Wednesday, October 12, 2016

निदा फ़ाज़ली

उर्दू, हिन्दी के अज़ीम शाइर व गीतकार निदा फ़ाज़ली की आज जयंती है । खूबसूरत सादे शब्दों का चयन उनके गीतों व शायरी की खासियत है । ‘माँ’ पर लिखी उनकी नज़्म अपनी मिसाल आप है -
बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ
बाँस की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोई आधी जागी
थकी दोपहरी जैसी माँ
चिड़ियों के चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्ग़े की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँ
बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ
बाँट के अपना चेहरा, माथा,
आँखें जाने कहाँ गई
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ'
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उनकी शायरी का अंदाज़ निराला है ।
एक बानगी :
क्याब हुआ शहर को कुछ भी तो दिखाई दे कहीं,
यूं किया जाए कभी खुद को रुलाया जाए
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें,
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं जमीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता
कोई हिंदू कोई मुस्लिनम कोई ईसाई है
सब ने इंसान न बनने की कसम खाई है
खुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक्त पे कुछ अपना इख्तियार भी रख
फिल्मों के लिए लिखे उनके गीत भी बहुत लोकप्रिय हैं। उनने फिल्म- रज़िया सुल्ताना, सरफ़रोश, आहिस्ता आहिस्ता,इस रात की सुबह नहीं के लिए बेहतरीन गीतों की रचना की।
तेरा हिज्र मेरा नसीब है, तेरा गम मेरी हयात है (फ़िल्म रज़िया सुल्ताना) उनका लिखा पहला फ़िल्मी गीत है।अन्य गीतों /ग़ज़लों में ‘होश वालों को खबर क्या, बेखुदी क्या चीज है’ ,‘कभी किसी को मुक़म्मल जहाँ नहीं मिलता’ ,‘तू इस तरह से मेरी ज़िंदग़ी में शामिल है’ ,‘चुप तुम रहो, चुप हम रहें’ ,‘दुनिया जिसे कहते हैं, मिट्टी का खिलौना है’ ,‘हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी’ और ‘अपना ग़म ले के कहीं और न जाया जाए’ काबिले ज़िक्र और तारीफ़ हैं !
साहित्य एकेडमी पुरस्कार और पद्मश्री समेत अन्य अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित महान शाइर, गीतकार को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !

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