Saturday, September 17, 2016

आवारा मसीहा

विख्यात लेखक  स्व. विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित यशस्वी बांग्ला उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की जीवनी ‘ का पुनर्पाठ करने पर   अभिभूत होता हूँ . शरतचन्द्र के व्यक्तित्व और कृतित्व का प्रभाकर जी ने ऐसा चित्रण किया है कि शरतचन्द्र स्वयं ही नहीं बल्कि उनके उपन्यासों के पात्र भी जीवंत हो आँखों के सामने विचरण करते प्रतीत होते हैं . वास्तव में यह रचना लेखक के श्रमसाध्य शोध का परिणाम है. इस पुस्तक की सामग्री जुटाने के लिए लेखक ने बंगाल और बिहार , मध्यप्रदेश के साथ साथ वर्तमान बांग्ला देश , तथा बर्मा ( म्यांमार ) तक का भ्रमण किया व लोगों से जानकारी प्राप्त की . जीवनी का शीर्षक ‘आवारा मसीहा’ शरतचंद्र के जीवन चरित को परिभाषित करने में सक्षम है . सम्पूर्ण नारीत्व – जो कि दया, करुणा , ममता, सेवा, परोपकार , त्याग का समग्र रूप है , उनकी दृष्टि में सतीत्व से कहीं अधिक महान है , ऐसी स्थापना परम्परावादी नैतिकता के पक्षधर लोगों के गले से भले ही नीचे न उतरे , पर सोचने पर अवश्य मजबूर करती है. मानव प्रेम ही नहीं बल्किप्राणिमात्र से स्नेह जो शरतचंद्र के पशु-पक्षी प्रेम में स्पष्ट झलकता है , उन्हें रचनाकारों की एक अलग ही पंक्ति में खड़ा करता है . अँगरेज़ लेखक सेमुअल जॉनसन के जीवनी लेखक जेम्स बॉसवेल का जो स्थान अंग्रेजी साहित्य में है, प्रभाकर जी ने ‘आवारा मसीहा’ रच कर ही उस से बेहतर स्थान प्राप्त किया है व ख्याति अर्जित की है . विष्णु प्रभाकर का अन्य लेखन भी उच्चकोटि का रहा है . 

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