Monday, May 14, 2018

‘परमवीर गाथा’


परमवीर गाथा
सेकंड लेफ़्टिनेंट अरुण खेतरपाल – परमवीर चक्र विजेता
हिन्दी काव्य रचना
भगत  राम मंडोत्रा
प्रकाशक: भगत  राम मंडोत्रा( 98163 68385 ) 
कमला प्रकाशन, कमला कुटीर, गांव चम्बी
डाकघर  संघोल, ज़िला कांगड़ा ( हि.प्र. )
पिन: 176091
ISBN: 978-93-5300-307-4  
मूल्य:  रू. 250/-
प्रस्तुत  काव्य रचना परमवीर गाथा  कवि मित्र श्री  भगत राम मंडोत्रा की तीसरी प्रकाशित  काव्य पुस्तक है । जैसा कि नाम से स्पष्ट है  यह 1971 के भारत- पाक युद्ध में मात्र 21 वर्ष की आयु में  वीर गति को प्राप्त सेकंड लेफ़्टिनेंट अरुण खेतरपाल, परमवीर चक्र विजेता को दी गयी काव्यात्मक श्रद्धांजलि है । श्री भगत राम मंडोत्रा सेवा निवृत भूतपूर्व सैन्य अधिकारी हैं । यह रचना 1971 युद्ध के महानायक रहे सेकंड लेफ़्टिनेंट अरुण खेतरपाल को अभूतपूर्व श्रंद्धांजलि तो है ही , पर इसके अलावा  एक काल खंड को भी चित्रित करने में समर्थ रही है ।धर्म के आधार पर भारत का विभाजन, दोनों पड़ोसी देशों के बीच निरंतर बढ़ती नफरत का वातावरण और बिगड़ते सम्बन्ध , 1965 की लड़ाई, तत्पश्चात, पाकिस्तान सरकार की अपने ही लोगों के प्रति गलत, पक्षपातपूर्ण और दमनकारी नीतियों के कारण पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह की स्थिति, सीमा पर से भारत में शरणार्थियों का प्रवेश, और इन सब  परिस्थितियों में  मुक्ति वाहिनी की रचना और उद्भव व बांग्ला देश का जन्म – इन सब का उल्लेख इस रचना में मिलता है ।
मेरी पीढ़ी, मेजर सोमनाथ शर्मा, मेजर शैतान सिंह, मेजर धन सिंह थापा , कैप्टन जी.एस.सलारिया, मेजर होशियार सिंह , ले.कर्नल ए.बी. तारापोर जैसे  परमवीरों का नाम सुन कर ही बड़ी हुई है , इस रचना को पढ़ कर उनका भी स्मरण हो आता है । कुछ का वर्णन तो इस रचना में भी मिलता है ।
इस रचना में 1971 के निर्णायक युद्ध में सेकंड लेफ़्टिनेंट अरुण खेतरपाल की शौर्यपूर्ण भूमिका का विस्तृत वर्णन मिलता है । बसंतर नदी पर पुल का निर्माण और उस पर से भारतीय टैंकों का गुजरना, उस वीर सैन्य अधिकारी द्वारा प्रशिक्षण पर जाने की बजाय , युद्ध में भाग लेने का निर्णय , मोर्चा पर कमान संभालते हुए शत्रु के अनेक  पैटन   टैंक ध्ववस्त करके  पलायन के लिए मजबूर करना और फिर बहादुरी से आगे बढ़ते हुए, शत्रु की गोली खा कर वीरगति को प्राप्त होना, यह सब आश्चर्य चकित करने वाला है । 
101 खूबसूरत छंदों में वर्णित यह गाथा , सुभद्रा कुमारी चौहान रचित झाँसी की रानी की याद दिलाती है । फुटनोट के माध्यम से कवि ने संबन्धित यूनिट- रेजीमेन्ट, ड्राईवर, गनर आदि का उल्लेख करके आम पाठक की जानकारी में भी वृद्धि की है ।  यह केवल कवि के मनोद्गारों की अभिव्यक्ति नहीं, अपितु उसके अध्ययन , मनन, शोध का भी परिणाम है। न जाने कहाँ कहाँ से सूचना एकत्र करके कवि ने यह रचना की है ।
एक विडम्बना यह भी है  कि इस परमवीर की शहादत के एक दिन बाद ही युद्धविराम की घोषणा हो गयी थी ।
वीर गति को प्राप्त हुए इस युवा सैन्याधिकारी के मातापिता की मानसिक स्थिति का भी वर्णन मिलता है। इसके पिता एम.एल. खेतरपाल भी उस समय सेवारत कर्नल थे ।
कई वर्षों बाद  ब्रिगेडियर पद से सेवा निवृत हुए पिता का अपने पैतृक स्थान सरगोधा जाना होता है तो उनकी मुलाक़ात अपने मेजबान पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेडियर ख्वाजा मोहम्मद नासिर से होती है ।काफी संकोच के बाद मेजबान  ब्रिगडियर यह बताता है कि उसी की गोली से सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेतरपाल शहादत को प्राप्त हुआ था ।इस प्रकार मेजबान ब्रिगडियर अपने मन का बोझ तो हल्का कर लेता है पर ब्रिगडियर खेतरपाल की जो मन:sथिति होती है, वह कल्पना से भी परे है । यह घटना इस गाथा का सबसे मार्मिक मोड़ है जिसे पढ़ कर द्रवित होना स्वाभाविक है। यह घटना  बरबस ही Thomas Hardy की कविता ‘The Man He Killed’ की याद आती है कि किस प्रकार व्यक्तिगत शत्रुता न होते हुए भी दोनों तरफ के सैनिक देश-भक्ति और कर्तव्यबोध के कारण एक दूसरे की मृत्यु का कारण बनते हैं।

देश की आन की खातिर, मर मिटने वाले,
सदा ही चिर-यौवन चिर जीवी हुआ करते हैं ।
भुला देती हैं जब उन्हें अगली पीढ़ियां,
वास्तविक मृत्यु तो वह तभी मरते हैं ।
आओ प्राण करें सदैव जीवित उन्हें रखेंगे,
जिन्होंने देश जिये इसलिए जान लुटाई थी ।
                           इस संकल्प से आरंभ हो कर यह रचना आद्योपांत पाठक को बांधे रखती है ।
इससे अधिक पंक्तियाँ मैं उद्धरित नहीं कर रहा, क्योंकि पाठक स्वयं इस रचना को पढ़ कर कवि के प्रति प्रशंसा और कृतज्ञता के भाव से भर उठेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है
कवि ने एक परमवीर के माध्यम से अनेक परमवीरों को श्रद्धांजलि दी है, जिन पर हमें सदा से गर्व है  


 



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