल' अङ्ग्रेज़ी पुस्तक का मात्र अनुवाद नहीं है ।
‘चल चला चल’ शीर्षक पढ़ कर मेरे जेहन में सबसे पहले फिल्मी गीत ‘फकीरा चल चला चल .....’ व स्कूल में पढ़ी H.W.Longfellow रचित कविता ‘Excelsior’ आयीं। पुस्तक में कुल 37 अध्याय हैं जिनके शीर्षक अनायास ही ध्यान आकर्षित करते हैं ।इससे पाठक को यह सुविधा भी है और स्वतन्त्रता भी कि वह अपनी रुचि के अनुसार पढ़ने का क्रम निर्धारित कर सकता है । यों पूरी पुस्तक ही अपने आप में पठनीय भी है और ग्राह्य भी क्योंकि लेखक ने भाषा के स्तर को बनाए रखने के साथ साथ सामग्री को रोचक बनाने में कोई चूक नहीं की है।पुस्तक के आरंभ में ईश्वर की अपरिहार्यता दर्शा कर लेखक ने मानव की सीमाओं का भी परोक्ष रूप में उल्लेख किया है । पुस्तक में जहां सफलता के सूत्र सुझाए गए हैं, वहीं चरित्र निर्माण पर भी भरपूर ध्यान दिलाया गया है । पुस्तक अध्ययनरत विद्यार्थियो से ले कर जीवन के हर क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों के लिए है तथा सार्वजनिक एवं निजी जीवन में गुणात्मक सुधार लाने में सक्षम है । पुस्तक में लेखक ने अपने निजी जीवनानुभावों, घरेलू वार्तालाप, भारतीय एवं पाश्चात्य मनीषियों,धार्मिक ग्रन्थों, शीर्ष लेखकों,दार्शनिकों , कवियों,उर्दू शायरों,कलाकारों , फिल्म कलाकारों , वैज्ञानिकों, खिलाड़ियों के जीवन से उदाहरण एवं उद्धरण प्रस्तुत कर अपनी बात पाठकों के सम्मुख रखने का श्रमसाध्य भागीरथ प्रयास किया है जो कि प्रशंसनीय है। पुराने व समसामयिक संदर्भों का समावेश पुस्तक को अधिक पठनीय बनाता है।पुस्तक में तुलसीदास, रहीम, ग़ालिब, शेक्सपियर...आदि के संदर्भ मौजूद हैं । लक्ष्य निर्धारण, एकाग्रता, अथक परिश्रम , निर्भयता, दयाभाव, विनम्रता, बच्चों के सामने अपने आचरण द्वारा उदाहरण प्रस्तुत करना, कार्य में टालएमटोल न करना, आज का काम कल पर न छोड़ना, आत्मविश्वास पैदा करना,ईमानदारी, सदाचार, उम्र में बड़ों व छोटों को यथोचित सम्मान देना- हर प्रकार के गुणों के समावेश को सोदाहरण प्रस्तुत किया गया है ।
द्विभाषी लेखक होना कोई आसान काम नहीं है पर लेखक की दोनों भाषाओं पर भरपूर पकड़ और अधिकार है । लेखक ने अपने पत्रकारिता व अध्यापकीय अनुभव का भरपूर लाभ उठाते हुए यह ऊत्कृष्ट लेखन कार्य किया है ।
पुस्तक चूँकि हिन्दी पाठकों को ध्यान में रख कर लिखी गयी है, अत: आशा ही नहीं बल्कि विश्वास है कि यह अधिकाधिक पाठकों के बीच पहुंचेगी और वे इससे अवश्य ही लाभान्वित होंगे ।
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