‘रिहड़ु खोलू'
(काँगड़ी हिमाचली कविता संग्रह)
भगत राम मंडोत्रा
प्रकाशक: भगत राम मंडोत्रा
कमला प्रकाशन, कमला कुटीर, गांव चम्बी
डाकघर संघोल, ज़िला कांगड़ा ( हि.प्र. )
पिन: 176091
ISBN: 978-93-5265-589-2 Paperback
978-93-5290-590-8 E-Book
मूल्य: रू. 200/-
‘रिहड़ु खोलू’ कवि मित्र श्री भगत राम मंडोत्रा का दूसरा कविता संग्रह है ।इससे पूर्व उनका पहाड़ी में ही एक कविता संग्रह ‘जुड़दे पुल’ प्रकाशित हो चुका है ।इस कविता संग्रह के बारे में यों तो विद्वदजनों ने प्राक्कथन में अपनी टिप्पणियों में सब कुछ कह दिया है, फिर भी दो शब्द मेरी ओर से !
32 वर्ष भारतीय सेना में सेवायें देकर सूबेदार मेजर (ऑनरेरी लेफ्टिनेंट)के पद से सेवानिवृत व तदोपरांत 5 वर्ष इंटेलिजेंस ब्यूरो में बतौर ACIO रह चुके मंडोत्रा जी ने कविता लेखन में अपनी रुचि को आगे बढ़ाने का जो खूबसूरत निर्णय लिया , उसकी परिणति उनके इन कविता संग्रहों के रूप में हमारे सामने है ।फ़ेसबुक तो इनकी छोटी बड़ी सुंदर रचनाएँ प्रतिदिन ही पढ़ने को मिलती हैं। ‘रिहड़ु खोलु’ का आवरण ही अपने आप में नैसर्गिक सौंदर्य का परिचायक है तथा बरबस अपनी ओर आकृष्ट करता है। 79 बेहतरीन कविताओं से सुसज्जित इस संग्रह में पढ़ने, गुनने और आनंदित होने के लिए बहुत कुछ है ।कवि कहाँ एक ओर अपने प्रदेश के प्राकृतिक सौन्दर्य से अभिभूत हैं, वहीं दूसरी ओर उनके सैन्य जीवन के प्रत्यक्ष अनुभव भी कुछ कविताओं में सहज ही दृष्टिगोचर है । सेना , सैनिकों व सैनिकों द्वारा देश की रक्षा हेतु दिये गए बलिदान के प्रति प्रकट किए उद्गार एक आम नागरिक को भी गर्व का अनुभव कराते हैं । कविताओं में व्यंग्य की धार कुछ और तेज हुई है व बेबाकी भी बढ़ी है ।
प्रथम कविता ‘हिमाचले च छैल नज़ारे मिलदे’ में प्रदेश के प्राकृतिक एवं मानवीय सौंदर्य और मनोरम दृश्यावली के साथ साथ सादगीपूर्ण सामाजिक जीवन, पहनावे व खान पान की झलक दिखती है । पुस्तक का नाम ‘रिहड़ु खोलु’ भी इसी कविता से लिया गया है ।
हिमाचले च छैल नज़ारे मिलदे ।
सिद्धे सादे लोक प्यारे मिलदे ।।
..................
रिहड़ु खोलु धरान पधरे हार ।
पौड़ी ख्तेयान दे नजारे मिलदे ।।
..................
छोले डोरू कुर्ता सुथणु घघरी।
रीहड़ेयां सलमे सितारे मिलदे ।।
से पढ़ने का समा बंधता है ।
‘बोलियाँ चाहे बखरियां, बखबख हर रुआज है’ कविता ‘अनेकता में एकता’ का संदेश देती है –
‘वक़्त औणे पर सबों इक जुट खड़ोंदे दुस्सदे ।
बोलियाँ चाहे बखरियां, बखबख हर रुआज है ll
..................
कुछ अन्य कविताओं की बानगी इस प्रकार है :
मेरा देश हसदा रैह l
मेरा बाग बसदा रैह ll
..........
