उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की आज पुण्यतिथि है। माता पिता द्वारा दिया गया नाम धनपत राय, सर्वप्रथम उर्दू में लिखना शुरू करने के दौरान नवाबराय, व बाद में हिन्दी साहित्य जगत में प्रेमचंद के नाम से प्रसिद्धि पायी । पहले गोपाल कृष्ण गोखले, फिर बाल गंगाधर तिलक की विचारधारा का समर्थन किया। क्रांतिकारी लेखों के कारण कथा संग्रह ‘सोज़-ए-वतन’ की प्रतियाँ ज़ब्त की गयीं व अंग्रेज़ कलक्टर द्वारा भविष्य में कुछ भी न लिखने की हिदायत दी गई ।इस घटना के बाद अपने एक संपादक मित्र के परामर्श पर ‘प्रेमचंद’ बने व प्रेमचंद के नाम से लिखना शुरू किया । गांधी से भी कम प्रभावित नहीं थे । उनके आह्वान पर सरकारी नौकरी छोड़ी। बंगला साहित्य में व्याप्त रूमानी परंपरा को न अपनाते हुए हिन्दी साहित्य में समाजिक यथार्थवाद की स्थापना की व उपन्यास एवं कहानियों में भी यथार्थ का चित्रण किया । एक जागरूक नागरिक व लेखक के रूप में नारी शोषण की ओर ध्यान दिलाने से ले कर किसानों की दुर्दशा का वर्णन अपनी रचनाओं में किया । - विदेशी लेखकों से भी प्रभावित रहे तथा टालस्टाय की कहानियों, व गाल्सवर्दी की पुस्तकों का अनुवाद किया। विधवा विवाह का न केवल समर्थन किया बल्कि शिवरानी नामक विधवा से दूसरा विवाह कर समाज सुधार के इस क्रांतिकारी विचार को व्यावहारिक रूप दिया। ‘हँस’ के अतिरिक्त भी विभिन्न पत्र पत्रिकाओं का सम्पादन/प्रकाशन किया। फ़िल्मनगरी बम्बई में पट-कथा लेखन में भी हाथ आज़माया, पर माहौल रास न आने पर साल भर भी न टिके ।दो तीन नाटक भी लिखे पर विशेष सफलता न मिली । अपने लेखन में उन्होंने अनेक – लगभग 3000- पात्रों का निर्माण व चित्रण किया, पशु पक्षी भी पात्रों में शुमार रहे। सेवा सदन, प्रेमाश्रम, गोदान , निर्मला, गबन, रंगभूमि, कायाकल्प, कर्मभूमि आदि उपन्यास बहुत लोकप्रिय एवं प्रसिद्ध हुए। कथा साहित्य भी कम रोचक और महत्वपूर्ण नहीं। ईदगाह, नशा, एक्ट्रेस, पंच परमेश्वर, नमक का दारोगा, बड़े भाई साहब,पूस की रात, कफ़न, शतरंज के खिलाड़ी.......आदि उनकी कालजयी कहानियां हैं। माधव,घीसू बुधिया,हामिद, होरी, मिस पद्मा जैसे चरित्र गढ़े जो भुलाए नहीं भूलते ।
मुंशी प्रेमचंद प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम अध्यक्ष भी बने पर उसके बाद उनके देहावसान के कारण इस संघ को उनका मार्गदर्शन न मिल पाया।
‘कलम का सिपाही’ के नाम से विख्यात ,हिन्दी साहित्य जगत के इस महारथी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !
मुंशी प्रेमचंद प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम अध्यक्ष भी बने पर उसके बाद उनके देहावसान के कारण इस संघ को उनका मार्गदर्शन न मिल पाया।
‘कलम का सिपाही’ के नाम से विख्यात ,हिन्दी साहित्य जगत के इस महारथी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !
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