हिन्दी सिनेमा के लोकप्रिय गीतकार स्व. शैलेंद्र की आज 95वीं जयंती है .आरम्भ में रेल विभाग में बतौर अप्रेंटिस अपनी नौकरी के दौरान शैलेंद्र ने कविताएं
फ़िल्म बूट पालिश का मशहूर गीत - चली कौन से देश - उनके द्वारा लिखित ही नहीं बल्कि उन पर फिल्माया भी गया है । बूट पालिश, श्री 420 , मुसाफिर को मिला कर पांच फिल्मों में शैलेंद्र ने अभिनय किया ।
तीन बार उन्हें फ़िल्मफ़ेयर उत्कृष्ट गीतकार पुरस्कार से भी नवाजा गया । उनने फिल्म ' तीसरी कसम' का निर्माण किया पर यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल न हुई ।
मात्र 43 वर्ष की आयु में 1966 में शैलेंद्र का निधन हुआ ।
सीधे सादे शब्दों का प्रयोग कर अनेकों कालजयी गीतों की रचना करने वाले शब्दों के इस महान जादूगर को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !
लिखना शुरू किया।सर्वप्रथम फिल्म अभिनेता- निर्माता राज कपूर ने उनकी कविता सुन कर फिल्म के लिए गीत लिखने का अनुरोध किया परन्तु आत्म सम्मान से भरे शैलेंद्र ने अनुरोध स्वीकार नहीं किया
। बाद में जब पत्नि की गर्भावस्था के दौरान उन्हें पैसे की ज़रुरत महसूस हुई तो वो स्वयं राजकपूर के पास गए ।मात्र पांच सौ रूपए के एवज में फिल्म बरसात के लिए दो गीत लिखे जो बहुत लोकप्रिय हुए ।इसके बाद शैलेंद्र ने पीछे मुड़ के नहीं देखा और एक से एक गीत फिल्मों के लिए रचे । यदि मुकेश राज कपूर की आवाज़ थे तो शैलेन्द्र उनकी भाषा या शब्द.वास्तव में ये राजकपूर ,मुकेश, शैलेन्द्र और शंकर-जयकिशन की चौकड़ी थी जिसने वर्षों तक सिनेमा और संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज किया।
सुनते हैं, कि शंकर- जयकिशन ने उनसे वादा किया था कि वो उन्हें अन्य संगीतकारों से भी काम दिलाएंगे पर जब शंकर जय किशन ने ऐसा कुछ न किया तो शैलेंद्र ने क्षुब्ध होकर ये पंक्तियां लिख भेजीं ' छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं , कभी तो मिलोगे तो पूछेंगे हाल....'। शंकर जयकिशन ने न केवल उनके नाम की संस्तुति अन्य संगीतकारों से की बल्कि जीवन भर मित्रता भी निभायी ।बाद में ये पंक्तियां भी एक गीत के रूप में किशोर कुमार ने गायीं । शैलेंद्र ने शंकर जयकिशन के अलावा एस.डी. बर्मन, सलिल चौधरी, जैसे अन्य सन्गीत कारों के लिए भी गीत लिखे !आवारा, गाइड, तीसरी कसम, सन्गम, अनाड़ी, मेरा नाम जोकर, सुजाता, बरसात आदि फिल्मों के लिये उनके द्वारा लिखे गीत आज भी लोकप्रिय हैं । फिल्म 'आवारा ' का गीत ' आवारा हूँ ' तो देश विदेश में अत्यन्त लोकप्रिय हुआ । नोबेल पुरस्कार विजेता रूसी लेखक Aleksandr Solzhenitsyn के विश्व प्रसिद्ध उपन्यास Gulag Archipelago में भी 'आवारा हूँ ' गीत और इसकी धुन का सन्दर्भ मिलता है ।। बाद में जब पत्नि की गर्भावस्था के दौरान उन्हें पैसे की ज़रुरत महसूस हुई तो वो स्वयं राजकपूर के पास गए ।मात्र पांच सौ रूपए के एवज में फिल्म बरसात के लिए दो गीत लिखे जो बहुत लोकप्रिय हुए ।इसके बाद शैलेंद्र ने पीछे मुड़ के नहीं देखा और एक से एक गीत फिल्मों के लिए रचे । यदि मुकेश राज कपूर की आवाज़ थे तो शैलेन्द्र उनकी भाषा या शब्द.वास्तव में ये राजकपूर ,मुकेश, शैलेन्द्र और शंकर-जयकिशन की चौकड़ी थी जिसने वर्षों तक सिनेमा और संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज किया।
फ़िल्म बूट पालिश का मशहूर गीत - चली कौन से देश - उनके द्वारा लिखित ही नहीं बल्कि उन पर फिल्माया भी गया है । बूट पालिश, श्री 420 , मुसाफिर को मिला कर पांच फिल्मों में शैलेंद्र ने अभिनय किया ।
तीन बार उन्हें फ़िल्मफ़ेयर उत्कृष्ट गीतकार पुरस्कार से भी नवाजा गया । उनने फिल्म ' तीसरी कसम' का निर्माण किया पर यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल न हुई ।
मात्र 43 वर्ष की आयु में 1966 में शैलेंद्र का निधन हुआ ।
सीधे सादे शब्दों का प्रयोग कर अनेकों कालजयी गीतों की रचना करने वाले शब्दों के इस महान जादूगर को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !
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