जांदा रस्ता कुस पासें l
‘भगत’ कोई दसदा रैह ll
.................
सरहदां पर जाई, लड़दा कोई कोई l
वीर बहोते हन, पर मरदा कोई कोई ll
.......
हमदरद बैठी महलां तां सारे बणदे l
दीन दुखियां जाई, रलदा कोई कोई ll
.......
लोकराज इक मखौल बणाया नेतेयां l
वोट पाई चेता करदा कोई कोई ll
................
याद ओंदे सैह नियारे दिन l
फौजी बणी कदी गुज़ारे दिन ll
घरां ते दूर बसड़ा इक टब्बर l
वजोगण रातां, बणजारे दिन lI
.......
ओबरिया रखे बर्दी मैडल गुज़ारे l
हाखीं बीच तरदे प्यारे दिन ll
देश -अणख सिरें रखी गुज़ारे l
‘भगत’ ठंडे कदी करारे दिन ll
..................
सिपाही कसमां खांदे कने खूब निभान्दे l
ज़मीर नी होंदा होरना साहीं बिकेया ll
.......
रोज सुखना करदा ‘भगत’ परमेसरे अगें l
थकण नी कन्धे भारत जिन्हां पर टिकेया ll
...............
असां बस रौला पांदे किछ करदे नी l
असां बस गीतां गांदे, किछ करदे नी ll
कोई डुबदा मरे चाहे लुट्टे पिट्टे l
असां बीडिओ बणान्दे , किछ करदे नी ll
.............
जिसदी गुड्डी चढ़दी उस पिछें चली पोंदे l
होआ दिखी पूणा लांदे, किछ करदे नी ll
(काँगड़ी हिमाचली कविता संग्रह)
भगत राम मंडोत्रा
प्रकाशक: भगत राम मंडोत्रा
कमला प्रकाशन, कमला कुटीर, गांव चम्बी
डाकघर संघोल, ज़िला कांगड़ा ( हि.प्र. )
पिन: 176091
ISBN: 978-93-5265-589-2 Paperback
978-93-5290-590-8 E-Book
मूल्य: रू. 200/-
‘रिहड़ु खोलू’ कवि मित्र श्री भगत राम मंडोत्रा का दूसरा कविता संग्रह है ।इससे पूर्व उनका पहाड़ी में ही एक कविता संग्रह ‘जुड़दे पुल’ प्रकाशित हो चुका है ।इस कविता संग्रह के बारे में यों तो विद्वदजनों ने प्राक्कथन में अपनी टिप्पणियों में सब कुछ कह दिया है, फिर भी दो शब्द मेरी ओर से !
32 वर्ष भारतीय सेना में सेवायें देकर सूबेदार मेजर (ऑनरेरी लेफ्टिनेंट)के पद से सेवानिवृत व तदोपरांत 5 वर्ष इंटेलिजेंस ब्यूरो में बतौर ACIO रह चुके मंडोत्रा जी ने कविता लेखन में अपनी रुचि को आगे बढ़ाने का जो खूबसूरत निर्णय लिया , उसकी परिणति उनके इन कविता संग्रहों के रूप में हमारे सामने है ।फ़ेसबुक तो इनकी छोटी बड़ी सुंदर रचनाएँ प्रतिदिन ही पढ़ने को मिलती हैं। ‘रिहड़ु खोलु’ का आवरण ही अपने आप में नैसर्गिक सौंदर्य का परिचायक है तथा बरबस अपनी ओर आकृष्ट करता है। 79 बेहतरीन कविताओं से सुसज्जित इस संग्रह में पढ़ने, गुनने और आनंदित होने के लिए बहुत कुछ है ।कवि कहाँ एक ओर अपने प्रदेश के प्राकृतिक सौन्दर्य से अभिभूत हैं, वहीं दूसरी ओर उनके सैन्य जीवन के प्रत्यक्ष अनुभव भी कुछ कविताओं में सहज ही दृष्टिगोचर है । सेना , सैनिकों व सैनिकों द्वारा देश की रक्षा हेतु दिये गए बलिदान के प्रति प्रकट किए उद्गार एक आम नागरिक को भी गर्व का अनुभव कराते हैं । कविताओं में व्यंग्य की धार कुछ और तेज हुई है व बेबाकी भी बढ़ी है ।
प्रथम कविता ‘हिमाचले च छैल नज़ारे मिलदे’ में प्रदेश के प्राकृतिक एवं मानवीय सौंदर्य और मनोरम दृश्यावली के साथ साथ सादगीपूर्ण सामाजिक जीवन, पहनावे व खान पान की झलक दिखती है । पुस्तक का नाम ‘रिहड़ु खोलु’ भी इसी कविता से लिया गया है ।
हिमाचले च छैल नज़ारे मिलदे ।
सिद्धे सादे लोक प्यारे मिलदे ।।
..................
