प्रसंगवश :
हिन्दी भक्ति साहित्य व भक्ति काल की महान विभूति संत कबीर का आज 500वां प्रयाण दिवस है । 1398 को जन्मे कबीर का पालन पोषण नीरू नाम के मुस्लिम जुलाहे और उसकी पत्नी नीमा ने किया ।
अनायास ही राम के अनन्य भक्त रामानंद से राम नाम की दीक्षा मिली व राम भक्ति में लीन हो कर पूरा जीवन बिता दिया । गृहस्थ जीवन में रहते हुए विवाह भी हुआ और संतान प्राप्ति भी । सांसारिकता का निर्वाह करते हुए भी मोह माया से दूर रहे और वैराग्य का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया । अनेकानेक दोहों की रचना की । ' मसि कागद छुह्यो नहीं, कलम गह्यो नहीं हाथ' की स्वीकारोक्ति के बावजूद उनके दोहों में भक्ति, दर्शन, वैराग्य, निस्पृहता, व्यवहारिकता - सभी का समावेश मिलता है । साधारण भाषा शैली में रचित दोहे शीघ्र कंठस्थ हो जाते हैं और अनेक सन्दर्भों में उद्धृत होते हैं । रूढ़ियों व अन्धविश्वास के घोर विरोधी होने के नाते कबीर एक समाज सुधारक के रूप में भी जाने जाते हैं ।
हिंदी साहित्य में उन्हें विशिष्ट स्थान प्राप्त है और उनकी रचनाओं पर बहुत अधिक शोध किया गया है । ज्ञातव्य है कि हिंदी साहित्य की प्रथम डी. लिट, डा. पीताम्बर दत्त बड़थवाल को उनके कबीर पर लिखे शोध प्रबंध पर दी गयी थी । इसके अतिरिक्त डा. नगेन्द्र का कबीर पर लिखा पी. एचडी शोध प्रबंध सीधे तौर पर डी. लिट् के लिए स्वीकृत हुआ था ।
हिन्दी भक्ति साहित्य व भक्ति काल की महान विभूति संत कबीर का आज 500वां प्रयाण दिवस है । 1398 को जन्मे कबीर का पालन पोषण नीरू नाम के मुस्लिम जुलाहे और उसकी पत्नी नीमा ने किया ।
अनायास ही राम के अनन्य भक्त रामानंद से राम नाम की दीक्षा मिली व राम भक्ति में लीन हो कर पूरा जीवन बिता दिया । गृहस्थ जीवन में रहते हुए विवाह भी हुआ और संतान प्राप्ति भी । सांसारिकता का निर्वाह करते हुए भी मोह माया से दूर रहे और वैराग्य का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया । अनेकानेक दोहों की रचना की । ' मसि कागद छुह्यो नहीं, कलम गह्यो नहीं हाथ' की स्वीकारोक्ति के बावजूद उनके दोहों में भक्ति, दर्शन, वैराग्य, निस्पृहता, व्यवहारिकता - सभी का समावेश मिलता है । साधारण भाषा शैली में रचित दोहे शीघ्र कंठस्थ हो जाते हैं और अनेक सन्दर्भों में उद्धृत होते हैं । रूढ़ियों व अन्धविश्वास के घोर विरोधी होने के नाते कबीर एक समाज सुधारक के रूप में भी जाने जाते हैं ।
हिंदी साहित्य में उन्हें विशिष्ट स्थान प्राप्त है और उनकी रचनाओं पर बहुत अधिक शोध किया गया है । ज्ञातव्य है कि हिंदी साहित्य की प्रथम डी. लिट, डा. पीताम्बर दत्त बड़थवाल को उनके कबीर पर लिखे शोध प्रबंध पर दी गयी थी । इसके अतिरिक्त डा. नगेन्द्र का कबीर पर लिखा पी. एचडी शोध प्रबंध सीधे तौर पर डी. लिट् के लिए स्वीकृत हुआ था ।
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