आज हिन्दी की महान कवयित्री महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि है। बहुमुखी प्रतिभा की धनी होने के साथ साथ वे हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तंभो में से एक होने के नाते अपना विशेष स्थान रखती हैं । किसी ने उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से नवाज़ा तो बक़ौल ‘निराला’ वे “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” हैं। अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत करने के उपरांत अंतिम पड़ाव में वे प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या रहीं। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका होने के साथ साथ महादेवी वर्मा ने संगीत और चित्रकारिता के क्षेत्र में भी अपने कौशल का परिचय दिया । पद्म भूषण, पद्म विभूषण के अलावा उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्वपूर्ण पुरस्कार, जैसे मंगला प्रसाद पुरस्कार, भारत भारती , ज्ञान पीठ पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। वे साहित्य अकादमी की फैलोशिप स्वंत्रता से पहले और बाद के दोनों कालखंडो की साक्षी महादेवी जी ने विपुल साहित्य रचा। ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘दीपशिखा’, ‘यामा’ उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं। उनकी अनेक कविताओं में ‘दीप’ और ‘दीपक’ शीर्षक और विषय वस्तु के रूप में उपस्थित हैं ।
उनकी काव्य रचना की एक झलक :
मेरा पग पग संगीत भरा,
श्वांसों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !
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विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना
परिचय इतना इतिहास यही
उमटी कल थी मिट आज चली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !
----------------चाहा था तुझमें मिटना भर
दे डाला बनना मिट-मिटकर
यह अभिशाप दिया है या वर;
पहली मिलन कथा हूँ या मैं
चिर-विरह कहानी!
बताता जा रे अभिमानी!
-------------------------
सघन घन का चल तुरंगम चक्र झंझा के बनाये,
रश्मि विद्युत ले प्रलय-रथ पर भले तुम श्रान्त आये,
पंथ में मृदु स्वेद-कण चुन,
छांह से भर प्राण उन्मन,
तम-जलधि में नेह का मोती
रचूंगी सीप सी मैं!
उनकी काव्य रचना की एक झलक :
मेरा पग पग संगीत भरा,
श्वांसों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !
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विस्तृत नभ का कोई कोना
मेरा न कभी अपना होना
परिचय इतना इतिहास यही
उमटी कल थी मिट आज चली !
मैं नीर भरी दुःख की बदली !
----------------चाहा था तुझमें मिटना भर
दे डाला बनना मिट-मिटकर
यह अभिशाप दिया है या वर;
पहली मिलन कथा हूँ या मैं
चिर-विरह कहानी!
बताता जा रे अभिमानी!
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सघन घन का चल तुरंगम चक्र झंझा के बनाये,
रश्मि विद्युत ले प्रलय-रथ पर भले तुम श्रान्त आये,
पंथ में मृदु स्वेद-कण चुन,
छांह से भर प्राण उन्मन,
तम-जलधि में नेह का मोती
रचूंगी सीप सी मैं!
धूप-सा तन दीप सी मैं !
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महान कवयित्री को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !!
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