गणेश चतुर्थी यानि पत्थर-चौथ और करवा चौथ दोनों ही आस्था के प्रतीक हैं और वैज्ञानिक दृष्टि से दोनों का सम्बन्ध चाँद की बढ़ती घटती कलाओं से है . टीवी चैनलों पर गणेश चतुर्थी की धूम रहना स्वाभाविक है, क्योंकि हिन्दू धर्म नें गणेशजी का विशेष स्थान है और उन्हें सिद्धि विनायक तथा विघ्ननाशक के रूप में भी जाना जाता है . मेरे घर पर दोनों वक़्त पूजा होती है पर गणेश चतुर्थी अथवा पत्थर चौथ मानो खतरे की घंटी. चन्द्रमा की एक झलक भी निषिद्ध. ग़लती से दिख जाये तो उपाय ज़रूरी, नहीं तो कलंक लगने अथवा झूठे दोषारोपण का भय . कल भी धर्मपत्नी ने खिडकियों पर अतिरिक्त परदे और रोशनदान पर अख़बार के पन्ने लगा दिए.इस बार समाचार पत्रों में पढ़ा था कि केवल रात 6:30 से 9:10 तक ही चंद्रमा को देखना वर्जित है , इसलिए ज्यादा टेंशन नहीं रही। यों 1962, 1965, और 1971 के युद्धों के दौरान blackout का अनुभव तो रहा था कि सुरक्षा की दृष्टि से घर के भीतर की रौशनी बाहर नज़र नहीं आनी चाहिए पर यहाँ तो चाँदको देखना या चांदनी का प्रवेश भी वर्जित था. दूसरी ओर करवा चौथ के दिन पूरा दिन भूखे-प्यासे रह कर पत्नियाँ चंद्रोदय का शिद्दत से इंतज़ार करती हैं ताकि पूजा के उपरांत व्रत तोड़ा जा सके. खैर आस्था है तो दोनों ही दृष्टिकोण ठीक हैं .
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