रिहड़ु खोलु धरान पधरे हार ।
पौड़ी ख्तेयान दे नजारे मिलदे ।।
..................
छोले डोरू कुर्ता सुथणु घघरी।
रीहड़ेयां सलमे सितारे मिलदे ।।
से पढ़ने का समा बंधता है ।
‘बोलियाँ चाहे बखरियां, बखबख हर रुआज है’ कविता ‘अनेकता में एकता’ का संदेश देती है –
‘वक़्त औणे पर सबों इक जुट खड़ोंदे दुस्सदे ।
बोलियाँ चाहे बखरियां, बखबख हर रुआज है ll
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कुछ अन्य कविताओं की बानगी इस प्रकार है :
मेरा देश हसदा रैह l
मेरा बाग बसदा रैह ll
..........
जांदा रस्ता कुस पासें l
‘भगत’ कोई दसदा रैह ll
.................
सरहदां पर जाई, लड़दा कोई कोई l
वीर बहोते हन, पर मरदा कोई कोई ll
.......
हमदरद बैठी महलां तां सारे बणदे l
दीन दुखियां जाई, रलदा कोई कोई ll
.......
लोकराज इक मखौल बणाया नेतेयां l
वोट पाई चेता करदा कोई कोई ll
................
याद ओंदे सैह नियारे दिन l
फौजी बणी कदी गुज़ारे दिन ll
घरां ते दूर बसड़ा इक टब्बर l
वजोगण रातां, बणजारे दिन lI
.......
ओबरिया रखे बर्दी मैडल गुज़ारे l
हाखीं बीच तरदे प्यारे दिन ll
देश -अणख सिरें रखी गुज़ारे l
‘भगत’ ठंडे कदी करारे दिन ll
..................
सिपाही कसमां खांदे कने खूब निभान्दे l
ज़मीर नी होंदा होरना साहीं बिकेया ll
.......
रोज सुखना करदा ‘भगत’ परमेसरे अगें l
थकण नी कन्धे भारत जिन्हां पर टिकेया ll
...............
असां बस रौला पांदे किछ करदे नी l
असां बस गीतां गांदे, किछ करदे नी ll
कोई डुबदा मरे चाहे लुट्टे पिट्टे l
असां बीडिओ बणान्दे , किछ करदे नी ll
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जिसदी गुड्डी चढ़दी उस पिछें चली पोंदे l
होआ दिखी पूणा लांदे, किछ करदे नी ll
- उपरोक्त पंक्तियाँ इस संग्रह की कुछ शुरुआती कविताओं से ली गयी हैं, जिनसे कवि की व्यापक दृष्टि और दृष्टिकोण का पता चलता है । जहां एक ओर कवि अपने सैन्य जीवन को याद करके गौरवान्वित है, वहीं वर्तमान परिस्थितियों , चाहे सामाजिक हों, चाहे राजनीतिक, के प्रति आक्रोश भी व्यक्त करता है । नेताओं, मीडिया , और आमजन की उदासीनता और अकर्मण्यता की कवि ने अच्छी ख़ासी खबर ली है ।इस सबके अलावा भी संग्रह में बहुत कुछ है जो पाठक को आनंदित करने के साथ साथ बहुत कुछ सोचने व करने की भी प्रेरणा देता है ।
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